18-Nov-2019 07:25 AM
1234990
उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन (यूपीपीसीएल) के कर्मचारी भविष्य निधि घोटाले में गत दिनों इम्प्लॉईज ट्रस्ट के चेयरमैन और प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार को उनके पद से हटा दिया गया है। इसके साथ ही पांच आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी का भी तबादला किया गया है। इस मामले में यूपीपीसीएल द्वारा पत्र लिखकर भारतीय रिजर्व बैंक से मूलधन और ब्याज को वापस कराने के लिए बिना देरी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। बीते 5 नवंबर को प्रदेश भर में बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं ने अपने भविष्य निधि के करीब 2,600 करोड़ रुपए के गलत तरीके से निजी संस्था डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में निवेश को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। जिसके बाद सरकार ने इस मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई की है। इस घोटाले में यूपीपीसीएल के पूर्व वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और इम्पलाइज ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता पहले ही पुलिस की गिरफ्त में हैं। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर लगातार सरकार को घेरने में लगा है तो वहीं सरकार अपना दामन साफ बताने की कोशिश में लगी है। यूपी में मौजूदा योगी सरकार का कहना है कि ये घोटाला अखिलेश यादव की सरकार में हुआ तो वहीं, अखिलेश यादव का कहना है कि उनकी सरकार के कार्यकाल में पीएफ का एक भी पैसे का गलत इस्तेमाल नहीं हुआ है।
पीएफ घोटाले के इस खेल की शुरुआत साल 2014 में हुई। 21 अप्रैल 2014 को यूपीपीसीएल ट्रस्ट के बोर्ड ऑफ ट्रस्ट्रिस की बैठक में यह फैसला लिया गया कि अधिक ब्याज के लिए पीएफ के पैसों को सरकारी बैंकों की बजाय निजी बैंको में निवेश किया जाए। इसके साथ ही यह भी तय किया गया कि पीएफ का 5 से 10 फीसदी हिस्सा निजी बैंकों में निवेश किया जा सकता है। इस समय तक सारी बात बैंकों में निवेश की थी जिसमें खतरा नहीं था। कहानी आगे बढ़ी और दिसंबर 2016 में तत्कालीन यूपीपीसीएल के चेयरमैन संजय अग्रवाल ने तय किया कि पीएफ के यह पैसे सरकारी हाउसिंग स्कीम में लगाए जाएंगे। इसके बाद कॉर्पोरेशन ने पैसे पंजाब नेशनल बैंक के हाउसिंग स्कीम और एलआईसी हाउसिंग स्कीम में लगाए।
विवादित निवेश की शुरुआत मार्च 2017 में हुई। ट्रस्ट के सचिव पीके गुप्ता और वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी ने डीएचएफएल में पैसे लगाने की मंजूरी दी। इसके बाद से मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक इसमें पैसे लगाए जाते रहे। कुल 4,121 करोड़ का निवेश डीएचएफएल में किया गया। यह पैसे दो अलग-अलग एफडी के तौर पर निवेश किए गए थे। पहली एफडी 1,854 करोड़ की थी जिसका निवेश एक साल के लिए था जबकि दूसरी 2,268 करोड़ की एफडी थी जो तीन सालों के लिए निवेश किया गया। एक साल वाली एफडी दिसंबर 2018 में पूरी हो गई जिसके पैसे भी ट्रस्ट को वापस मिल गए लेकिन तीन साल वाली एफडी मार्च 2020 में पूरी होगी, जिस पर फिलहाल तलवार लटक गई है। गड़बड़ी की पहली सुगबुगाहट 10 जुलाई 2019 को सुनाई दी। यूपीपीसीएल के अध्यक्ष आलोक कुमार के नाम एक गुमनाम चिट्टी आई, जिसमें इस बात का जिक्र हुआ कि कर्मचारियों के भविष्य निधि का दुरुपयोग किया गया है। 12 जुलाई को इस मामले की जांच के लिए पॉवर कॉर्पोरेशन ने एक कमेटी का गठन किया।
खबरों के मुताबिक करीब 17 दिनों की जांच के बाद कमेटी ने बताया कि यूपीपीसीएल के 45,000 कर्मचारियों के लगभग 2,000 से ज्यादा पैसों के निवेश में अनियमितता हुई है। भविष्यनिधि का 65 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ 3 कंपनियों में लगाया गया है और इस पूंजी का भी 99 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ एक कंपनी डीएचएफएल में लगाया गया है। यूपीपीसीएल के एक अधिकारी ने बताया कि इस मामले में 2 नवंबर 2019 को लखनऊ के हजरतगंज थाने में उत्तर प्रदेश सरकार ने डीएचएफएल में निवेश की अनुमति देने वाले तत्कालीन निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी और महानिदेशक पीके गुप्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। जिसके बाद पुलिस ने दोनों को तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। वित्त मामलों के जानकार अमित अरोड़ा का कहना है कि डीएचएफएल पहले ही अपनी वित्तीय गड़बडिय़ों के चलते जांच के दायरे में है। मुंबई हाईकोर्ट ने इसके लेन-देन पर रोक लगा रखी है। पिछले एक साल में डीएचएफएल की माली हालत लगातार खराब होती रही है। 2018-19 के चौथे क्वाटर में आई कंपनी की वित्तीय रिपोर्ट में 2,223 करोड़ का नुकसान दिखाया गया है। कंपनी ने जो कर्जा लिया है उसकी किस्त जमा नहीं कर पा रही है और ना ही कोई नया लोन देने के लिए इसके पास पैसे हैं। डीएचएफएल पर बैंकों का करीब 40,000 करोड़ का कर्जा हो गया है। इस घोटाले की जानकारी सामने आने के बाद 1 अक्टूबर को मामला कॉर्पोरेशन के सतर्कता विंग को सौंप दिया गया। इस मामले ने तूल पकड़ा तो कॉर्पोरेशन ने 10 अक्टूबर को पीएफ ट्रस्ट के सचिव पीके गुप्ता को निलंबित कर दिया। इसके बाद 2 नवंबर को योगी आदित्यनाथ ने ऊर्जा मंत्री श्रीकांत दास को मामले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया। जिसके बाद इस मामले की जांच सीबीआई से करवाने के लिए ऊर्जा मंत्री ने पत्र लिखा।
डीएचएफएल पर भी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप
डीएचएफएल पर इससे पहले भी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं जिस पर प्रवर्तन निदेशालय 19 अक्टूबर 2019 से जांच कर रहा है। कंपनी के नॉन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर धीरज वाधवान उर्फ बाबा दीवान के साथ इकबाल मिर्ची के संबंधों ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थी। 2019 में एक स्टिंग के जरिए दावा किया था कि डीएचएफएल ने 31,000 करोड़ रुपए का घोटाला किया है। यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र का घोटाला है और इसने भाजपा को अवैध तरीके से चंदा दिया है। हाउसिंग लोन देने वाली कंपनी डीएचएफएल ने कई सेल कंपनियों को करोड़ों रुपए का लोन दिया और फिर वही रुपया वापस उन्हीं कंपनियों के पास आ गया, जिनके मालिक डीएचएफएल के प्रमोटर हैं।
- मधु आलोक निगम