05-Oct-2019 06:48 AM
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सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित अब भी पुनर्वास व आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रदेश को बांध से बनने वाली 21 हजार मेगावाट में से करीब 1450 मेगावाट बिजली मिलनी थी। इस 56 फीसदी बिजली के लिए 192 गांव व 1 नगर डूबाए गए हैं लेकिन अब भी डूब प्रभावित पुनर्वास व आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मप्र सरकार ने भी गुजरात सरकार से बिजली की मांग की है। 47 साल पहले यानी 1972 में प्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी पर 30 बड़े बांध बनाने की योजना बनाई थी। लेकिन अब तक 5 बांध बरगी, इंदिरा सागर, महेश्वर, ओंकारेश्वर और सरदार सरोवर बांध बने हैं। जबकि नर्मदा नदी व 45 सहायक नदियों पर 135 मझले और 3 हजार छोटे बांधों का निर्माण होना है।
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ जबलपुर के संयोजक राजकुमार सिन्हा ने बताया बांधों के निर्माण को लेकर फरवरी-मार्च 2016 में विधानसभा सत्र के दौरान प्रश्न भी उठाए थे। इसके जवाब में तत्कालीन सीएम शिवराजसिंह चौहान ने जवाब दिए थे। जवाब के अनुसार नर्मदा न्यायिक प्राधिकरण द्वारा मप्र को 18.25 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) नर्मदा कछार जल का बंटवारा किया था। प्रदेश द्वारा अपने हिस्से का पानी उपयोग के अनुसार 29 बांधों की योजना बनाई गई। नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख मेधा पाटकर ने बताया नर्मदा घाटी विकास परियेाजना के तहत बांधों का निर्माण होना था। लेकिन अब तक जो बांध बने हैं, उनसे नुकसान ज्यादा हुआ है। लाभ कम हुआ। सरकारों का नजरिया उपेक्षा से भरा ही रहा है।
बरगी बांध से बड़वानीे के 95 गांव, सिवनी के 48 व जबलपुर के 19 गांव डूब गए। 162 गांव डूबने के बाद तीनों जिलों को कोई लाभ नहीं मिला। साढ़े चार लाख हेक्टेयर में सिंचाई का दावा था। अभी 60-70 हजार हेक्टेयर में ही सिंचाई हो रही है। साढ़े 8 हजार हेक्टेयर में जंगल खत्म हो गया। रीवा व सतना के 855 गांवों को पानी मिलना था। बांध के गेट 29 साल से बंद है। इसलिए अभी तक पानी का लाभ नहीं मिला। बांध की आयु 30 साल हो गई है। आयु बढऩे पर गाद भी बढ़ेगी। वैज्ञानिकों ने अनुमानित आयु 100 साल आंकी है।
इंदिरा सागर बांध से 1.93 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होना है। 254 गांव डूब गए। विकास के नाम पर निमाड़ के कई गांव डूबा दिए गए। 1 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन होना बताया गया। लेकिन यह कितने समय में बनती है, इसे समय के सापेक्ष देखना व पानी की उपलब्धता पर निर्भर है। नहरों का निर्माण बहुत बाकी है। नहरें का निर्माण कार्य बाकी है। मुख्य नहरें व उप नहरों का निर्माण करीब 90 फीसदी हुआ है। वितरण नहरों का निर्माण शेष है। 45 हजार हेक्टेयर जंगल डूब गया। 40 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि सहित 1.12 लाख हेक्टेयर जमीन डूबी।
ओंकारेश्वर बांध से 2.46 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होना थी। लोगों को इसका लाभ मिला। लेकिन 30 गांवों को इसकी कीमत चुकाना पड़ी। लोगों के मकान, कृषि भूमि डूब गए। 5800 हेक्टेयर जंगल खत्म हो गया। 520 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है। बिजली भी बनाई जा रही है। उन्होंने बताया नर्मदा के दक्षिण तट में कावेरी नदी के कारण ज्यादा गांव डूबे। उधर, महेश्वर बांध से सिर्फ बिजली का लाभ है। लेकिन अब भी बिजली उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। पुनर्वास सहित अन्य मुद्दों पर विवाद खत्म नहीं हुआ है। विरोध के कारण लंबे समय तक काम भी बंद रहा। सरदार सरोवर बांध की पानी संग्रहण क्षमता 4.47 एमएएफ है। दिसंबर 1969 में नर्मदा ट्रिब्यूनल अवार्ड के तहत गुजरात सरकार का नर्मदा जल पर 9 एमएएफ (मिलीयन एकड़ फीट) अधिकार रहेगा। बाकी पानी के लिए इंदिरा सागर को सरदार सरोवर का स्टोरेज टैंक बनाया है। इंदिरा सागर की स्टोरेज क्षमता करीब पौने दस एमएएफ है। उन्होंने बताया 1200 मेगावाट रिवर बैक पावर हाउस से (भूमिगत बिजली घर) और 250 मेगावाट नहर से बिजली उत्पादन होना था। एक माह पहले बिजली बनाना शुरू किया है। गुजरात को दिए जा रहे पानी का आंकलन केंद्रीय जल आयोग मंडलेश्वर कर रहा है।
विस्थापन के नाम पर मजाक हुआ
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरदार सरोवर बांध क्षेत्र में विस्थापन के नाम पर मजाक हुआ है। पिछली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विस्थापित गांवों की संख्या का झूठा शपथ पत्र पेश किया। अलीराजपुर, बड़वानी समेत पूरे निमाड़ में भूकंप जैसे झटकों की आवाजें सुनाई दे रही हैं। 178 गांव डूब चुके हैं। 35 हजार से कुछ ज्यादा लोगों के सामने अब जीविका का संकट है। वे मंगलवार को गांधी भवन में जन संगठनों के बीच बांध के डूब क्षेत्र की स्थिति को साझा कर रही थीं। जन जागरण की खातिर मेधा ने नवंबर में भोपाल में बड़ा सम्मेलन करने की जरूरत बताई। कई क्षेत्रों में बद से बदतर हालात...मेधा ने कहा कि गुजरात के 320 गांव तो मप्र में 88 विस्थापित स्थलों में बुनियादी सुविधाओं का प्रबंध नहीं किया गया। बड़वानी, अलीराजपुर, धार आदि क्षेत्र में बद से बदतर स्थिति हैं। बड़ी संख्या में धार्मिक स्थल डूब गए तो कई गांव के अवशेष भी अब शेष नहीं रहे। बच्चों की पढ़ाई बंद तो चिकित्सा व्यवस्थाएं कमजोर हंै। सैकड़ों की संख्या में सर्पदंश की घटनाएं होने और पानी में मगरमच्छों की भरमार के चलते बड़ी संख्या में सैकड़ों आदिवासी पहाड़ पर जमा है। उन्होंने कहा कि जिन विस्थापितों को प्लॉट दिए उनकी अब तक रजिस्ट्री नहीं की। ऐसे में जमीन और आजीविका के बिना पुनर्वास का कोई अर्थ नहीं हैं।
- श्याम सिंह सिकरवार