यूरिया की कालाबाजारी
18-Nov-2019 07:04 AM 1234829
कर्ज माफी, बोनस, भावांतर के भंवर में फंसे मप्र के किसान प्राकृतिक आपदा और उपज के दाम की मार झेल ही रहे हैं की उन पर अब खाद की कालाबाजारी की भी मार पडऩे वाली है। रबी की खेती की तैयारी में जुटा किसान खाद-बीज की खरीदी में भी ठगा रहा है। प्रदेश में वर्तमान में यूरिया खाद की जिस तरह कालाबाजारी की जा रही है उससे अनुमानत: प्रदेश के किसानों को बड़ी चपत लगने का अनुमान है। कृषि विभाग से मिला जानकारी के अनुसार देश में सलाना 320 लाख मीट्रिक टन यूरिया की खपत होती है। इसमें से 50 से 60 लाख मीट्रिक टन आयात किया जाता है। जहां तक मप्र की बात है तो यहां करीब 15 लाख 40 हजार मीट्रिक टन यूरिया की खपत रबी फसलों की खेती में संभावित है। लेकिन शासन स्तर पर तय दरों (यूरिया लगभग 266.50 रुपए प्रति बोरी) में बड़ी मुश्किल से मिलने वाला खाद बाजार में बढ़ी हुई दरों (लगभग 320 रुपए तक) में आसानी से मिल रहा है। यानी एक बोरी पर किसान को करीब 53 रुपए अधिक देने पड़ रहे हैं। वर्ष 2018 में खाद की किल्लत और कालाबाजारी को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इस बार विशेष सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है, लेकिन रबी सीजन की शुरुआत ही में यूरिया की कालाबाजारी और किसानों के साथ धोखाधड़ी की शिकायतें प्रशासन के पास पहुंचने लगी हैं। शासन के पास पर्याप्त खाद होने के बाद भी किसान परेशान हो रहे हैं। क्योंकि सीजन से पहले ही निजी सप्लायरों ने खाद का स्टॉक कर लिया है। खाद एवं यूरिया के नाम पर किसानों के साथ धोखा करने एवं खाद बीज एवं यूरिया को अवैधानिक रूप से कालाबाजारी करने के संबंध में लिखित शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार, प्रदेश का कोई भी ऐसा जिला नहीं है जहां खाद की कालाबाजारी के मामले सामने न आ रहे हों। खास बात यह है कि ब्लॉक और जिला स्तर पर ऐसे तमाम बड़े सप्लायर्स पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। उल्टा कृषि विभाग के ब्लॉक स्तर के जिम्मेदार अधिकारी संबंधित दुकानदारों को आगाह कर देते हैं। भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि खाद का व्यापक धंधा करने के मकसद से हर बार इसकी कालाबाजारी होती है। बड़े स्तर पर सप्लायर्स जिलों के अधिकारियों से सेटिंग कर लेते हैं, हॉफ सीजन में स्टॉक जमा लेते हैं इसके बाद उन्हें निजी तौर पर मनमानी दरों में उस वक्त बेचते हैं जब किसानों को इसकी जरूरत होती है और सरकारी केंद्रों पर हंगामे की नौबत आती हो। बता दें कि इस समय सरकारी केंद्रों पर शासन स्तर पर इसलिए खाद देने से रोका गया है कि अभी किसानों को इसकी जरूरत नहीं है, ऐसे में 60 फीसदी सप्लाय के हिसाब से पर्याप्त खाद शासन के पास है कोई शॉर्टेज नहीं आएगी, निजी दुकानों से वे न खरीदें। इधर, किसानों के सामने दिक्कत यह है कि मुश्किल से सप्ताहभर बाद खाद की जरूरत पडऩा है। उपज बेचने आने के दौरान वे इसलिए खाद समय से ले जाना चाहते हैं कि भीड़ जमा होने पर फिर हंगामे की नौबत न आए? इन्हीं तमाम प्रकार की किसानों के मजबूरियों का लाभ और जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से निजी सप्लायर्स की चांदी हो जाती है। कृषि विभाग और एनएफएल के अनुसार शासन स्तर पर यूरिया सहित अन्य खाद की सप्लाई के लिए नियम है कि किसानों को मार्कफेड और सोसायटियों से 60 फीसदी सप्लाय की जाए, यदि इसमें पूर्ति नहीं होती तो 40 फीसदी निजी तौर पर खरीदने का प्रावधान है। इसमें शासन का दावा रहता है कि 60 फीसदी में किसानों को पर्याप्त खाद मिल जाता है, लेकिन 40 फीसदी निजी सप्लाय में ही दुकानदार मनमानी दरों में किसानों को खाद बेचते हैं। जिसकी सीधी मार किसानों की जेब पर ही पड़ती है। किसानों का कहना है कि हम खाद लेने मार्कफेड जा रहे हैं तो वहां बताया जा रहा है कि अभी खाद नहीं मिलेगी। हर बार हम खाद लेने आते हैं तो इसी तरह की किल्लत तमाम सोसायटियां और वेयर हाउस वाले बता देते हैं। कभी शासन के नियमों में उलझा देते हैं तो कभी शॉर्टेज का तर्क दे देते हैं। ऐसे में किसानों को जरूरत के हिसाब का खाद नहीं मिल पाता। किसानों ने आरोप लगाया कि हॉफ सीजन में उक्त दुकानदार बड़े स्तर पर स्टॉक कर लेते हैं। प्रदेशभर से सैकड़ों बड़े सप्लायर हैं, जिनके यहां जांच हो तो व्यापक स्तर का स्टॉक मिल सकता है। भारतीय किसान संघ के कुमैरसिंह सौंधिया कहते हैं कि हर बार खाद के लिए किसानों को परेशान होना पड़़ता है। खाद के बड़े सप्लायर्स बड़े स्तर पर स्टॉक जमा कर लेते हैं, जिसमें अधिकारी भी शामिल रहते हैं। स्थानीय विस्तार अधिकारी तो सेटिंग करके रखते हैं जो कार्रवाई के लिए तक नहीं पहुंचते। उर्वरकों की कीमत में कमी, किसानों को पता नहीं मप्र कृषि प्रधान प्रदेश हैं। लेकिन विसंगति यह है कि यहां किसानों को यह जानकारी नहीं रहती है कि सरकार स्तर पर खाद-बीज की क्या कीमत है। अभी हाल ही में देश की अग्रणी उर्वरक सहकारी संस्था इफको ने गैर यूरिया उर्वरक की कीमत में 50 रुपए प्रति बैग की कमी की है। इफको ने डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) सहित अपने कॉम्प्लेक्स उर्वरक की खुदरा कीमत 50 रुपए प्रति बैग घटाने की घोषणा की है। इफको ने कहा है कि दुनियाभर में कच्चे माल और विनिर्मित उर्वरक की कीमतों में कमी आने के फलस्वरूप यह कदम उठाया गया है। इफको के डीएपी का नया मूल्य अब 1250 रुपए प्रति 50 किग्रा बैग होगा, जो इससे पहले 1300 रुपए प्रति बैग था। एनपीके-1 कॉम्प्लेक्स की कीमत घटकर अब 1200 रुपए प्रति बैग होगी, जो इससे पहले 1250 रुपए प्रति बैग थी। एनपीके-2 कॉम्प्लेक्स की कीमत घटकर अब 1210 रुपए प्रति बैग होगी, जो इससे पहले 1260 रुपए प्रति बैग थी। इसी प्रकार एनपी कॉम्प्लेक्स की खुदरा कीमत 50 रुपए घटने के बाद 950 रुपए प्रति बैग हो गई है। लेकिन किसानों को इसकी जानकारी ही नहीं है। - श्याम सिंह सिकरवार
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