18-Nov-2019 07:33 AM
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बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले 13 जिलों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकारों द्वारा बड़े-बड़े वादे किए जाते रहे हैं। ऐसा ही एक वादा है रक्षा गलियारे के निर्माण का। बुंदेलखंड के लोग इसकी आस लगाए बैठे हैं।
बुंदेलखंड में प्रस्तावित रक्षा उद्योग गलियारा न केवल इस सूखाग्रस्त इलाके को देश के औद्योगिक नक्शे पर लाएगा, बल्कि इससे मेक इन इंडिया को विस्तार देने की संभावना भी पूरी होगी। उत्तर प्रदेश में वैसे तो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स आदि सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों के अलावा आयुध बोर्ड के कारखाने कई दशकों से चल रहे हैं, पर अब तक निजी क्षेत्र ने वहां रुचि नहीं ली। तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में निजी क्षेत्र ने भारी निवेश योजनाओं को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है, पर उत्तर प्रदेश इन्हें आकर्षित करने में विफल रहा।
पिछले साल फरवरी में सरकार ने स्वदेशी रक्षा उद्योग खड़ा करने के लिए तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में रक्षा उद्योग गलियारा बनाने का एलान किया था। विगत फरवरी में प्रधानमंत्री ने बुंदेलखंड में इसकी आधारशिला भी रखी थी, पर सरकार की भ्रामक निवेश नीति के कारण रक्षा उद्योग लगाने का प्रस्ताव कागजों पर ही चल रहा है। चूंकि बुदेलखंड पिछड़ा इलाका है, इसलिए उद्यमियों की मांग है कि उन्हें वहां विशेष सुविधा और छूट दी जाए। करीब पांच हजार हेक्टेयर में यह गलियारा छह शहरों लखनऊ, कानपुर, आगरा, अलीगढ़, झांसी और चित्रकूट में विकसित होगा। इसमें रक्षा से जुड़े उद्योग लगाने वाले निवेशकों को विशेष रियायत देने की पेशकश की गई थी। पर सरकार ने गलियारे के अंदर ही निवेश करने वालों को कई तरह की छूट देने का प्रस्ताव किया है, इसलिए निवेशकों का यह सवाल जायज है कि जिन उद्योगों ने गलियारे के बाहर रक्षा इकाइयां लगाने के लिए पहले से जमीन खरीदी है, क्या उन्हें रियायतें नहीं मिलेंगी।
सरकार यदि केवल निजी क्षेत्र के उद्यमियों को आकर्षित करना चाहती है, तो आला नौकरशाहों को इन उद्यमियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर इनकी मांगों के मद्देनजर संतुलित निवेश नीति तैयार करनी चाहिए। यदि निवेशक निवेश नीति से संतुष्ट नहीं हैं, तो इसे आबाद करना मुमकिन नहीं होगा। सरकार को उम्मीद है कि इस गलियारे में 20,000 करोड़ रुपए से भी अधिक की रक्षा इकाइयां लग सकती हैं, जिनमें से करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये निवेश के प्रस्ताव उजागर भी हो चुके हैं। कारखानों की स्थापना के लिए रक्षा मंत्रालय ने खास सेक्टर विशेषज्ञों की तलाश शुरू कर दी है, जो रिसोर्स पर्सन की हैसियत से निवेशकों को दिशा-निर्देश देंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस गलियारे को जल्दी सक्रिय करने की बात कही है और स्टेक होल्डरों जैसे उद्योग संगठनों के साथ बैठकें की हैं।
इच्छुक निवेशकों को उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ सुझाव दिए हैं, पर निवेशकों का कहना है कि ये काफी नहीं हैं। राज्य सरकार को रक्षा इकाइयां लगाने वालों के साथ बैठकर उनसे सुझाव मांगने चाहिए। यह सुझाव दिया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार निवेशकों को डिफेंस ऑफसेट फेसीलिटेशन एजेंसी के साथ संपर्क और सलाह करने में सहयोग करे, ताकि वे विदेशी कंपनियों के ऑफसेट दायित्व पूरा करने के लिए इकाइयां स्थापित कर सकें। इससे राज्य के रक्षा और अंतरिक्ष वैमानिकी पार्कों में रक्षा इकाइयां निवेश करने को उत्साहित होंगी। अगले एक दशक में सेना को दो सौ अरब डॉलर से अधिक के हथियारों की जरूरत है। इसके एक बड़े हिस्से की मांग देश से और खासकर उत्तर प्रदेश से पूरी हो सके, इसके लिए सरकार को तत्परता से काम करना होगा।
डिफेंस कॉरिडोर के लिए कानपुर मे कवायद तेज हो गई है। इसके लिए नर्वल में 200 एकड़ जमीन चिन्हित कर ली गई है। भूमि को लेकर डीएम ने शासन को रिपोर्ट भेज दी है। नर्वल के अलावा और कहां कहां कितनी जमीन मौजूद है इसके बारे में अलग से ब्योरा मांगा गया है। गौरतलब है कि डिफेंस कॉरिडोर के लिए काफी समय से जमीन देखी जा रही थी। 2018 फरवरी में पहली उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश मे डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर स्थापित करने की घोषणा की थी। इसके तहत हथियार और रक्षा उपकरणों के कारखाने स्थापित किए जाएंगे। इससे करीब 2.5 लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। कॉरिडोर भारत सरकार के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत बनाया जाएगा।
डिफेंस कॉरिडोर से होंगे ये फायदे
किसी भी शहर में डिफेंस बनने से यह फायदा होता है कि वहां आसपास के इलाकों के लोगों को भी रोजगार मिलता है। दूसरी ओर इससे डॉमेस्टिक प्रोडेक्शन को भी बढ़ावा मिलता है। रक्षा औद्योगिक गलियारा बनाने का मकसद विभिन्न रक्षा औद्योगिक इकाइयों के बीच संपर्क तय करना होता है। इस डिफेंस कॉरिडोर में ड्रोन, वायुयान और हेलीकॉप्टर असेंबलिंग सेंटर, डिफेंस पार्क, बुलेटप्रुफ जैकेट, रक्षा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को बढ़ावा देने के उपकरण, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, डिफेंस इनोवेटिव हब आदि होगें। डिफेंस कॉरिडोर अलीगढ़ से शुरू होकर आगरा, झांसी, चित्रकूट, कानपुर होते हुए लखनऊ पहुंचेगा। इस डिफेंस कॉरिडोर में देसी विदेशी कंपनियां करीब 20 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेंगी। पहले चरण में बुंदेलखंड के चित्रकूट, जालौन, झांसी के अलावा अलीगढ़ में काम चल रहा है।
- सिद्धार्थ पांडे