16-Sep-2013 06:17 AM
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मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जीत के रथ पर सवार हैं। यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश में भूकंपीय जीत मिलने वाली है। लेकिन यह भी तय है कि वे जनआशीर्वाद

यात्रा के दौरान बहुत हद तक उस तूफान को पैदा करने में कामयाब रहे है। जो यदि सही तरीके से ट्यूब में बंद हो गया तो भाजपा की गाड़ी एक बार फिर चल निकलेगी। आखिर क्या वजह है कि लगातार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी को सत्ता मिलने की आहट सुनाई दे रही है। विधायकों की दृष्टि से देखे तो भाजपा के विधायकों ने कोई करिश्माई कार्य अपने विधान सभा क्षेत्रों में कर दिया हो ऐसा भी नहीं है, या मंत्रियों ने अपनी लगन के झंडे गाड़ दिए हों ऐसा भी नहीं है, या फिर प्रदेश में हर भाजपा कार्यकर्ता को संतुष्ट करने में भाजपा कामयाब रही है ऐसा भी नहीं है। यदि कुछ है तो वह केवल शिवराज का करिश्मा है। भाजपा नीत सरकार की तमाम कमियों के बावजूद शिवराज सिंह अपने आपको एक जननेता के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे हैं और यह कामयाबी रातों रात नहीं मिली है। बल्कि लगातार मेहनत करके अर्जित की गई है। इस कामयाबी के पीछे पिछले दस वर्षीय शिवराज और भाजपा के शासन का आंकलन तो करना ही होगा। इस आंकलन का सार यह है कि जनता के बीच शिवराज केवल शब्दों की पूंजी लेकर नहीं जा रहे हैं बल्कि निश्चित रूप से प्रदेश में एक बदलाव परिलक्षित हुआ है इसी कारण दस वर्षीय शासन के उपरांत जनता में जो थोड़ा बहुत गुस्सा एंटी इन्कम्बैन्सी रूप में प्रकट हो सकता था उसे साधने में शिवराज कामयाब रहे हैं। उनकी इस कामयाबी में चार बिंदुओं का प्रमुख योगदान है जिन पर आगे बात होगी। सबसे पहले यह जानना होगा कि एक व्यक्ति के रूप में शिवराज आखिर हैं क्या?
आज से लगभग तीन दशक पहले के उस दुबले पतले नौजवान की तश्वीर सामने आती है जो जनसंघ के शुरूआती दिनों में सीहोर जिले के बुधनी तहसील में आम जनता के बीच लगातार काम कर रहा था। उस समय देश में कांग्रेस सत्ता में थी तो बौद्धिक वर्ग में कम्युनिस्टों का बोल बाला था। या यह कहें की आंतक था। ऐसे माहौल में जब शिवराज राष्ट्रवाद और संस्कृति की बात करते थे और एक नए तरीके से देश के विकास का चित्र प्रस्तुत करते थे तो कई बार उपहास भी झेलना पड़ता था और कई बार विरोध का सामना भी करना पड़ता था। लेकिन बहुत बार उनकी बात को सुनने के बाद जब श्रोता चिंतन मनन करता था तो उसे बात का मर्म समझ में आ जाता था। इस तरह शिवराज लोगों के अंतरमन में कहीं न कहीं अपनी विचारधारा रोपित कर रहे थे। यह किसी तपस्या से कम नहीं था। उन्होंने जेल यात्रा की, लाठियां झेलीं, वे धकेले गए, उनका उपहास हुआ लेकिन उनकी विनम्रता और लगन में कहीं कोई कमी दिखाई नहीं दी। वे लगातार बढ़ते रहे। अपने गांव, अपनी तहसील, अपने जिले, अपने प्रदेश से निकल कर अपने प्रखर विचारों के साथ देश की राजनीति पर छा गए। उनके दल ने और लोगों ने उनमें एक विनम्र नेता देखा जो दूसरों की सुनता है और अपनी बात भी उतनी ही दृढ़ता से कहता है। न केवल बातें करता है बल्कि कर दिखाता है। उसमें यह क्षमता है कि लोग उसकी बात सुनें। इसीलिए शिवराज ने उस दौर में, जब भाजपा को बड़ी कठिनाई से जीत मिला करती थी अपनी विनम्रता के भरोसे दिग्गजों को पराजित किया और जनता का दिल जीत कर स्वयं को अजेय बना लिया। शिवराज का यह करिश्मा मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के शुरूआती दिनों में बहुमूल्य साबित हुआ। आज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज जनता के समक्ष एक बार फिर अपनी सरकार के लिए समर्थन मांगने जा रहे हैं तो कई सकारात्मक बातें उनके पक्ष में जाती हैं।
सबसे पहले तो हमें प्रदेश के माहौल को देखना होगा। वर्ष 2003 में जब दिग्विजय सिंह के दस वर्षीय शासन के बाद प्रदेश में जनता के मूड का अनुमान लगाया जा रहा था उस वक्त हर एक व्यक्ति के सामने यही सवाल था कि दिग्विजय के प्रति जनता की नाराजगी कितनी है। जनता बेहद नाराज थी। विपक्ष उस नाराजगी को भुना रहा था। जगह-जगह धरने, प्रदर्शन देखे जा सकते थे। सरकार की मुखालफत की जा रही थी। सरकार के प्रति नाराजगी लोगों के चेहरे से झलक रही थी, आक्रोश था। दिग्विजय सिंह के दस वर्षीय शासन को बदलने का मानस जनता ने बना लिया था। सारे चुनावी सर्वेक्षण सरकार के खिलाफ थे। सरकार ने काम अच्छा किया था या बुरा यह अलग चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन जनता को बदलाव चाहिए था। जनता परिवर्तन की राह देख रही थी। नौकरशाही से लेकर आम जनता को यह लगने लगा था कि मौजूदा शासन में उसकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हो सकतीं। इसलिए जनता ने एक बदलाव किया और उस बदलाव के संकेत भी दिए लेकिन आज बदलाव के वे संकेत कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। विपक्ष के रूप में कांग्रेस की निष्क्रियता एक अलग विषय है वह कांग्रेस का भीतरी मामला है कि वह क्यों पिछले दस वर्ष से मृतप्राय: पड़ी हुई थी लेकिन सरकार घिर जाए यह मौका शिवराज सिंह ने बिल्कुल नहीं दिया। इस लिहाज से वे बहुत काबिल प्रबंधक साबित हुए हैं। विपक्ष का काम आलोचना करना है। यदि विपक्ष आलोचना नहीं करेगा, सजग नहीं रहेगा तो लोकतंत्र जीवंत नहीं बन सकता। लोकतंत्र को सत्तापक्ष की तत्परता, लगन और निष्ठा मजबूत बनाती है तो विपक्ष की सजगता उसे पैनापन देती है। कांग्रेस दस वर्ष तक अपने ही अंतरविरोधों से घिरी रही और इस दौरान शिवराज ने एक लोकप्रिय राजनेता के रूप में न केवल अपने आप को स्थापित किया बल्कि जनता के बीच कुछ इस तरह काम करके दिखा दिया कि जनता यह जान गई कि शिवराज सच्चे मन से उनकी सेवा कर रहे हैं। शिवराज की यह सेवा भावना उनके विरोधियों को निढाल कर गई।
आज मध्यप्रदेश में सरकार के खिलाफ माहौल नहीं है। वैसा तो बिल्कुल भी नहीं जैसा वर्ष 2003 में था। इसीलिए किसी परिवर्तन का अनुमान लगाना व्यर्थ ही होगा।
जनआशीर्वाद यात्रा से फायदा मिला
जबसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जनता का आशीर्वाद लेने निकले हैं। इस दौरान प्रदेश के शहरों, कस्बों, गांवों में आम जनता के बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पूरे उत्साह और मुस्कुराहटों के साथ पहुंचे हैं।
उत्साह है प्रदेश को विकास को चरम पर पहुंचाने का। इस उत्साह में सहभागी बने हैं शिवराज सरकार द्वारा पिछले वर्षों में करवाए गए विकास कार्य और उन विकास कार्यों के प्रति संकल्पित, सजग, समर्पित भारतीय जनता पार्टी सरकार के मंत्री तथा विभिन्न पदाधिकारी। आमतौर पर 10 वर्षीय शासन के बाद सत्तासीन दल को सत्ता विरोधी रुझान की चिंता सताती है। क्योंकि सभी की आकांक्षाओं को पूरा करना किसी भी सरकार के बस की बात नहीं है। लेकिन शिवराज ने जनता से जुड़कर उनकी तकलीफों को समझकर और उन्हें यथासंभव राहत देकर सत्ता विरोधी रुझान का प्रभाव तकरीबन समाप्त कर दिया है। आज जनसैलाब उनके समर्थन में उमड़ पड़ा है। इससे सिद्ध होता है कि जनता में वर्तमान सरकार को लेकर मायूसी नहीं है। बल्कि वह भविष्य के प्रति आशान्वित होने के साथ-साथ भविष्य की रोशनी की तरफ भी देखने लगी है। मध्यप्रदेश में परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित होता है। जो राज्य कभी बीमारू राज्य की श्रेणी में गिना जाता था वह आज विकासशील राज्यों की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया है। इसका श्रेय निश्चित रूप से सुव्यवस्थित तरीके से किए गए कार्यों को ही देना पड़ेगा। जिसमें शिवराज की प्रशासनिक क्षमता का अद्भुत रूप देखने को मिला।
जिन विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने सत्ता की बागडोर संभाली थी आज उस तूफान से प्रदेश की नैया को कुशलता पूर्वक निकालने में वे सफल रहे हैं। यही कारण है कि जनआशीर्वाद यात्रा में जब वे कहते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे वालों को मुफ्त में बिजली दी जाएगी तो यह अतिश्योक्ति भरा आश्वासन नहीं लगता है। जो प्रदेश किसानों को शून्य प्रतिशत दर से ऋण दे रहा हो वह इतना क्षमतावान तो है ही कि गरीबों के घरों को मुफ्त में रोशन कर सके। इसीलिए शिवराज ने गरीबी रेखा से नीचे वाले उपभोक्ताओं के बिजली के बिलों को माफ कर दिया है। जनआशीर्वाद यात्रा में की गई यह घोषणा लोकलुभावन नहीं थी। बल्कि उस सहृदय मुख्यमंत्री के दिल से निकली थी, जिसने गरीबों को पाई-पाई के लिए तरसते देखा है और किसानों को बिजली के बिल के बोझ तले दम तोड़ते देखा है। शिवराज सिंह ने मध्यप्रदेश में 24 घंटे बिजली की पूर्ति करके कृषि और उद्योगों में संतुलन स्थापित किया है। इस संतुलन ने ग्रामीण विकास को न केवल गति दी है बल्कि अब प्रदेश के कुटीर और लघु उद्योग फलने-फूलने लगे हैं। किंतु लक्ष्य इतना ही नहीं है। लक्ष्य यह है कि जिस तरह मध्यप्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य के रूप में सारे देश में अग्रणी है उसी तरह वह औद्योगिक विकास में भी नए सौपान स्थापित करे। इसीलिए शिवराज सिंह कहते हैं कि उद्योगों का विकास उनका प्रमुख लक्ष्य है, लेकिन केवल बड़े उद्योगों का नहीं, बल्कि उनके साथ-साथ हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले कुटीर और लघु उद्योगों को भी शिवराज अपने पैरों पर खड़े होते देखना चाहते हैं और उनकी इस संकल्प शक्ति को जनता ने पहचाना है। भारी बारिश में, दूर-दराज के क्षेत्रों से, दुर्गम रास्तों से निकलकर जनता उन्हें आशीर्वाद देने के लिए यूं ही नहीं आ रही। जनता को मालूम है कि जिस व्यक्ति को वह अपना समर्थन दे रही है उसने जनता के दर्द को समझने में कोई भूल नहीं की बल्कि पूरी संवेदना के साथ उसे महसूस किया और उसी संवेदना के चलते बाढ़, पाला जैसी आपदा के समय नष्ट होने वाली फसलों की क्षतिपूर्ति मुक्त हस्त से की। ग्रामोन्मुखी योजनाएं बनाई ताकि ग्रामीण जनता यह समझे कि विकास की सही दिशा क्या है और वह भी विकास में सहभागी बने।
सिंचाई के रकबे में अभूतपूर्व वृद्धि, खाद्यों, उर्वरकों, कृषि यंत्रों पर सब्सिडी और किसानों को कृषि अध्ययन के लिए उन्नत कृषि वाले देश भेजने की कल्पना आज से पहले कभी नहीं की गई। इसीलिए किसानों ने शिवराज का अभिनंदन किया और उन बुजुर्गों ने जिन्हें शिवराज सरकार ने सरकारी खर्च पर तीर्थ यात्रा कराई थी, शिवराज को आशीर्वाद दिया।
आखिर लोकतंत्र है किस लिए, वह जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन ही तो है। शिवराज स्वयं को राजा नहीं बल्कि सेवक मानते हैं। उनकी यह सेवा भावना उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है। इसीलिए उनका संकल्प है कि कोई भी गरीब व्यक्ति आवासहीन नहीं रहे, भूखा नहीं सोए, हर हाथ को काम मिले। जब ऐसा हो जाएगा तो निश्चित रूप से सुशासन स्थापित हो सकेगा और ऐसा हो रहा है, गरीबों को मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के तहत एक रुपए किलो गेहूं, दो रुपए किलो चावल वितरित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री आवास योजना में गरीबों के लिए 70 हजार रुपए मकान बनाने के लिए अनुदान के रूप में दिए जाते हैं। गरीबों को 2 लाख रुपए तक का आवास कर्ज देने का प्रावधान है। अस्पतालों में मुफ्त जांच की व्यवस्था के साथ स्वेच्छानुदान की व्यवस्था भी की गई है। बच्चे पढ़-लिखकर अच्छे नागरिक बन सकें इसलिए शिक्षा के स्तर को सुधारने का बेहतर प्रयास किया जा रहा है। अध्यापक वर्ग को समान कार्य के लिए समान वेतन दिए जाने की घोषणा के पीछे यही मकसद है कि वे शिक्षा के स्तर को सुधारें और स्वयं भी आर्थिक रूप से सुरक्षित रहें। ग्रामीण रोजगार योजना में युवकों को कर्ज दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री रोजगार गारंटी योजना में सरकार गारंटी देगी और युवक 25 लाख रुपए तक का कर्ज बैंक से ले सकेंगे। इससे प्रदेश में औद्योगिक क्रांति आना तय है और ऐसा हुआ तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। मध्यप्रदेश के गांवों में 90 हजार किलोमीटर से अधिक लंबी सड़कों का निर्माण किया गया है इससे कनेक्टिविटी बढ़ी है और गांवों में खुशहाली आ रही है।
रोजगार के लिए सरकार ने कई और उपाय भी किए। पहले सरकारी नौकरियों पर बैन लगा हुआ था भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही यह पाबंदी हटा दी और पांच लाख लोगों को रोजगार मिला, जिनमें वे 28 हजार दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी भी शामिल हैं जिन्हें कभी निकाल दिया गया था।
महिला के लिए विशेष प्रयास
महिला शक्ति पर इस सरकार ने विशेष फोकस किया। लाड़ली लक्ष्मी से लेकर कई योजनाएं बेटियों के लिए बनाई गईं ताकि जनसंख्या में उनका अनुपात उचित बना रहे और महिलाओं की क्षमताओं का सही उपयोग हो सके। जनता को भी लगा है कि है एक मुख्यमंत्री जो उनके दरवाजे पहुंचकर उनके दुख-दर्द को समझ रहा है और जिसने अपने शासन के दौरान जनता को हर संभव तरीके से राहत पहुंचाने की व्यवस्था की। सरल, सहज शिवराज ने अपने कार्यों और अपनी विनम्र शैली से जनता के बीच अलग पहचान बनाई है और इस बात की तस्दीक विकास के वे आंकड़े कर रहे हैं जो बताते हैं कि किस तरह प्रदेश का भाग्य बदलने में शिवराज ने दिन-रात एक कर दिए और अब वे इस संकल्प को आगे ले जाना चाहते हैं।
रोशनी से जगमगाया मप्र
मध्यप्रदेश में अटल ज्योति अभियान ने प्रदेश का अंधियारा दूर किया है वर्ष 2003 में यह कल्पना नहीं कि गई थी कि मध्यप्रदेश में कभी सारे गांव व शहर रौशन हो सकते हैं, लेकिन रोशनी का यह सफर भाजपा सरकार के कार्यकाल में जो प्रारंभ हुआ उसने प्रदेश में घोर अंधेरे को उजाले में बदल डाला। यह उजाला हौसले का है। संकल्प का है, दृढ़ता का है, कुछ कर दिखाने की इच्छाशक्ति का है। चौबीस घंटे बिजली अब हकीकत बन चुकी है। प्रदेश के 5217 गांवों में चौबीस घंटे बिजली मिल रही है। किसानों को बिना रुके 8 घंटे बिजली दी जा रही है खेती के लिए।
3 जुलाई को जैसे ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इन्दौर में चौबीस घंटे बिजली देने के अभियान की पूर्णता की घोषणा की तो यह सिद्ध हो गया कि ठान लेने पर कोई भी असम्भव कार्य पूरा हो सकता है। यह सफलता सरकार की संकल्प शक्ति और मुख्यमंत्री की कल्पना शक्ति से मिली है। स्वर्णिम मध्यप्रदेश अब एक हकीकत बन चुका है। यह नारा नहीं है बल्कि वास्तविकता है क्योंकि मध्यप्रदेश दमक रहा है। राज्य सरकार ने 4150 करोड़ रुपये वित्तीय प्रबंधन करके मध्यप्रदेश में सभी घरों को रोशन कर दिया है। इसके लिए करीब पौने दो हजार करोड़ रूपये का कर्ज आईईसी से लिया गया, एशियाई विकास बैक ने दो हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया, फीडर सेपरेशन और अन्य निर्माण कार्यों को 4150 करोड़ की लागत आई है जिससे मध्यप्रदेश की परिसंपत्तियों का भी निर्माण हुआ है। जबलपुर से इस अभियान की शुरुआत हुई और इन्दौर तक पहुँचते-पहुँचते मध्यप्रदेश रोशन हो चुका था। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह का संकल्प था कि प्रदेश के हर गांव को 24 घंटे बिजली मिले और खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता की पर्याप्त बिजली मिले। अटल ज्योति अभियान ने इस संकल्प को पूरा किया है।
वर्ष 2013-14 में 6142 करोड़ यूनिट बिजली की आपूर्ति होगी। बिजली की यह आपूर्ति पिछले साल से 29 प्रतिशत अधिक होगी। सिंचाई के लिए 10 घंटे की बिजली किसानों को मिल रही है। केवल विद्युत की उपलब्धता ही नही बढ़ी है बल्कि राजस्व में भी प्रभावी वृद्धि देखने को मिली है 3 वर्ष पहले विद्युत राजस्व जहाँ 7500 हजार करोड़ होता था वहीं अब यह बढ़कर 15 हजार 284 करोड़ रुपये हो गया है। इससे मध्यप्रदेश में कृषि विकास दर 18.89 प्रतिशत हो चली हैै और इस वर्ष विकास दर में मध्यप्रदेश को प्रथम स्थान मिलने में विद्युत की उपलब्धता का व्यापक योगदान है।
किसानों की सुविधा
के लिये योजनाएँ
किसानों की सुविधा के लिये कई योजनाओं को लागू किया गया है। किसान द्वारा स्वयं ट्रांसफार्मर लगाने की योजना 4 मई, 2011 से लागू की गई है। जले खराब ट्रांसफार्मर प्राथमिकता पर बदलने के लिये बकाया राशि का 50 प्रतिशत जमा करने की सुविधा को शिथिल कर इसे 25 प्रतिशत किया गया है। अस्थाई पम्प कनेक्शन होने पर जलेध्खराब ट्रांसफार्मर बदलने में इस अनिवार्यता को भी समाप्त किया गया है। पूर्व में अस्थाई तथा स्थाई पम्प कनेक्शन पर स्वीकृत भार से अधिक पाये जाने अथवा अवधि समाप्त होने के बाद भी अस्थाई पम्प कनेक्शन चालू पाये जाने की स्थिति में मैदानी अधिकारियों द्वारा ऐसे प्रकरण विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 135 के अंतर्गत दर्ज किये जाते थे। इससे किसानों को न्यायालयीन प्रक्रिया से गुजरना पडता था। राज्य सरकार द्वारा अब ऐसे प्रकरणों को धारा-135 के स्थान पर धारा-126 के अंतर्गत आंकलन करने की व्यवस्था की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को स्थाई पम्प कनेक्शन देने के लिये नवीन पम्प कनेक्शन अनुदान योजना एक अप्रैल, 2011 से लागू की गई है। इसमें सीमांत कृषकों को वर्तमान में 5500 रुपये प्रति हार्स-पॉवर तथा अन्य को 8800 रुपये प्रति हार्स-पॉवर देना होता है। इस कार्य के लिये आवश्यक राशि में से डेढ़ लाख रुपये तक शेष राशि राज्य शासन द्वारा दी जा रही है। इस योजना में अक्टूबर, 2012 तक 20 हजार 142 स्थाई पम्प कनेक्शन प्रदान किये गये हैं। इसके पूर्व की किसान महापंचायत घोषणा के अंतर्गत भी 31 हजार से ज्यादा पम्प को विद्युत संयोजन प्रदान किये गये हैं। वर्ष 2003-04 में 4 लाख 5 हजार अस्थाई कनेक्शन कृषि पम्प के लिये प्रदान किये गये थे। वर्ष 2011-12 में 10 लाख 72 हजार अस्थाई पम्प कनेक्शन प्रदान किये गये हैं, जो वर्ष 2003-04 की तुलना में 165 प्रतिशत अधिक है।
जले तथा खराब ट्रांसफार्मर बदलने एसएमएस योजना जले तथा खराब ट्रांसफार्मरों को वरीयता क्रम के साथ-साथ निर्धारित अवधि में बदलने की प्रक्रिया प्रभावी बनाने के लिये एक नई योजना एसएमएस आधारित असफल ट्रांसफार्मर बदलनाÓÓ विद्युत वितरण कम्पनियों द्वारा लागू की गई है। इसमें प्रत्येक ट्रांसफार्मर को यूनिक आई.डी. आवंटित कर ट्रांसफार्मर डीपी पर पेंट से लिखा गया है। ट्रांसफार्मर फेल होने की स्थिति में किसान विद्युत उपभोक्ता निर्धारित मोबाइल नम्बर पर उस ट्रांसफार्मर का यूनिक आई.डी. कोड दर्शाते हुए एसएमएस भेज सकेगा। इसके मिलने पर सर्वर के माध्यम से यह सूचना संबंधित अधिकारी तथा शिकायतकर्ता उपभोक्ता को भी अग्रिम प्राप्त होती है। संबंधित अधिकारी द्वारा सूचना की जाँच कर ट्रांसफार्मर बदलने के लिये अयोग्य अथवा योग्य पाये जाने की जानकारी सर्वर को भेजी जाती है। इसके आधार पर ट्रांसफार्मर बदलने की वरीयता सूची स्वत: जनरेट होती है जिसे कम्पनी की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। ट्रांसफार्मर बदलने के बाद इसकी सूचना उपभोक्ता को भी स्वत: एसएमएस के जरिये मिलती है। यह व्यवस्था वर्ष 2012 के रबी मौसम से लागू किये जाने के फलस्वरूप जले खराब ट्रांसफार्मर बदलने की अवधि में कमी आई है।
दस वर्ष में एक सदी का विकास: आज प्रदेश के 50 जिलों की 352 तहसीलों के 313 विकासखंडों में विकास की फसल लहलहा रही है। समृद्धि ने ऐसी दस्तक दी कि खुशहाली का माहौल चारों तरफ नजर आ रहा है। वर्ष 2003 की ही तो बात है जब प्रदेश के 89 आदिवासी विकास खंडों में एक सर्वेक्षण के दौरान निकाले गए निष्कर्ष के बाद मध्यप्रदेश को बीमारू राज्यों की श्रेणी में डाल दिया गया था, लेकिन उसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और प्रदेश में विकास की नई बयार चली। लगभग एक दशक होने को आए हैं और इस एक दशक में मध्यप्रदेश की तकदीर बदल गई है। प्रदेश जिस गति से विकास के सोपान पर निरंतर चढ़ रहा है उसे देखते हुए अब यह भविष्यवाणी की जा रही है कि मध्यप्रदेश भविष्य में दुनिया के उन राज्यों में शामिल होगा जहां समाज के हर वर्ग के लिए सुविधाएं होने के साथ-साथ विकास के अवसर सुलभ होंगे। बिजली, सड़क, पानी और
स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं में गुणात्मक सुधार के द्वारा मध्यप्रदेश ने अभूतपूर्व
लक्ष्य हासिल कर दिखाया है, जिसका असर मध्यप्रदेश के 52 हजार 117 आबाद ग्रामों में देखने को मिल रहा है।
कृषि किसी भी देश या राज्य के विकास का पहला सूचकांक है। आज मध्यप्रदेश कृषि उत्पादन में देश का अग्रणी प्रदेश बन चुका है। वर्ष 2003 में प्रदेश की कृषि का बड़ा हिस्सा मानसून की मेहरबानी पर निर्भर था। अन्नदाता किसान आकाश की ओर देखते थे कि बारिश हो तो वे अपनी फसलों की बुआई करें और कृषि उत्पादन लगातार गिरता जा रहा था। भाजपा सरकार ने जब सत्ता संभाली तो प्रदेश में 7 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिंचाई हुआ करती थी। भाजपा सरकार द्वारा कृषि को बुनियादी लक्ष्य में शामिल करते हुए तेजी से कार्य किया गया और वर्ष 2012-13 आते-आते 24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होने लगी, जिसका नतीजा यह निकला कि पहले जहां 831 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फसल का उत्पादन होता था वह बढ़कर 1223 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होने लगा। गेहूं का उत्पादन 49.23 लाख मीट्रिक टन से दो गुना अधिक होकर 127 लाख मीट्रिक टन पिछले दस वर्षों में हो चुका है। सोयाबीन का उत्पादन 2003 में जहां 26.74 लाख मीट्रिक टन हुआ करता था वह अब 62.61 लाख मीट्रिक टन हो गया है। कृषि में यह क्रांतिकारी बदलाव अचानक नहीं आया। बल्कि भाजपा नीत सरकार ने मुख्य रूप से कृषकों के हित की योजनाएं बनाईं, जिनमें शिवराज सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। कल्पना कीजिए, वर्ष 2003 में किसानों को 14 से 16 प्रतिशत की दर पर बैंक ऋण चुकाना पड़ता था। जो अब घटकर जीरो प्रतिशत हो गया है। यानी शून्य प्रतिशत ब्याज दर। देश के इतिहास में यह उदाहरण दुर्लभ है। इसका अर्थ यह नहीं है कि किसानों को ऋण देने में अब कंजूसी बरती जा रही है, बल्कि 2003 में जहां फसल ऋण 1.3 हजार करोड़ रुपए था वह अब लगभग 800 प्रतिशत बढ़कर 8.5 हजार करोड़ रुपए हो गया है जो कि आसानी से बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी देरी के प्राप्त हो जाता है। यही कारण है कि 14 सितम्बर 2007 में मध्यप्रदेश को अधोसंरचना और कृषि में मोस्ट इम्प्रूव्ड स्टेट का पुरस्कार मिला और आगे चलकर इसी वर्ष कृषि कर्मण अवार्ड भी मध्यप्रदेश को दिया गया। विकास की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। हर क्षेत्र में विकास का यह प्रतिमान बढ़ता जा रहा है। किसी एक क्षेत्र विशेष पर ध्यान केंद्रित न करते हुए प्रत्येक क्षेत्र पर सरकार द्वारा ध्यान केंद्रित किया गया।
शिक्षा पर ध्यान
शिक्षा मध्यप्रदेश में सदैव एक चुनौती रही है। खासकर बुनियादी शिक्षा में मध्यप्रदेश का रिकार्ड वर्ष 2003 में नितांत दुर्भाग्यपूर्ण एवं खराब था। भाजपा नीत सरकार ने शिक्षा पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। वर्ष 2003 में जहां प्रदेश में 56 हजार 326 प्राथमिक शालाएं थीं वहीं वर्ष 12-13 में यह बढ़कर 83 हजार 152 हो चुकी हैं, जबकि माध्यमिक शालाएं 18801 हुआ करती थीं जो बढ़कर 28 हजार 479 हो चुकी हंै। वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश में 8 लाख बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे। इनमें भी ज्यादातर संख्या उन बेटियों की थी जो सामाजिक और पारिवारिक कारणों से स्कूल से वंचित कर दी जाती थीं, क्योंकि स्कूल उनके घर से बहुत दूर होता था। भाजपा सरकार ने पिछले एक दशक के दौरान स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार तो किया ही है उनकी संख्या भी बढ़ाई है। लाडली लक्ष्मी, बालिका शिक्षा, मध्यान्ह भोजन, मुफ्त शिक्षा सहित तमाम योजनाएं तत्परता से लागू की हैं, जिसका परिणाम यह निकला है कि वर्ष 2003 में जहां 8 लाख बच्चे कतिपय कारणों से स्कूल त्याग देते थे, अब उनकी संख्या घटकर 57 हजार रह गई है। प्रयास जारी है कि ये बच्चे भी स्कूलों से जुड़े रहें। एक समय ऐसा था जब नवजात शिशु के लिए प्रदेश में गहन चिकित्सा इकाइयां शून्य थीं, वहीं अब ये बढ़कर 34 हो चुकी हैं। इस आंकड़े से पता चलता है कि 2003 में स्वास्थ्य की स्थिति क्या थी और वर्तमान में उसमें किस तरह सुधार देखा गया। उस वक्त शासकीय अस्पतालों में 23 हजार बिस्तर हुआ करते थे जो अब बढ़कर 32 हजार हो चुके हैं। गर्भवती माताओं को वर्ष 2003 में घरेलू प्रसव का जोखिम उठाना पड़ता था, क्योंकि 26.9 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हुआ करते थे जो अब बढ़कर 84 प्रतिशत हो चुके हैं। माताओं की मृत्युदर जो 379 प्रति लाख थी वह घटकर 270 प्रति लाख पहुंच गई है। शिशु मृत्युदर जो 86 प्रति हजार हुआ करती थी वह घटकर 59 प्रति हजार हो चुकी है।
महिला सशक्तिकरण की पहल
मध्यप्रदेश में महिलाओं को विशेष रूप से सशक्त बनाने और सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं। पंचायतों तथा स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण द्वारा महिलाओं की भागीदारी राजनीति में तो बढ़ी ही है, लाडली लक्ष्मी जैसी योजनाओं ने समाज के मानस को भी बदला है। प्रदेश में 13.5 लाख से अधिक बेटियां जन्म के साथ लखपति बन गई हैं। मुख्यमंत्री ने कन्याओं के हाथ पीले करने का बीड़ा उठाया है। 2.29 लाख कन्याओं का विवाह मार्च 2013 तक मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत हो चुका है। इसी प्रकार बालिकाओं को पढ़ाने के लिए 16.5 लाख सायकिलें नि:शुल्क वितरित की गईं। बेटी बचाओ अभियान के कारण लिंगानुपात में अभूतपूर्व सुधार देखने को मिला है। 88153 बालिकाएं गांव की बेटी योजना से लाभांवित हुई हैं। ऊषा किरण योजना, प्रभात किरण योजना, सबला योजना, जेंडर आधारित बजट सहित अनेक योजनाओं ने महिलाओं, बेटियों, बहनों की आंखों का सूनापन दूर किया है। वर्ष 2003-04 में महिला विकास का जो बजट था। वह आज बढ़कर 13 गुना अधिक हो चुका है। तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम में 12500 स्वसहायता समूह में एक लाख पिचहत्तर हजार महिलाओं की भागीदारी यह बताती है कि घूंघट में रहने वाली महिलाओं ने घूंघट का परचम बना लिया है। सामाजिक रूप से भी महिलाओं के प्रति नजरिए में बदलाव देखने को मिला है। बाल विवाह के प्रकरणों में भारी कमी आई है। वर्ष 2001 में 25.3 प्रतिशत बाल विवाह हुआ करते थे जो वर्ष 2010 में घटकर केवल 3.3 प्रतिशत रह गए थे। इस वर्ष तो जिस तरह की सतर्कता बरती गई है उसके चलते अनुमान है कि अब यह आंकड़ा शून्य प्रतिशत पर भी आ जाएगा। यह सब संभव हुआ है मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता और संवेदना के कारण। स्त्री जाति के प्रति उनके मन में सम्मान तथा करुणा की भावना है जो मध्यप्रदेश में महिलाओं के हितार्थ चल रहे विभिन्न योजनाओं में देखने को मिल रही है।
हर क्षेत्र में दिख रहा विकास मध्यप्रदेश आज एक मजबूत अर्थ-व्यवस्था वाला प्रदेश है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के 7.6 प्रतिशत आर्थिक विकास के लक्ष्य के विरुद्ध योजना के अंत में 10.20 प्रतिशत विकास दर हासिल की गयी। इससे पहले नवमीं पंचवर्षीय योजना में यह दर 8.49 प्रतिशत थी। इसी तरह ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में औसत कृषि विकास दर 9.04 प्रतिशत रही, जो एक शानदार उपलब्धि है। इस दौरान अखिल भारतीय कृषि विकास दर मात्र 3.3 प्रतिशत रही।
मध्यप्रदेश ने वर्ष 2011-12 में लगभग 12 प्रतिशत आर्थिक विकास दर और 18 प्रतिशत कृषि विकास दर हासिल कर अपनी आर्थिक मजबूती का परिचय दिया है। बीते पाँच वर्ष में प्रदेश की संचयी औद्योगिक विकास दर 9.82 प्रतिशत रही, जबकि अखिल भारतीय दर 6.83 रही। वर्ष 2011-12 में प्रदेश की औद्योगिक विकास दर अखिल भारतीय 3.95 की तुलना में 8.05 प्रतिशत रही। जीएसडीपी में सेकेण्ड्री सेक्टर (खनिज, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण) का योगदान बढ़कर 33 प्रतिशत हो गया। निर्माण क्षेत्र में प्रदेश 16.69 प्रतिशत की दर से बढ़ा। वर्ष 2011-12 में मध्यप्रदेश आर्थिक विकास दर में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और तमिलनाडु से आगे है। प्रदेश ने कृषि उत्पादन में नया कीर्तिमान रचा है। बीते रबी मौसम में प्रदेश में 127 लाख टन का बम्पर गेहूँ उत्पादन हुआ। राज्य ने इतनी बड़ी उपलब्धि पायी है जब सिंचित क्षेत्र मात्र 32 प्रतिशत है।
सरकार के जनहितकारी निर्णयों की पूरी श्रंखला बन गई है। शासन के इस मॉडल की अति विशिष्ट प्रमुखता नीति निर्माण प्रक्रिया में समाज की भागीदारी की है। इन सात वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित 26 पंचायत में समाज के सभी वर्गों को नीति निर्माण में भागीदारी मिली है। भागीदारी केवल शासकीय क्रियाकलापों तक ही सीमित नहीं है। उसमें संबंधों की आत्मीयता और ऊष्मा भी है। यही कारण है कि बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, जैन हो अथवा बौद्ध सभी के उमंग और उत्साह के अवसरों पर मुख्यमंत्री निवास के द्वार आमजन के लिए खुल जाते हैं और सभी धर्मों के पर्व गरिमामय भव्यता के साथ मनाए जाते हैं।
शासन के इस मॉडल में आम आदमी के साथ सरकार उसके विकास के प्रयासों और खुशी के अवसरों के साथ ही उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों और पारिवारिक कष्टों में भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती है। संतान के जन्म का अवसर हो। उसके लालन-पालन की जिम्मेदारी और विवाह का संस्कार हो। बीमारी, दुर्घटना अथवा मृत्यु की दु:खद स्थितियां हों सभी में सहयोग के लिए सरकार की योजनाएं हैं, फिर चाहे वह जननी सुरक्षा योजना, मज़दूर सुरक्षा योजना हो, अथवा दुर्घटना और अन्त्येष्टि सहायता, ऐसी अनेक योजनाएँ सरकार द्वारा संचालित की जा रही हैं। बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए अथवा ग्रामीण उद्योगों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता में भी सरकार का सहयोग उपलब्ध है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सुशासन के लिए लिया गया सबसे अनूठा और अद्भुत निर्णय है लोक सेवा गारंटी अधिनियम का लागू होना। देश और दुनिया में अपने ढंग के पहले इस कानून को लागू करने के लिये मध्यप्रदेश को वर्ष 2012 में यू.एन. पब्लिक सर्विस अवार्ड मिल चुका है। प्रदेश में लोक सेवा गारंटी अधिनियम में वर्तमान में 16 विभाग की 52 सेवाएं शामिल हैं। पाँच नए विभाग वित्त, उद्योग, वाणिज्यिक कर, योजना, आवास एवं पर्यावरण की सेवाओं को शामिल करते हुए अब 21 विभाग की सेवाएं अधिनियम के दायरे में आयेगी।
हर वर्ग की सुध
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर वर्ग की सुध लेते हुए उन्हें विकास की धारा से जोडऩे का प्रयास किया है। इसी वर्ष 14 अप्रैल को बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जयंती पर विकास से वंचित अनुसूचित जाति वर्ग के लिए किए गए प्रयासों पर नजर डाली तो पता चला कि सरकार ने पिछले नौ वर्ष में ऐसे अनेक निर्णय लिए, जिनके चलते अनुसूचित जाति वर्ग में बहुत बदलाव देखने को मिला है। वर्ष 2002-03 में जहां अनुसूचित जाति विभाग का बजट 298.48 करोड़ हुआ करता था, वहीं वर्ष 2013-14 में यह राशि बढ़कर 1294.39 करोड़ रुपए हो गई। शैक्षणिक संस्थाओं में इस वर्ग को सुविधाएं दी गई हैं। शिष्यवृत्ति में भी वृद्धि हुई है। विदेश अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है। इस वर्ग के मेधावी छात्रों को पब्लिक स्कूल में पढऩे के अवसर मिलते हैं। अनुसूचित जाति की बस्तियों का विकास किया जा रहा है। इस वर्ग में कन्या साक्षरता बढ़ाने के लिए 11वीं में प्रवेश लेने वाली छात्रा को दी जाने वाली 2000 रुपए की प्रोत्साहन राशि को बढ़ाकर 3000 रुपए किया गया है। कक्षा 6 तथा कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को भी प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना का लाभ भी इस वर्ग को प्रभावी रूप से मिला है। इसी प्रकार बुजुर्गों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना एक अनूठी पहल है। देश के सभी समुदायों के तीर्थों को चिंहित कर वहां हर धर्म के बुजुर्गों को सरकारी खर्चे पर तीर्थयात्रा करवाई जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी, उद्योग, खेल, रोजगार, जैविक कृषि, प्रशिक्षण, तकनीकी शिक्षा जैसे क्षेत्रों में मध्यप्रदेश ने महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज कराई है। मुख्यमंत्री की पंचायतों ने मुख्यमंत्री को हर व्यक्ति के करीब पहुंचा दिया है। इन पंचायतों के आयोजन द्वारा मुख्यमंत्री ने प्रदेश के प्राय: सभी व्यक्तियों से प्रत्यक्ष संवाद किया है जो एक मिशाल भी है। इसी कारण कई ऐसी योजनाएं भी निकलीं जो देखने में भले ही छोटी लगती हों लेकिन हैं बहुत प्रभावी। बलराम ताल योजना, बूंद-बूंद सिंचाई योजना, अटल बाल आरोग्य मिशन, जैसी योजनाओं ने सरकार के कामकाज को बेहतर और प्रभावी बना दिया है। जो काम होने में कभी वर्षों लगते थे अब जन सुविधा केन्द्रों के द्वारा वही काम उतनी तीव्रता से संभव हो पा रहा है। मध्यप्रदेश का यह नया चेहरा है और इसके पीछे छिपा है एक दशक का अनथक प्रयास जो आने वाले भविष्य की तस्वीर साफ दिखा रहा है कि मध्यप्रदेश बहुत जल्द ही देश का सबसे तेजी से बढ़ता प्रदेश है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रशंसा की। उन्होंने अल्पसंख्यकों के 15 सूत्री राष्ट्रीय योजना की कैबिनेट समीक्षा के दौरान पाया कि प्रदेश ने मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण की केन्द्रीय पहल पर अच्छा काम किया है। मध्यप्रदेश मदरसों में स्तरीय शिक्षा मुहैया करवाने की योजना में इन संस्थानों को आधुनिक बना रहा है। खेलों में बेहतरीन काम के लिये केन्द्र सरकार ने खेल दिवस-29 अगस्त 2010 को मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन अवार्ड से नवाजा। यह अवार्ड तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भेंट किया। यह पहला मौका है जब किसी प्रदेश को यह अवार्ड मिला। प्रदेश की गाँव-गाँव में खेल योजना से केन्द्रीय खेल मंत्रालय इतना प्रभावित हुआ कि इसे मॉडल रूप में पूरे देश में लागू कर दिया। खेलों के प्रोत्साहन में राष्ट्रपति के हाथों से सम्मानित होने वाला प्रदेश अब देश में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के क्रियान्वयन में भी बाजी मार सकता है। प्रदेश इस मामले में कई राज्यों से बेहतर स्थिति में है। यह बात तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सचिव अंशु वैश्य ने कही। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यू.एन.सी.एफ.) द्वारा प्रदेश में प्रत्येक एक किलोमीटर पर प्राथमिक, प्रत्येक तीन किलोमीटर पर माध्यमिक और प्रत्येक पाँच किलोमीटर पर हाईस्कूल की उपलब्धता की सराहना की। यूनीसेफ की भारत प्रमुख करीन हुल्शोक ने राज्य शासन द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और कुपोषण के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों को प्रशंसनीय बताया। उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों के विकास के लिये लागू अभिनव योजनाओं से प्रदेश की विश्व स्तर पर पहचान बनी है। विश्व बैंक ने पोषित व्यावसायिक शिक्षा सुधार परियोजना में मध्यप्रदेश के प्रदर्शन को बेहतर माना। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन दल ने मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर कम करने के लिये संस्थागत प्रसव में हुई वृद्धि एवं शिशु मृत्यु दर कम करने की कोशिशों को सराहा।
हिमाचल प्रदेश सरकार वनों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश वन विभाग का अनुसरण कर अत्याधुनिक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी.पी.एस.) तैयार करेगी, जिससे जंगलों को आग से बचाने, वनों में नाजायज कब्जों को रोकने और पौधारोपण का मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी। यह बात हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने कही। लंदन के ओलम्पिया हाल में नेचुरल एण्ड आर्गेनिक प्रोडक्ट्स-यूरोप 2010 प्रदर्शनी में मध्यप्रदेश के हर्बल एवं वन उत्पादों तथा कच्चे माल को काफी सराहा गया। प्रदर्शनी में आये आगन्तुकों ने इन उत्पादों के लाभ में ग्रामीणों को भागीदार बनाने की मध्यप्रदेश की पहल के प्रति प्रसन्नता भी व्यक्त की।
देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति पर स्वयंसेवी संगठन प्रथम की सालाना रिपोर्ट में म.प्र. के जो आंकड़े आए वह बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त करने वाले थे। पहली कक्षा के बच्चों की अक्षरों को पहचानने और उन्हें पढ़ पाने की क्षमता के मामले में प्रदेश के बच्चे केरल, गोवा और पूर्वोत्तर की अपेक्षाकृत अधिक साक्षर राज्यों से होड़ कर रहे थे। यहाँ तक कि इन मानकों में आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे सम्पन्न राज्य भी प्रदेश के बच्चों से काफी पीछे दिखे। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भोपाल में एक प्रेसवार्ता में मुख्यमंत्री चौ