16-Sep-2013 05:58 AM
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आसाराम के सेवादार उन्हीं के इशारे पर काम करते थे। इसलिए क्या छुपाना है और क्या बताना है यह बापू उन्हें निर्देशित करते रहते थे, लेकिन मासूम बिटिया से छेड़छाड़ के आरोप में जेल की सलाखों के

पीछे बंद आसाराम अब अपने सेवादारों को निर्देश देने के लिए आश्रम में नहीं हैं। इसी कारण उनके तमाम आश्रमों का कामकाज अब राम भरोसे चल रहा है। उधर उनके मुख्य सेवादार शिवा सहित जिन अन्य लोगों को पुलिस ने टटोला है वे हर दिन नया खुलासा कर रहे हैं। अभी तक जो पता चला है उसका लुब्बे-लुआब यह है कि आसाराम बापू ने न केवल करोड़ों की जमीन हड़पी बल्कि सरकारी जमीन पर भी बड़ी शान से कब्जा जमाया और सरकारी अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक सब उनके दरबार में शीश झुकाते रहे। आसाराम प्रकरण ने उन मंत्रियों और अधिकारियों सहित राजनीति तथा प्रशासन से जुड़े तमाम लोगों को भी बेनकाब किया है जो बाबा की करतूतों को जानने के बावजूद उनके मुरीद बने हुए थे और उनके दबाव में उन पर कोई कार्रवाई करने से बच रहे थे। देश-विदेश में लगभग 400 आश्रमों के मालिक आसाराम का अच्छा-खासा आर्थिक साम्राज्य है। वे जमीनें खरीदने के बाद आसपास की जमीनें दबा लिया करते थे। उनका आतंक इतना था कि देश की राजधानी दिल्ली में भी बड़ा भारी अतिक्रमण करने के बावजूद उनकी गिरेबान तक पहुंचने की ताकत किसी में नहीं हुई। अधिकांश राज्यों की राजधानियों में महत्वपूर्ण जगहों पर आसाराम के आश्रम मौजूद हैं। जिस जमीन को आम आदमी देखने के लिए तरस जाता है वह आसाराम ने अपने रसूख से इस तरह हथिया ली थी मानों यह उनकी पैतृक संपत्ति ही हो। लगभग 1500 करोड़ रुपए की जमीनें आसाराम के पास हैं। इनमें से अधिकांश शहरी इलाकों में हैं। उसके अलावा कई करोड़ रुपए की संपत्ति और बैंकों में अरबों रुपए की दौलत अपने आपको संत कहने वाले आसाराम के पास है।
सवाल यह है कि आसाराम जैसे ठगों का व्यापार इतना बढ़ क्यों जाता है। हमारा समाज इतना भोला-भाला क्यों है। लोग इतनी आसानी से बेवकूफ क्यों बन जाते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी वाक्शक्ति अच्छी है जिसे गीता, वेद, पुराण का थोड़ा बहुत ज्ञान है। जो धारा प्रवाह बोल सकता है, जिसकी तर्क शक्ति विलक्षण है थोड़े ही दिन में सुपर हिट बाबा बनकर जनता का खून चूसने लगता है और जनता भी भरपूर हाथों से दौलत लुटाती है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिनके घर में खाने को दाना नहीं, लेकिन इन बाबाओं को घी पिलाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इन्हीं भोले-भाले और कुछ हद तक भ्रमित, अज्ञानी भक्तों को लूटकर आसाराम ने इतना बड़ा आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया है। ये लोग अभी भी आसाराम के लिए मरने-मिटने को तैयार हैं। गनीमत इस बात की है कि कानून के रखवालों ने आसाराम को सलाखों के पीछे भेजने में देरी नहीं दिखाई अन्यथा और न जाने कितने लोगों को भ्रम में डालकर, उनके अंधविश्वास का फायदा उठाकर इसी तरह लूटा जाता। आसाराम के ऊपर जो यौन शोषण का आरोप लगा है वह एकमात्र आरोप नहीं है बल्कि उन्हीं के विश्वसनीय सेवादार शिवा ने यह बताया है कि आसाराम बहुत सी महिलाओं से एकांत में मिला करते थे। आसाराम के ही आश्रम में वेद्य रहे प्रजापति का कहना है कि आसाराम महिलाओं को यौन शक्ति बढ़ाने वाली दवाएं दूध में मिलाकर पिला देते थे और फिर उनका शोषण करते थे। यह बात कितनी सच है इसका सत्यापन करना फिलहाल संभव नहीं है क्योंकि मीडिया में जो कुछ रिपोर्ट आ रही है वह केवल आसाराम का विरोध करने वालों की है। लेकिन बहुत से उनके समर्थक भी हैं। उनका भी तर्क हो सकता है। पर इतना पक्का है कि आसाराम का मामला बहुत संदिग्ध और विवेचना करने योग्य है।
दिग्विजय ने दी थी आसाराम को बेशकीमती जमीन
मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा स्वयंभू संत आसाराम के ट्रस्ट को वर्ष 1998 में इंदौर में करीब सात हेक्टेयर सरकारी जमीन महज एक रुपए के वार्षिक भू-भाटक (लीज रेंट) पर आवंटित करने की कथित गड़बडिय़ों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। स्थानीय कारोबारी दिग्विजय सिंह भंडारी (34) ने इस आवंटन को कठघरे में खड़ा करते हुए विशेष न्यायाधीश डीएन मिश्र के सामने दिग्विजय, आसाराम, विवादास्पद प्रवचनकर्ता के बेटे नारायण सांई, प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के मौजूदा प्रमुख सचिव और इंदौर के तत्कालीन जिलाधिकारी समेत सात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। खंडवा रोड पर लीज की सरकारी जमीन पर खड़े आसाराम आश्रम में न केवल लीज डीड की शर्तों का उल्लंघन किया गया, बल्कि शासकीय भूमि पर अतिक्रमण और गैरकानूनी निर्माण भी कर लिया गया। प्रदेश सरकार ने इस ट्रस्ट को योग केंद्र और औषधि उद्यान विकसित करने के लिए लीज पर जमीन दी थी, लेकिन लीज डीड की शर्तों को तोड़ते हुए इस जमीन पर एक स्कूल भी खोल लिया गया जिसे व्यावसायिक तौर पर चलाया जा रहा है। उस समय तत्कालीन कलेक्टर एम गोपाल रेड्डी ने भी इस मामले में तत्परता दिखाई।