सरकार में तीन फाड़!
02-Jan-2020 07:55 AM 1234917
महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी के मुद्दे पर चले सियासी घमासान के बाद कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने वाली शिवसेना का यह फैसला राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही आम लोगों को काफी अखऱा था। कारण साफ था कि शिवसेना और कांग्रेस की विचारधारा कहीं से भी मेल नहीं खाती। दूसरी ओर, कांग्रेस चूंकि राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए एकदम विपरीत विचारधारा वाली शिवसेना के साथ सरकार बनाने का फैसला करना उसके लिए कतई आसान नहीं था। इसलिए, कांग्रेस ने शिवसेना के साथ जाने से उसे क्या सियासी नफा-नुकसान हो सकता है, इस पर काफी समय तक विचार भी किया। मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम सहित कई नेताओं ने पार्टी आलाकमान से कहा कि वह शिवसेना के साथ गठबंधन न करें। शिवसेना की ओर से भरोसा दिलाया गया कि गठबंधन सरकार में हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर कोई टकराव नहीं होगा। बात आगे बढ़ी और हिचकोले खाती हुई नाव को आखिरकार किनारा मिला और यह तय हुआ कि महाराष्ट्र में तीनों दल मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन 30 नवंबर को सदन में विश्वास मत हासिल करने वाली इस सरकार को अभी 15 दिन भी नहीं हुए थे कि विचारधारा का टकराव खुलकर सामने आ गया और यह टकराव हुआ हिंदू महासभा के नेता वीडी सावरकर को लेकर। वहीं सावरकर जिन्हें लेकर अक्सर कांग्रेस और हिंदुत्व विचारधारा के समर्थकों में भिड़ंत होती रहती है। शिवसेना और कांग्रेस के बीच एक नहीं कई मुद्दे ऐसे हैं, जिन्हें लेकर जोरदार टकराव है। इन मुद्दों को लेकर बारी-बारी से बात करते हैं। महाराष्ट्र और विशेषकर मुंबई की राजनीति में बड़ा मुद्दा रहा है बाहरियों’ का नौकरी के लिए राज्य में आना। इन बाहरियों’ में विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और उत्तर भारत के अन्य राज्यों से नौकरी के लिए मुंबई जाने वाले लोग शामिल हैं। मुंबई में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें बाहरियों’ के साथ शिवसैनिकों ने मारपीट की है। शिवसेना का मानना है कि ये बाहरी’ लोग महाराष्ट्र के लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं। हालांकि बीते कुछ सालों में ऐसी घटनाएं कम हुई हैं लेकिन कांग्रेस के लिए शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर यूपी-बिहार में जवाब देना मुश्किल होगा क्योंकि उसे इन दोनों राज्यों में राजनीति करनी है, जबकि शिवसेना का इन राज्यों में कोई आधार नहीं है। ऐसे में आने वाले समय में इस मुद्दे पर टकराव नहीं होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। नागरिकता संशोधन कानून के मसले पर भी शिवसेना और कांग्रेस का वैचारिक टकराव स्पष्ट दिखाई दिया था। क्योंकि कांग्रेस इस कानून का जोरदार विरोध कर रही है जबकि शिवसेना ने लोकसभा में इसका समर्थन किया और राज्यसभा में वोटिंग के दौरान वॉक आउट कर दिया। सावरकर को लेकर यह विवाद महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव से पहले तब शुरू हुआ था जब बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में सावरकर को भारत रत्न दिए जाने की बात कही थी। उस समय कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया था लेकिन शिवसेना बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी। सावरकर को लेकर शिवसेना के विचार बीजेपी से मिलते हैं, इसलिए उसने इसका समर्थन किया था। तब इसे लेकर देशभर में खासा विवाद भी हुआ था। विधानसभा चुनाव के बाद सियासी समीकरण बदले और महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी की सरकार बनी। लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद यह विवाद फिर जिंदा हो गया है। राहुल गांधी के यह बयान कि उनका नाम राहुल सावरकर नहीं राहुल गांधी है और वह माफी नहीं मांगेंगे, इस पर शिवसेना ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि उनकी पार्टी गांधी, नेहरू का सम्मान करती है लेकिन कांग्रेस भी सावरकर का अपमान न करे। बीजेपी, संघ और शिवसेना जहां सावरकर को वीर, देशभक्त और क्रांतिकारी बताते हैं, वहीं कांग्रेस का कहना है कि सावरकर ने अंग्रेजों से रिहाई की भीख मांगी थी और जेल से आजादी के बदले अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार की थी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे तो यहां तक कह चुके हैं कि सावरकर पर भरोसा न करने वालों को जनता के बीच में पीटा जाना चाहिए? ठाकरे ने कहा था कि ऐसे लोगों को इसलिए पीटा जाना चाहिए क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के संघर्ष और इसकी अहमियत का अंदाजा ही नहीं है। सेक्युलर बनाम हिंदुत्व की लड़ाई शिवसेना स्पष्ट रूप से कट्टर छवि वाली हिंदूवादी पार्टी है और कांग्रेस की छवि सेक्युलर है। भारतीय राजनीति में इन दोनों विचारधाराओं का टकराव देश की आज़ादी के बाद से ही चल रहा है और कहा जा सकता है कि आगे भी जारी रहेगा। ऐसे में सावरकर के अलावा मुसलमानों को लेकर शिवसेना का रुख क्या बदल जाएगा? यह भी अहम बात है। हालांकि शिवसेना कहती है कि वह मुसलमानों की विरोधी नहीं है लेकिन शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे को इस तरह से प्रचारित किया जाता है कि वह उग्र हिंदुत्व के समर्थक थे और मुसलमानों के विरोधी थे। शिवसेना पर यह आरोप लगता रहा है कि वह मुसलमानों से उनकी देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगती रही है, ऐसे में इसे लेकर इन दोनों दलों के बीच कैसे बात बनेगी, यह एक बड़ा सवाल है। इससे पहले भी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर, तीन तलाक कानून को लेकर और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लेकर कांग्रेस और शिवसेना का स्टैंड पूरी तरह अलग रहा है। - बिन्दु माथुर
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