माओवादी तय करतें हैं सरपंच
18-Jan-2020 07:57 AM 1235422
हाल ही में सम्पन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव के बाद राज्य में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है लेकिन यहां के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में 150 ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जिनका चुनाव माओवादी करते हैं। राज्य चुनाव आयोग के अधिकारी भी मात्र निर्विरोध चयन की औपचारिकता पूरी करते हैं। सरकार और प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद भी इन पंचायतों पर ना तो कोई राजनीतिक दल और ना ही कोई आम ग्रामीण, सरपंच का चुनाव लडऩे की हिम्मत कर पाया है। यहां सरपंच कौन होगा इसका फैसला चुनाव से नहीं बल्कि स्थानीय माओवादी करते हैं। राज्य सरकार के आला अधिकारी भी मानते हैं इन ग्राम पंचायतों में वे माओवादियों द्वारा चुने हुए नामों पर सरकारी मुहर लगाकर मान्यता देने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर जिलों में स्थित इन ग्राम पंचायतों में राज्य सरकार और प्रशासन आज तक अपनी पहुंच नहीं बना पाई है। नक्सलियों के खौफ की वजह से इन गांवों में आधारभूत संरचनाओं का अभाव रहा है तथा मूलभूत नागरिक सुविधाएं भी पहुंच ही नहीं पाई हैं। दरअसल अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं इन 150 से भी अधिक ग्राम पंचायतों में उन्हें नक्सलियों द्वारा चुने गए नाम पर मुहर लगाकर औपचारिकता ही पूरी करनी होती है। नक्सिलयों के द्वारा सरपंच पद के लिए नामित व्यक्ति का विरोध कोई ग्रामीण भी नहीं करता है और सबंधित चुनाव अधिकारी भी औपचारिक रूप से निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर देते हैं। नाम जाहिर न करने की शर्त पर कुछ अधिकारियों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि माओवादियों द्वारा सरपंच चुने जाने वाली वाली ग्राम पंचायतों की संख्या 150 से काफी ज्यादा हो सकती है। इन अधिकारियों के अनुसार नक्सल प्रभावित चार जिलों में करीब 25-30 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में माओवादियों की अघोषित सरकार चलती है। दंतेवाड़ा कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा ने यह भी माना कि प्रशासन की पहुंच अभी तक इन ग्राम पंचायतों तक नहीं हो पाई है। वर्मा आगे कहते हैं ऐसा नहीं है कि इन ग्राम पंचायतों में चुनावी प्रक्रिया पूरी नहीं होगी। लेकिन यहां एक ही नाम आपसी सहमति से चुना जाएगा और उसे निर्विरोध चयनित मान लिया जाएगा।Ó बीजापुर जिलाधिकारी के डी कुंजाम बताते हैं, सरपंच उम्मीदवार इन क्षेत्रों में उनसेÓ स्वाभाविक रूप से मदद मांगते जिसका कारण सर्वविदित है। फिर भी प्रशासन का पूरा प्रयास है कि ग्रामीणों को सुरक्षा के साथ-साथ अधिक से अधिक संख्या में चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के प्रति प्रोत्साहित किया जाए।Ó सुकमा जिलाधिकारी चंदन कुमार बताते हैं, उनके जिले की सभी 149 ग्राम पंचायतें वामपंथी हिंसा से ग्रसित हैं।Ó 28 जनवरी से शुरू हो रहे पंचायत चुनाव तीन चरणों में होंगे। इस चुनाव में गांव वाले बढ़-चढ़कर भाग लें इसे ध्यान में रखते हुए प्रशासन एड़ी चोटी का जोड़ लगा रहा है। परंतु स्थानीय ग्रामीणों और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सरकारी प्रयास कामयाब नहीं हो सकते। आंकड़ों की बात करें तो दंतेवाड़ा जिले में करीब 20 से 25 ग्राम पंचायत ऐसी हैं जहां माओवादी अपना सरपंच नियुक्त करेंगे, बीजापुर जिले में ऐसी पंचायतों की संख्या 25 से 30 के करीब है जबकि सुकमा में करीब 40, नारायणपुर में 20 से अधिक ग्राम पंचायतों की संख्या है। चंदन कुमार इन ग्राम पंचायतों को लेकर कहते हैं, यदि आप पूछेंगे कि कितनी ग्राम पंचायत वामपंथी हिंसा से ग्रसित है तो मैं कहूंगा ऐसी एक भी पंचायत नहीं है जहां वामपंथी हिंसा का असर नहीं है, सुकमा जिले में करीब 30 से 40 ग्राम पंचायत हैं जहां आज तक प्रशासन अपनी पहुंच नहीं बना सकी है।Ó नारायणपुर जिले में अकेले ओरछा ब्लॉक की 37 ग्राम पंचायतों में आधी से ज्यादा पंचायतें ऐसी हैं जहां सरपंच का फैसला माओवादी करेंगे। फिर भी जिलाधिकारी पदुम सिंह अल्मा बताते हैं कि जिला प्रशासन ने ग्रामीणों को चुनाव में भाग लेने के लिए मनाने में काफी हद तक सफलता पाई है। परन्तु दिप्रिंट को जिले के अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि यह प्रयास कामयाब नहीं हो पाएंगे क्योंकि इन आति संवेदनशील ग्राम पंचायतों में ग्रामीण निरंतर माओवादी हिंसा के भय में जीते हैं और वे किसी भी हालत में उनके खिलाफ नहीं जा सकते। अभी तक जारी नहीं किया कोई फरमान वैसे इन अति संवेदनशील या कहें नक्सलियों के आधिपत्य वाली ग्राम पंचायतों की जमीनी हकीकत सर्व विदित है, फिर भी इन चार जिलो में प्रशासनिक अधिकारी राहत की सांस इस बात से ले रहे हैं कि नक्सलियों ने 2020 के पंचायत चुनाव के खिलाफ अभी तक कोई फरमान जारी नहीं किया है। अधिकारियों का कहना है कि यह जरूरी नहीं है कि आगे भी नक्सली चुनाव के बहिष्कार का कोई फरमान जारी न करें लेकिन उन की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आना भी एक प्रकार से अच्छा है। नारायणपुर कलेक्टर कहते हैं हम इन पंचायतों में कई ग्रामीण मित्रों से लगातार संपर्क में है जिनसे नक्सलियों की गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त हमारे अधिकारी स्थानीय सरकारी कर्मचारियों जैसे हैंडपंप मकैनिक नर्स कृषि विकास था अधिकारी या फिर पंचायत सचिवों द्वारा भी जानकारी निरंतर प्राप्त करके रहते हैं अभी तक की जानकारी के अनुसार नक्सली पूरी तरह न्यूट्रल है।Ó - रायपुर से टीपी सिंह
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