आदिवासी रंग हुआ गहरा
18-Nov-2019 07:25 AM 1235026
डेढ़ दशक बाद छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके फिर पूरी तरह कांग्रेस के साथ हो गए हैं। अब आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की 24 विधानसभा सीटों में एक पर भी भाजपा का विधायक नहीं है। लोकसभा चुनाव में राज्य में बुरी तरह मात खाई कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के सफाये से गदगद है। इसका श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जाता है। इन इलाकों में कुपोषण के खिलाफ अभियान, हाट बाजारों में चलित चिकित्सा की सुविधा और तेंदूपत्ता का बोनस प्रति बोरा 2,500 से बढ़ाकर 4,000 रुपए करने का निर्णय कांग्रेस को पहले दंतेवाड़ा और अब चित्रकोट उपचुनाव में फायदा दे गया। लोहरीगुण्डा में टाटा की फैक्ट्री के लिए अधिग्रहीत जमीन आदिवासियों को लौटाने के फैसले का भी इसमें बड़ा योगदान रहा। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में से एकमात्र दंतेवाड़ा जीती थी। लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली हिंसा में विधायक भीमा मांडवी की मौत के कारण यह सीट रिक्त हो गई। 23 सितंबर को हुए उपचुनाव में भाजपा ने भीमा की पत्नी ओजस्वी को चुनाव लड़ाकर सहानुभूति लेने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुई। नौ महीने पहले भीमा के हाथों पराजित देवती कर्मा करीब 11 हजार वोटों से जीत गईं। दंतेवाड़ा में हार के बाद भाजपा ने हथियार डाल दिए। चित्रकोट में बुजुर्ग लच्छू राम कश्यप को उतारकर उसने एक तरह से कांग्रेस को वाकओवर दे दिया। यहां कांग्रेस के राजमन बेंजाम 17 हजार वोटों के अंतर से जीत गए। करीब 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले इस राज्य में 29 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। इनमें से 27 सीटें अब कांग्रेस के पास हैं। 2003 और 2008 में आदिवासी विधायकों के दम पर सरकार बनाने वाली भाजपा के पास अब कोरबा जिले की रामपुर सीट से ननकी राम कंवर एकमात्र आदिवासी विधायक हैं। भाजपा ने 15 साल के राज में आदिवासियों को साधने के लिए कई कदम उठाए, फिर भी वह आदिवासी वोटरों को बांध कर नहीं रख पाई। इसके पीछे कुछ फैसले रहे। आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों और उद्योगों को देने की कोशिश और पत्थलगड़ी जैसे आंदोलन से दूरियां बढ़ीं। अब केंद्र के स्तर पर भी आदिवासियों को साधने की कोशिश हो रही है। सरगुजा की सांसद रेणुका सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया गया है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम भी छत्तीसगढ़ से हैं। अनुसुइया उइके को यहां का राज्यपाल बनाकर भी आदिवासी समाज को संदेश दिया गया है। भाजपा की रणनीति का लाभ दो उपचुनावों के नतीजों में तो नहीं दिखा, इन नतीजों से राज्य में कांग्रेस की साख और धाक दोनों जरूर मजबूत हुई है। उधर सरकार ने भी आदिवासियों को तोहफा दिया है। जल्द ही छत्तीसगढ़ जेलों में सजा काट रहे अपराधियों को रिहा कर दिया जाएगा। दरअसल, आदिवासी इलाकों से आबकारी एक्ट के की मामूली धाराओं के तहत जेल में सजा काट रहे 320 आदिवासियों की रिहाई पर विचार-विमर्श चल रहा है। जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने इनकी रिहाई पर यह फैसला लिया है। मिली जानकारी के मुताबिक, सबसे पहले रिहाई सरगुजा और बस्तर से गिरफ्तार आदिवासियों की होगी। इसके बाद नक्सलियों के सहयोगी के तौर पर गिरफ्तार किए गए लोगों की जानकारी ली जाएगी। 20 दिनों में इसका निराकरण किया जाएगा। बता दें कि राज्य में महुए, चावल सहित अन्य फलों से बनने वाली देशी शराब आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा है। आदिवासियों के लिए राज्य में 10 लीटर तक शराब बनाने की छूट भी है। आदिवासी समाज के प्रतिनिधि मंडल ने पिछले दिनों आरोप लगाया था कि राज्य के भोले-भाले आदिवासियों को आबकारी और नक्सल समर्थक होने के झूठे मामलों में फंसाकर जेलों में बंद किया जा रहा है। इसी शिकायत की जांच के लिए जस्टिस पटनायक की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है। मामूली धारा वालों को पहले छोड़ा जाएगा राज्य के आबकारी एवं उद्योग मंत्री कवासी लखमा का कहना है कि नक्सल मामले में मामूली धारा वालों को पहले छोड़ा जाएगा और जिन पर बड़ी धारा लगी है उन्हें बाद में छोड़ा जाएगा। सभी मामलों की कडी समीक्षा की जा रही है। सभी पुलिस अधीक्षक और संबंधित थाने को इसके लिए स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। 20 दिन के अंदर इसकी पूरी जानकारी आ जाएगी। विधायक विक्रम मंडावी और देवती कर्मा की मौजूदगी में लखमा ने कहा कि पिछली सरकार ने बड़ी संख्या में निर्दोष आदिवासियों को जेल भेजा था। इस मुद्दे को मैं प्रमुखता से उठाता रहा हूं कि जब कांग्रेस की सरकार बनेगी तो निर्दोष आदिवासियों को जेल से रिहा किया जाएगा। इसको लेकर एक कमेटी बनाई गई है। लगातार चुनावों की वजह से इस कार्य मे देरी हुई। - रायपुर से टीपी सिंह
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