18-Nov-2019 07:26 AM
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मप्र में वक्त है बदलाव के साथ सत्ता में आई कांग्रेस ने अपने 11 माह के शासनकाल में पूरा माहौल अपने पक्ष में कर लिया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। इसलिए अब प्रदेश में राजनीतिक जमावट का वक्त आ गया है। कांग्रेस की देखा देखी भाजपा भी अब अपने संगठन को मजबूत करने के लिए बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है। प्रदेश की राजनीति में बड़े बदलाव दिखेंगे।
राजनीतिक दल नगरीय निकाय एवं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए जमावट कर रहे हैं। इससे पहले प्रदेश की सियासत में बड़ा बदलाव होने की संभावना है। यह बदलाव चालू साल समाप्त होने तक हो सकता है। यानी अगले 50 दिन के भीतर मप्र के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस एवं भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष मिल सकते हैं। साथ ही प्रदेश सरकार कांग्रेस के गिने-चुने नेताओं को निगम मंडलों में नियुक्ति दे सकती है। यदि प्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी तौर चल रही खींचतान जारी रही तो मुख्यमंत्री कमलनाथ जल्द ही अपने मंत्रिमंडल का विस्तार एवं फेरबदल कर सकते हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के 17 दिसंबर 2018 को मुख्यमंत्री बनने के बाद से कांग्रेस में नई पीसीसी चीफ को लेकर मशक्कत चल रही है। लेकिन नेताओं की आपसी गुटबाजी और खींचतान के चलते हाईकमान पीसीसी चीफ को लेकर फैसला नहीं कर पाया है। लोकसभा चुनाव के बाद कमलनाथ पीसीसी चीफ का पद छोडऩे का ऐलान भी कर चुके हैं, लेकिन हाईकमान के निर्देश पर वे यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान मप्र कांगे्रस के अध्यक्ष के लिए कई बार बैठक कर चुका है, लेकिन हर बार नाम पर सहमति नहीं बन पाई। संभवत:साल के अंत तक इस पर फैसला हो सकता है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ निकाय-चुनाव से पहले मंत्रिमंडल विस्तार एवं फेरबदल कर सकते हैं। जिसमें एक दर्जन मौजूदा मंत्रियों के विभाग बदले जाने की संभावना है। जबकि आधा दर्जन करीब नए विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। निगम-मंडलों में समायोजित कर सरकार असंतुष्ट विधायकों को संतुष्ट करने का फॉर्मूला लेकर आई है। कांग्रेस सरकार भले ही बहुमत में आ गई हो लेकिन वो अपने सहयोगी दलों और निर्दलीय विधायकों को भी साथ लेकर चलना चाहती है। विधायकों की सरकारी संस्थाओं में ताजपोशी से मुख्यमंत्री ये संदेश देना चाहते हैं कि उनके लिए सहयोगी विधायक भी आज भी उतने ही अहम हैं जितने कल थे। कुछ को मंत्री पद तो कुछ को टिकट न दे पाने के बदले में निगम-मंडल की कुर्सी दी जाएगी। जेवियर मेड़ा को टिकट के बदले निगम का अध्यक्ष बनाया जाएगा तो दीपक सक्सेना को भी निगम की कमान दी जाएगी। निर्दलीय विधायकों में सुरेंद्र सिंह शेरा तो सपा के राजेश शुक्ला और बसपा के संजीव कुशवाहा को भी निगम-मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में विधानसभा परिषद बनाने वचन दिया था। इस पर मंथन के लिए एक कमेटी गठित कर दी है। संभवत: यह कमेटी अगले एक महीने के भीतर रिपोर्ट दे देगी। विधान परिषद के जरिए कांगे्रस अधिसूचित क्षेत्र के सामान्य एवं ओबीसी वर्ग के नेताओं को विधानसभा लाना चाहती है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया ने राजधानी भोपाल में डेरा जमाकर विभिन्न कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों व अन्य संगठन से जुड़े पदाधिकारियों से कांग्रेस के भावी स्वरूप, निगम-मंडलों में होने वाली अशासकीय नियुक्तियों के संबंध में रायशुमारी की। यह तो उनकी रायशुमारी के बाद सामने आने वाले निष्कर्षों से ही पता चल सकेगा कि इससे प्रदेश में कांग्रेस के राह आसान होगी या उलझेगी। खासकर प्रदेश कांग्रेस के भावी अध्यक्ष को लेकर जो निर्णय होगा वह कांग्रेस की राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित करेगा, इसलिए सबकी नजर उसी पर टिकी हुई है कि वे अपने इस मंथन से ऐसा कौन सा नवरत्न बाहर निकालेंगे जो कांग्रेस को मजबूती प्रदान करेगा। यह भी देखने वाली बात होगी कि उनकी रायशुमारी के बाद प्रदेश अध्यक्ष पद के एक सशक्त दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह आसान होगी या कोई अन्य नाम सामने आएगा। इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की क्या भूमिका होगी इसे लेकर भी पत्ते खुल पाएंगे। नया प्रदेश अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा होगा या पुरानी पीढ़ी का कोई नेता इसकी बागडोर संभालेगा।
कार्यकर्ताओं का मानस टटोलने की कोशिश कर रहे थे ताकि सत्ता व संगठन की इन भावनाओं को समझ सकें कि आखिर किसे प्रदेश अध्यक्ष बनाना है और निगम-मंडलों में किसकी नियुक्तियां होना है। जहां तक मंत्रिमंडल विस्तार का सवाल है तो वह मुख्यमंत्री कमलनाथ का विशेषाधिकार है और कमलनाथ इतने पुराने व अनुभवी नेता हैं कि उन्हें इसके लिए किसी के परामर्श की आवश्यकता नहीं है कि किसे मंत्रिमंडल में लिया जाए और किसे नहीं। गुटीय संतुलन साधने में भी उन्हें महारत हासिल है इसलिए जहां तक मंत्रियों के चयन का सवाल है वह कमलनाथ करेंगे और उस पर मुहर सोनिया गांधी की लगेगी। वहीं प्रदेश पदाधिकारियों और निगम-मंडलों में होने वाली नियुक्तियों के संबंध में बाबरिया सोनिया गांधी को फीडबैक देंगे और इसके आधार पर ही सत्ता व संगठन का भावी खाका सामने आएगा।
मुख्यमंत्री कमलनाथ से भी बाबरिया ने चर्चा की है। यह सवाल भी उठ रहे है कि पिछले पन्द्रह साल तक लगातार भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष करने वाले जो नेता टिकट से वंचित हो गए उन्हें ज्यादा प्राथमिकता मिलेगी या कांग्रेस के सत्ता में आने के साथ अचानक जो चेहरे सक्रिय हो गए हैं उनको तवज्जो मिलेगी। नेताओं की गणेश परिक्रमा करने वालों को पदों की रेवडिय़ां मिलेंगी या मैदानी जनाधार वाले उन कांग्रेसजनों को ज्यादा तवज्जो मिलेगी जो नेताओं से कम लेकिन जमीन से ज्यादा जुड़े हुए हैं। बाबरिया ने कहा है कि नियुक्तियां सिफारिश से नहीं बल्कि काम के आधार पर मिलेंगी। उन्होंने कहा कि संगठन की पूरी समीक्षा की जा रही है और जल्द ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का भी फैसला हो जाएगा। बाबरिया को ऐसे चेहरे पहचानने में इसलिए कठिनाई नहीं होगी क्योंकि वे उन सब चेहरों को जानते-पहचानते हैं जो संघर्ष के समय साथ थे। बाबरिया ने कांग्रेस का कायाकल्प करने और मतदान केन्द्र तक पार्टी को मजबूत करने का जो ब्लू प्रिंट तैयार किया था उसे अमलीजामा पहनाकर धरातल पर उतारने का उन्हें अधिक अवसर मिलेगा, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई है इसलिए वातावरण अनुकूल है। मंडलम् और बूथ स्तर तक नए सिरे से कांग्रेस को संगठित करने का जो अभियान उन्होंने प्रारंभ किया था और चुनाव की मजबूरियों के चलते उस पर अमल करना संभव नहीं हुआ था अब वह आसानी से हो सकता है क्योंकि कांग्रेस के पास चार साल का ऐसा समय है जिसमें वह जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत कर सकती है।
हाल की कुछ सियासी घटनाओं को देखें तो यहीं लगता है कि कमलनाथ के दांव में हमेशा भाजपा फंस जा रही है। भाजपा की हर सियासी चाल को कमलनाथ मात दे दे रहे हैं। हाल में जो दांव उन्होंने चले हैं, उससे भोपाल से लेकर दिल्ली तक में बैठे भाजपा के दिग्गज बेदम हैं। हालांकि मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सीएम कमलनाथ को यह चेतावनी दे रहे हैं कि आप आग से खेल रहे हैं। लेकिन कमलनाथ भाजपा को मध्यप्रदेश में पानी पिलाए हुए हैं। कमलनाथ ने भाजपा के विरोध के बाद भी नगर निगम महापौर और नगर पालिका अध्यक्षों के चुनाव पार्षदों के जरिए कराने के अध्यादेश को राज्यपाल की मुहर लगवाकर अपनी ताकत दिखा दी। महापौर और अध्यक्षों के चुनाव सीधे जनता से कराए जाने की स्थिति में भाजपा अपने को मजबूत पा रही थी और कांग्रेस को झटका लगने की संभावना थी। यही वजह थी कि भाजपा महापौर और अध्यक्षों के अप्रत्यक्ष चुनाव का विरोध कर रही थी। ऐसे में कमलनाथ ने प्रक्रिया ही बदल दी। 1998 में प्रदेश की दिग्विजय सरकार ने नगर निगम पालिक विधि संशोधन अध्यादेश लाकर अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को बदल कर प्रत्यक्ष प्रणाली लागू की थी। इसके बाद से सीधे जनता के वोट से महापौर और अध्यक्ष चुने जाने लगे। भाजपा के राज में पूरे 15 साल यही प्रणाली चलती रही।
जल्द हो सकती है निगम मंडलों में नियुक्तियां
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से निगम-मंडल, बोर्ड, प्राधिकरणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। अभी तक सिर्फ अपेक्स बैंक के अध्यक्ष की नियुक्ति हुई है। कांग्रेस आलाकमान से जुड़े सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री कमलनाथ अगले एक महीने के भीतर करीब आधा दर्जन निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियां कर सकते हैं। मुख्यमंत्री उन्हें निगम-मंडल एवं प्राधिकरणों में नियुक्तियां करने के पक्ष में हैं जो मुनाफा कमा रहे हैं। राजनीतिक समीकरण साधने के लिए कांग्रेस मौजूदा विधायकों को निगम-मंडलों का अध्यक्ष बनाने की तैयारी कर रही है। कई विधायकों ने सीएम से मांग की थी उनके अधिकार बढ़ाए जाएं ताकि अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास के कामों में उनको दिक्कतें न आएं। आने वाले समय में निगम-मंडल में राजनीतिक नियुक्तियां की जानी हैं। ऐसे में सरकार का मत है कि इसमें विधायकों को जगह दी जा सकती है। एआईसीसी ने इस संबंध में अपनी सहमति जता दी है लेकिन एक शर्त भी लगा दी है। एआईसीसी का कहना है कि जहां राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से जरूरी होगा वहीं विधायकों को निगम-मंडल में कुर्सी दी जाएगी।
विधायक सरकारी स्कूलों को गोद लेंगे
सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के उद्देश्य से प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी तरफ से एक और पहल की है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कांग्रेस के विधायक अपने-अपने क्षेत्रों के एक-एक स्कूलों को गोद लेंगे। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को गांवों के विकास के लिए एक-एक गांव गोद लेने को कहा था, इसी तर्ज पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के उद्देश्य से अपनी ही पार्टी के विधायकों को आगे आने को कहा है। पिछले दिनों कांग्रेस विधायकों को मुख्यमंत्री ने स्कूली शिक्षा मंत्री प्रभुलाल चौधरी के माध्यम से संदेश दिया कि वे अपने अपने क्षेत्र में आने वाले एक-एक सरकारी स्कूलों को चिन्हित करें और उसे गोद लें।
राकेश सिंह रहेंगे या जाएंगे
भाजपा में संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। मंडल में चुनाव प्रक्रिया 8 एवं 9 नवंबर को होना थी, लेकिन अयोध्या फैसले के चलते देश भर में कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के मद्देनजर भाजपा ने मंडल स्तर का चुनाव कार्यक्रम टाल दिया था। अब जल्द ही चुनाव की नई तिथि घोषित की जाएगी। इसके बाद जिले और फिर दिसंबर के अंत में प्रदेशाध्यक्ष के नाम पर मुहर लग जाएगी। मौजूदा भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह को फिर से कमान मिलने की संभावना है,लेकिन आधा दर्जन अन्य नेता भी प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। निकाय एवं पंचायत चुनाव से पहले भाजपा की नई कार्यकारिणी बनकर तैयार हो जाएगी। जिसमें कई नई चेहरे शामिल होंगे।
- इन्द्र कुमार