02-Jan-2020 08:34 AM
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देश की मिट्टी अपने हाथ, आओ कराएं इसकी जांच। बीमार मिट्टी की सेहत सुधारने का महत्वाकांक्षी अभियान भी खामियों की भेंट चढ़ गया है। अभियान चलाकर कृषि विभाग लक्ष्य के सापेक्ष नमूना एकत्र कर मृदा स्वास्थ्य कार्ड तो बांट दिया है लेकिन किसान मृदा की स्थिति, बीमार मिट्टी की सेहत सुधारने के उपाय आदि से अनभिज्ञ हैं। ऐसे में उत्पादन बढ़ाकर अन्नदाताओं की आय कैसे दोगुनी होगी। रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग व जैविक खादों के न डालने से खेतों की मिट्टी बीमार हो चली है। इसके चलते कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ है। बढ़ती जनसंख्या और घटते उत्पादन से खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने का खतरा बढ़ गया है। मिट्टी की दशा सुधारने के लिए सरकार वृहद अभियान चला रही है। किसानों को मिट्टी की जांच कराकर संस्तुति के अनुसार संतुलित उर्वरकों का उपयोग करने के लिए भी गोष्ठियों में बताया जा रहा है लेकिन जागरूकता की कमी के कारण अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। सामान्य नमूनों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम की जांच की जाती है तो द्वितीय एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों में सल्फर, जिक, बोरान, आयरन, मैग्नीज और कापर की जांच होती है। अब तक हुए परीक्षण पर गौर करें तो मप्र में मृदा की स्थिति काफी दयनीय है।
दिनों-दिन फसलों में कीटनाशक दवाओं और खाद का प्रयोग बढ़ रहा है, इससे मिट्टी तो खराब हो ही रही है साथ ही लोगों के सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके बाद भी किसान जागरूक न होकर उत्पादन बढ़ाने और फसलों को सुरक्षित रखने कीटनाश दवाओं का बड़ी मात्रा में उपयोग कर रहे हैं। मप्र में औसतन एक हेक्टेयर में 1 लीटर कीटनाशक दवा, एक लीटर फूल की दवा का छिड़काव किया जाता है और कीटनाशक दवा का छिड़काव फसल में दो बार तक किसान करते हैं। रबी सीजन में गेहूं को छोड़कर बाकी सभी फसलों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव होता है। इसी प्रकार खरीफ सीजन में भी दवा का छिड़काव कर दिया जाता है। किसान दोनों सीजन में करोड़ों की दवाओं का छिड़काव कर देते हैं, जिससे किसान को आर्थिक क्षति तो पहुंच ही रही है साथ ही मिट्टी भी खराब हो रही है। इसका फायदा बाजार में खुली कीटनाशक दुकानों के संचालक भी उठा रहे हैं और अच्छी दवाओं के नाम पर महंगी दवाएं किसानों को बेच देते हैं। जरूरत न होने पर भी कई किसान दवाओं का छिड़काव कर रहे हैं।
खादों का उपयोग भी फसलों का हानिकारक हो रहा है। गेहूं की फसल में यूरिया का उपयोग किसान कर रहे हैं, लेकिन अधिक यूरिया जमीन और फसलों के लिए हानिकारक हो रहा है। खाद के कारण फसलों की इल्ली का प्रकोप बढ़ रहा है। यूरिया से फसल हरी दिखने लगती है, जिससे किसान इसका उपयोग एक से ज्यादा बार कर रहे हैं। जबकि एक एकड़ में पूरी फसल तैयार होने तक एक बोरी यूरिया पर्याप्त होता है। जानकारों के अनुसार कीटनाशक दवाओं, खाद के छिड़काव के कारण फसल मित्र जीव-जंतुओं की संख्या साल दर साल घट रही है। खाद की प्रयोग के जमीन हार्ड हो रही है। यदि इसी मात्रा में खाद, कीटनाशक डलता रहा तो भविष्य में जमीन बंजर होने की कगार पर पहुंच जाएगी। साथ ही दवाओं के ज्यादा छिड़काव के कारण अब इल्ली पर दवाओं का असर भी नहीं होता है।
कृषि विभाग के आरएइओ राकेश परिहार ने बताया कि कीटनाशक के बढ़ते उपयोग से जमीन, स्वास्थ्य, पर्यावरण को हानि पहुंच रही है। किसानों को अब जैविक खेती शुरू करनी होगी, जिसमें फसलों में मट्ठा, गौमूत्र, नीम के पानी का छिड़काव करने से उत्पादन भी अच्छा होगा और किसी प्रकार की हानि भी नहीं होगी। इल्ली को मारने के लिए खेत में जगह-जगह लकड़ी की खूूंटी लगा दें, जिससे पक्षी बैठेंगे और इल्ली को खाते हैं। कृषि वैज्ञानिक फूल की दवा डालने के लिए पूरी तरह से मना करते हैं। इस दवा से उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ती है। डॉ. आरके जैन ने बताया कि खाद, कीटनाशक दवाओं के छिड़काव वाली फसलों का सेवन करने से पेट में छाले, एलर्जी, ब्रेन संबंधी समस्या सहित लीवर, किडनी पर अर पड़ सकता है। कुछ दिनों से लीवर और किडनी की बीमारियों में इजाफा भी हुआ है। साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है। बिना किसी जांच या सलाह के लिए खेत में उर्वरकों के हो रहे अंधाधुंध इस्तेमाल से ङ्क्षचतित वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्ठी की सेहत काफी बिगड़ चुकी है, यदि इस ओर शीघ्रता से ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति बिगड़ सकती है। अच्छी बात यह है कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना किसानों में लोकप्रिय हो रही है। इस संबंध में किसान अब पहले की तुलना में काफी जागरूक हैं, लेकिन अभी काफी जागरूकता आनी शेष है।
कौन तत्व कम या ज्यादा इससे अनभिज्ञ
दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों की बात करें तो मिट्टी में बोरोन तत्व की मात्रा कम है। इसी तरह नाइट्रोजन व सल्फर की मात्रा भी कम है, लेकिन किसान इन कमियों से वाकिफ नहीं हैं। इन तत्वों की मात्रा कम होने के कारण मिट्टी की सेहत खराब होती जा रही है। इसका सीधा असर पैदावार पर पड़ रहा है। किसानों की जी तोड़ मेहनत के बावजूद उन्हें पैदावार सही मात्रा में नहीं मिल रहा है। बहादुरगढ़ और इससे सटे दिल्ली की मिट्टी क्षारीय हो चुकी है। इसका कारण इस क्षेत्र में ङ्क्षसचाई के लिए इस्तेमाल होने वाली पानी की गुणवत्ता का सही नहीं होना है। वैज्ञानिक इस स्थिति के लिए भूजल के अत्यधिक दोहन को जिम्मेदार ठहराते हैं। मिट्टी के क्षारीय होने से क्षेत्र के किसान कई फसलों से वंचित हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सबसे पहले मिट्टी के सेहत का पता लगाना जरूरी है। इस जांच से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का पता चलेगा। इससे यह भी पता चलेगा कि कौन सा तत्व कम है और कौन सा तत्व अधिक मात्रा में है। नतीजे के आधार पर संतुलित मात्रा में खाद का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह पर करें।
- नवीन रघुवंशी