16-Sep-2013 06:29 AM
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सरकारी कोष के कथित दुरूपयोग के आरोप में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भले ही एफआईआर से फिलहाल बच गई हों लेकिन उनके लिए मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। शीला ने सरकारी विज्ञापनों में

आवश्यकता से अधिक पैसा खर्च किया इसी वर्ष मई माह में दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन ने भी 2008 के विधान सभा चुनाव में राजनीतिक उद्देश्य से विज्ञापन प्रचार कार्यक्रम चलाने के लिए शीला दीक्षित को सरकारी कोष का दुरूपयोग करने का दोषी ठहराया था। सरीन ने राष्ट्रपति से सिफारिश की थी कि वे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को यह सलाह दे कि मुख्यमंत्री स्वयं अथवा अपनी पार्टी की ओर से विज्ञापन की लागत पर खर्च की गई आधी राशि 11 करोड़ रूपए या कोई भी राशि जो राष्ट्रपति सही समझते हों वापस कर दें। दरअसल लोकायुक्त ने दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की एक शिकायत पर जांच शूरू की थी हालांकि न तो राष्ट्रपति ने लोकायुक्त की शिकायत पर कोई कार्रवाई की और न ही कांग्रेस ने शीला दीक्षित से स्पष्टीकरण मांगा यह मामला उस वक्त अखबारों की सुर्खियां बनकर समाप्त हो गया। अब फिर से गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं क्योंकि चुनाव निकट हैं।
राष्ट्रमंडल खेलों में कथित अनिमितता की जांच कर रही शुुंगलू समिति की रिपोर्ट में भी शीला दीक्षित पर आरोप लगाते हुए कहा गया था कि मुख्यमंत्री के कुछ फैसले संदिग्ध थे। मुख्यमंत्री ने यद्दपि इस रिपोर्ट को भम्र का उत्पाद बताया था लेकिन प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि इस समिति की रिपोर्ट को दबाया नहीं जाए। समिति की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री ने सभी संबंधित मंत्रालयों को निर्देश दिया था कि वे इसमें सामने आने वाले उन तथ्यों के आधार पर कार्रवाही करें जो उन्हें सही लगते हों। लेकिन लगता है प्रधानमंत्री के निर्देशों को संबंधित विभागों ने माना ही नहीं बाद में सीबीआई को यह रिपोर्ट सौंप दी गई और सीबीआई ने अब यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने ही खेल मंत्रालय को सलाह दी थी कि वह सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से जांच कराए। शुंगलू समिति की रिपोर्ट में नाम आने के बाद से ही शीला दीक्षित के खिलाफ भाजपा ने मोर्चा खोल दिया था। चुनाव के समय यह एक बड़ा मुद्दा साबित होगा। इस रिपोर्ट में कई ऐसे नाम हैं जो शीला दीक्षित को परेशान कर सकते हैं । इनमें तत्कालीन राज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना का नाम सबसे प्रमुख है। दिल्ली विकास प्राधिकरण के कुछ अधिकरियों का नाम भी रिपोर्ट में आया है। वैसे तो राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान जो अभूतपूर्व भ्रष्टाचार हुआ उसमें सुरेश कलमाडी सहित कई लोगों के नाम शामिल थे। कलमाडी तो जेल हवा भी खा आए हैं। शुंगलू समिति ने राष्ट्रमंडल खेलगांव और अन्य आधारभूत संरचनाओं के निर्माण संबंधी विभिन्न ठेकों के संचालन में हुई अनियमितताओं के लिए दो रिपोर्ट दाखिल की हैं। इन रिपोर्टों में लोकनिर्माण विभाग के प्रधान सचिव केके शर्मा, लोकनिर्माण विभाग के ही तब के मुख्य इंजीनियर आर सुब्रमणयम, नयी दिल्ली नगर निगम के अध्यक्ष परिमल कुमार, दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अशोक कुमार, नंदलाल(सदस्य, वित्त), दिल्ली विकास प्राधिकरण के तब के सदस्य (इंजीनियरिंग) एके बजाज और शहरी विकास मंत्रालय के तब के सचिव एम जयचंद्रन जैसे वरिष्ठ अधिकारियों का नाम है। इन सभी पर परियोजनाओं की ज्यादा लागत आंकने और परियोजनाओं में विलंब करने का आरोप है।
इस उच्चस्तरीय समिति ने खेल परियोजनाओं में हुई देरी के कारण 900 करोड़ रूपए की हानि का अनुमान लगाया है। दूसरी तरफ खेलगांव में रिहायशी सुविधाओं के निर्माण में हुई देरी के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण को 300 करोड़ रूपए की हानि का अनुमान है। समिति ने खेलगांव में रिहायशी सुविधाओं के निर्माण का ठेका एम्मार एमजीएफ कंपनी को देने पर भी प्रश्नचिह्न खड़े किए हैं और इसे गलत करार दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है जानबूझकर गलत सूचनाएं देने और भूलचूक के लिए भारत सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण एम्मार एमजीएफ के खिलाफ कड़े कदम उठाए।Ó
कांग्रेस की दुविधा यह है कि दिल्ली में शीला दीक्षित के अलावा उसके बाद पास कोई बड़ा नाम नहीं है। हालांकि बहुत से नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी की तरफ ललचाई नजरों से देख रहे हैं। लेकिन शीला का मुकाबला करने की ताकत किसी दूसरे नेता में नहीं है। दस जनपथ का भी शीला के प्रति प्रेम किसी से छिपा नहीं हैं। इसी कारण शीला दीक्षित फिलहाल बैखोफ हैं। देखना यह है कि 19 सितम्बर के बाद शीला के प्रति आलाकमान का क्या रूख रहता है।