19-Oct-2019 08:08 AM
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केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने के बाद भी उपचुनाव में पार्टी के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती है। प्रदेश की 11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में से पांच सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा को बड़ी चुनौती मिल रही है। उपचुनाव को अक्सर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में झुका हुआ माना जाता रहा है। इस पर भी यदि सत्तारूढ़ दल बेहद मजबूत स्थिति में हो तो फिर क्या कहना। वोटों की गिनती से पहले ही जनता को नतीजे मालूम होते हैं। उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर इसी महीने होने जा रहे उपचुनाव को इस नजरिये से देखें तो सत्ताधारी बीजेपी के खाते में सभी सीटें जाती हुई दिख रही हैं। लेकिन, बीजेपी लाख मजबूत होने के बाद भी उपचुनाव में सभी सीटों पर उसकी राह आसान नहीं है। खासकर घोसी, जलालपुर, गंगोह, जैदपुर और रामपुर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी फंसी हुई है।
सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए उपचुनाव की चुनौती पूरब से लेकर पश्चिम तक बनी हुई है। सबसे पहले बात करते हैं मऊ जिले की घोसी सीट की। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने घोसी सीट काफी कम अंतर से जीता था। तब बीजेपी के फागु चौहान महज सात हजार वोटों से सीट जीत पाये थे। पार्टी की मजबूत स्थिति के बावजूद जीत का इतना कम अंतर होना इस बार उपचुनाव लड़ रहे विजय राजभर के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। राजभर विधायकी के चुनाव में पहली बार उतरे हैं। ये भी कम बड़ा चैलेंज नहीं है।
उधर, अंबेडकर नगर में तो बीएसपी और एसपी का किला ध्वस्त करने के लिए बीजेपी झटपटा रही है। दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण बाहुल्य इस जलालपुर सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में रनर अप रहने के बाद बीजेपी की लालसा बढ़ गयी है। उसे लग रहा है कि इस बार उपचुनाव में वो इस किले को फतह कर लेगी। इसी उम्मीद के चलते इस बार उसकी चुनौती पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि इस उपचुनाव में भी पार्टी ने मैदान नहीं मारा तो संकट और गहरा जाएगा।
पश्चिमी यूपी में हमेशा से चौंकाने वाले नतीजे सामने आते रहे हैं। सहारनपुर की गंगोह सीट भी बीजेपी कभी हल्के में नहीं ले सकती। यहां मुकाबला लगभग हर चुनाव में चतुष्कोणीय (चौतरफा) रहा है। बीजेपी, एसपी और बीएसपी के साथ-साथ इस जिले में या यूं कहें कि इस सीट पर कांग्रेस भी काफी मजबूती से लड़ती रही है। आंकड़ों पर गौर करिए, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 39 फीसदी, कांग्रेस को 24 फीसदी जबकि एसपी और बीएसपी को 18-18 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप कुमार 14 फीसदी वोटों के अंतर से तब चुनाव जीते थे। इस सीट पर हमेशा से इस बात का डर रहा है कि इतने वोटों का किसी के पक्ष में स्विंग होना कोई बड़ी बात नहीं है, यदि सामने वाला कैंडिडेट सही रणनीति बना ले जाए। ऐसे में गंगोह सीट पर उपचुनाव लड़ रहे बीजेपी के कीरत सिंह के लिए भी मुकाबला इतना आसान नहीं है।
लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले की जैदपुर सीट भी बीजेपी के लिए हलवा नहीं है। उसका मुकाबला बाराबंकी से सांसद रहे पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया से है। पुनिया परिवार का बाराबंकी में खासा असर है। हालांकि बीजेपी के हाथों तनुज पुनिया दो बार बाराबंकी से हार चुके हैं लेकिन, अभी भी उन्होंने दम-खम नहीं छोड़ा है। 2017 का विधानसभा चुनाव तनुज 30 हजार वोटों से हार गए थे। दस फीसदी वोटों का अंतर वैसे तो बड़ा होता है लेकिन, इतना नहीं कि इसके सहारे आराम से जीत की उम्मीद की जा सके। हमीरपुर उपचुनाव की नजीर बीजेपी के सामने है जहां उसकी जीत का अंतर उपचुनाव में 2017 के मुकाबले कम हो गया। ऐसे में जैदपुर की सीट बीजेपी के अंबरीश रावत के लिए संघर्ष का विषय है।
बीते तीन-चार दशकों से रामपुर और आज़म खान जैसे एक ही शख्स के दो नाम होकर रहे गये हैं। एक का नाम लीजिए तो दूसरे का नाम अपने आप जुबां पर आ जाता है। आजम खान साल 1980 से इस सीट पर अंगद की तरह अपना पैर जमाए बैठे हैं। एक बार सिर्फ 1996 में कांग्रेस के अफरोज अली खान ने आजम खान को पटखनी दी थी। तब से लेकर अब तक आजम अजेय बने हुए हैं। बीजेपी की हालत तो इस सीट पर पहले से ही पतली रही है। वो हमेशा तीसरे या चौथे नंबर पर रही है लेकिन, 2017 में बड़ी छलांग लगाते हुए उसने दूसरा स्थान कब्जा किया था। यह बताने की जरूरत नहीं कि रामपुर सीट बीजेपी के टॉप एजेंडे में है। ऐसे में बीजेपी के भारत भूषण गुप्ता उपचुनाव में जीत जाते हैं तो ना सिर्फ यूपी बल्कि नेशनल लेवेल पर फेम पाएंगे।
कौन बिगाड़ रहा है उत्तर प्रदेश का माहौल ?
उत्तर प्रदेश के लिए तंज में कहा जाता है कि यहां का आदमी कुछ करे न करे सियासत जरूर करता है और जो सियासत करते हैं वो कुछ नहीं करते। उपचुनावों के लिहाज से सियासी दल हर उस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं जो जातीय या सियासी समीकरण के लिहाज से उनको सूट करते हों। इस समय प्रदेश में कानून-व्यवस्था मुद्दा बना हुआ है। उपचुनाव के वक्त में सियासी लिहाज से ये मुद्दा इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि कानून व्यवस्था के मुद्दे पर विपक्ष सरकार को लगातार घेर रहा है। साथ ही ये मसले सरकार की साख पर सीधे-सीधे सवाल खड़े कर रहे हैं। बीते कई दिनों से कानून व्यवस्था को लेकर सरकार सवालों के घेरे में है। झांसी में खनन कारोबारी पुष्पेंद्र यादव के मामले में सरकार पहले से घिरी हुई है। प्रदेश में युवा नेताओं की ताबड़तोड़ हत्याओं ने पुलिस की लापरवाही और कानून व्यवस्था के लिहाज से बड़ी चुनौती खड़ी की है।
- मधु आलोक निगम