धोखेबाजों का अड्डा
18-Nov-2019 07:04 AM 1234964
किसानों की मदद के लिए संचालित किए जा रहे प्रदेश के सहकारी बैंक और इसी क्षेत्र की समितियां भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी हैं। इसका अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और सवा चार हजार समितियों में अब तक दो हजार से ज्यादा गबन और धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं। खास बात यह है कि इन मामलों में अब तक 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की अनियमितताएं पाई गई हैं। अगर इसमें 118 करोड़ रुपए का निवेश घोटाला और फर्जी कर्ज के 50 से ज्यादा मामलों को भी शामिल कर दिया जाए तो यह राशि 400 करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाती है। इनमें से अब तक सरकार महज 70 करोड़ रुपए की गड़बडियों से जुड़े 400 मामलों की जांच ही पुलिस को सौंप पाई है। इन मामलों की जांच भी पुलिस की लापरवाही की भेंट चढ़ती दिख रही है। यही वजह है कि अब सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को सीएम कमलनाथ से पुलिस मुख्यालय के अधीन आने वाली को-ऑपरेटिव फ्रॉड विंग को सहकारिता विभाग के अधीन करने की मांग उठानी पड़ी है। कहा जा रहा है कि सीएम भी इससे सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं। इनमें से अधिकांश मामले तो जय किसान फसल ऋण मुक्ति योजना से संबधित हैं। इसे देखते हुए सहकारिता विभाग ने पूरे प्रदेश से जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में हुए गबन व धोखाधड़ी के मामलों की रिपोर्ट बुलवाई थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 30 सितंबर 2019 तक जिला बैंक स्तर के लगभग 70 करोड़ रुपए के 216 गबन व धोखाधड़ी के मामले लंबित है। इनमें सबसे बड़ा मामला 21 करोड़ रुपए का रीवा बैंक से जुड़ा है। यहां बैंक की शाखाओं में प्रबंधक स्तर के अधिकारियों ने बैंक के सस्पेंस अकाउंट से राशि निकलकर अपने चहेतों को बांट दी। जांच में इसका खुलासा हुआ और मामला पुलिस को सौंपा गया। इसी तरह मंदसौर बैंक में 10 करोड़ 59 लाख रुपए का मामला सामने आया। वहीं एक हजार 882 समितियों में 125 करोड़ रुपए की अनियमितता उजागर हुई। 369 मामले पुलिस में चल रहे हैं। बंैक और समितियों के 263 मामलों में सिर्फ 21 करोड़ रुपए की वसूली हुई है। सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि समितियों के स्तर पर फर्जी प्रकरण बनाकर कर्ज निकालने, अनाज खरीदी और खाद वितरण में गड़बड़ी के मामले ज्यादा हैं वहीं बैंक स्तर पर फर्जी मामले बनाकर बड़े ऋण देने, सस्पेंस अकाउंट की राशि निकालकर चहेतों को देना, जैसे मामले अधिक हैं। बैंक स्तर पर प्रारंभिक पड़ताल के बाद गबन और धोखाधड़ी के संगीन मामलों की जांच को आपरेटिव फ्राड को सौंपी थी लेकिन नतीजे संतोषजनक नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार समिति स्तर के मामलों को देखा जाए तो एक अप्रैल 2018 से 30 सितंबर 2019 तक 12 मामलों का निराकरण हुआ। इसमें 1882 मामले अभी भी लंबित हैं। बीते साल तीन माह की अवधि के दौरान जिला सहकारी बैंक के चार अफसरों के गठजोड़ द्वारा किए गए 111 करोड़ रुपए के घोटाले के मामले में अब एफआईआर दर्ज करने की तैयारी की जा रही है। इस मामले की जांच अब लगभग पूरी हो चुकी है। सरकारी स्तर पर सहकारिता विभाग से कराई गई जांच की रिपोर्ट ईओडब्ल्यू को सौंप दी गई है। इसके साथ ही घोटाले से जुड़े करीब पांच सौ पेज के दस्तावेज भी दिए गए हैं। यह घोटाला मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अप्रैल से जून के बीच वर्ष 2018 में अंजाम दिया गया था। गौरतलब है कि बैंक के तत्कालीन मैनेजर व उपायुक्त आरएस विश्वकर्मा ने 111.29 करोड़ रुपए डिफाल्टर कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस लिमिटेड (आईएफएसएल) में निवेश किया था। मामले में विश्वकर्मा के साथ बैंक के शाखा प्रबंधक सुभाष शर्मा, अनिल भार्गव और सीए आरएस सूद की भी मिलीभगत पाई गई है। बैंक के जिम्मेदार अफसरों ने 9, 16, 26 अप्रैल और 7 जून 2018 को डिफाल्टर कंपनी आईएफएसएल में रकम जमा किए थे। इस अवधि के दौरान बैंक के अफसरों ने कुल 131 करोड़ रुपए जमा किए थे, उसमें से 111.29 करोड़ रुपए डूबत खाते में चले गए। अब कंपनी से ब्याज तो दूर, मूल राशि मिलने की उम्मीद भी नहीं बची है। मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई गई थी। इस समिति में अपर आयुक्त आरसी घिया, अपेक्स बैंक के एमडी प्रदीप नीखरा और मैनेजर व वित्त प्रबंधन के प्रभारी आरबीएन पिल्लई को शामिल किया गया था। तीनों अफसर जांच कर रहे थे, उसी दौरान समिति में दो अफसरों को और शामिल किया गया था। इनमें संयुक्त आयुक्त अरविंद सिंह सेंगर व एचएस बघेल शामिल है। समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट अप्रैल 2019 में सरकार को सौंप दी थी। तो दोषी अफसर अदालत चले गए। हाईकोर्ट से अफसरों को स्टे मिल गया था। स्टे के बाद सरकार ने भी अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखा है। सरकार का पक्ष सुनने के बाद हाईकोर्ट ने स्टे हटा दिया था। लिहाजा ईओडब्ल्यू ने जांच शुरू कर दी है। ईओडल्यू ने इस मामले में शिकायत दर्ज की थी। जांच के बाद अब मामले में एफआईआर की तैयारी है। निवेश के लिए नहीं लिया था अनुमोदन घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराए गए जिला सहकारी बैंक के चारों अफसरों ने निवेश के नाम पर खूब मनमानी की थी। प्राइवेट फर्म में निवेश करने के लिए अफसरों ने संचालक मंडल से अनुमोदन तक नहीं लिया था। सहकारी बैंकिंग के बायलाज और नियमों का भी पालन नहीं किया गया था। सरकारी अथवा निजी बैंकों में राशि का निवेश करने का प्रावधान है, लेकिन तत्कालीन बैंक अधिकारियों ने एक डिफाल्टर और नान बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी में निवेश कर दिया था। सहकारिता विभाग के अफसरों ने एक और डिफाल्टर कंपनी में निवेश कर दिया था। सरकार ने ईओडब्ल्यू को जो दस्तावेज सौंपे हैं, उसमें नान बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) का भी जिक्र है। अफसरों ने 331 करोड़ रुपए की कुल राशि का निवेश किया था, उनमें एनबीएफसी का नाम भी शामिल है। सबसे ज्यादा रकम आईएफएसएल में जमा की गई थी। अधिकारियों ने जिस कंपनी में निवेश किया था, वह 91 हजार करोड़ रुपए की कर्जदार है। कंपनी पर 57 हजार करोड़ रुपए तो अकेले बैंक का बकाया है। अब तक की पड़ताल में जो तथ्य सामने आए हैं, उस हिसाब से सहकारी बैंक के पैसों सहित अन्य संस्थाओं के कंपनी पर करीब 91 हजार करोड़ रुपए का बकाया है। धीरे-धीरे कंपनी की साख गिरती गई और सितंबर 2018 तक कंपनी की रेटिंग खासा नीचे चली गई थी। लिहाजा भोपाल सहकारी बैंक के भी 111.29 करोड़ रुपए डूब गए। - बृजेश साहू
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