खाली रह गया धरती का पेट
05-Oct-2019 06:48 AM 1234867
मप्र में जलसंकट आम बात है। प्रदेश का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां गर्मियों में जलसंकट न होता हो। लेकिन विसंगति यह है कि नियम होने के बाद भी नगरीय निकायों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं कराई जा रही है। मप्र में 13 साल बाद रिकार्ड तोड़ बारिश हुई है। जिससे प्रदेश में सभी नदियां, तालाब और बांध लबालब हो गए हैं, लेकिन इसके बावजूद भू-गर्भ खाली है। अगर प्रदेश में नियमों का पालन कर रेन वाटर हार्वेस्टिंग कराई गई होती तो प्रदेश के भू-गर्भ में इतना पानी भर जाता कि उससे 5 साल तक जल संकट की स्थिति नहीं बनती। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है जहां जल का अधिकार कानून बनेगा, जिसमें पानी के स्रोत से लेकर उपभोग तक सबको स्वच्छ एवं पर्याप्त जल सुलभ कराने पर जोर दिया जाएगा और पानी को दूषित करने वालों को दंडित करने का भी प्रावधान होगा। लेकिन सरकार की यह योजना तभी साकार होगी जब जल संग्रह की उचित व्यवस्था होगी। अगर प्रदेश में सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर दिया होता तो हर साल मार्च से लेकर जून तक होने वाले जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता। गौरतलब है कि गर्मियों में प्रदेश के अधिकांश जिलों में भयंकर जल संकट पसरता है। इसकी एक वजह होती है भूमिगत जल का नीचे चला जाना। पूर्ववर्ती सरकार ने जलसंकट की समस्या से समाधान के लिए जल संग्रहण के लिए कई योजनाएं बनाई और उनके सफल क्रियान्वयन के दावे भी किए। इनमें से एक है रेन-रूफ वाटर हार्वेस्टिंग। प्रदेश में 26 दिसंबर 2009 से मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम 1984 की धारा 78 के मुताबिक रेन-रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किया था। लेकिन विगत दस साल के दौरान जितने भी निर्माण हुए उनमें से अधिकांश में रेन-रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाए गए हैं। वाटर हार्वेस्टिंग नहीं होने से वर्षा का जल भू-गर्भ तक नहीं पहुंच सका। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2009 से अब तक प्रदेश की 16 नगर निगमों में 45,368 और नगर पालिका व परिषद में 2,503 इमारतों का निर्माण हुआ है। अगर पिछले 10 साल के दौरान बनी 47,871 इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार कर लिए गए होते तो इस साल करीब 47,871 लाख लीटर पानी भू-गर्भ तक पहुंचता। इससे प्रदेश में पांच साल तक जल संकट से निजात मिल सकती थी। भू-गर्भ जल को रीचार्ज करने के लिए वर्षा का पानी तालाबों, कुओं, नालों के जरिए धरती के भीतर इकट्ठा होता है, लेकिन अधिकांश तालाब अवैध कब्जों के कारण नष्ट हो गए हैं तो कुओं का भी अस्तित्व नष्ट हो चुका है। नालों में बारिश के पानी की बजाय शहरों और कारखानों का जहरीला पानी बह रहा है। नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी हैं। इस कारण वाटर रीचार्ज नहीं हो रहा। सरकारी स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्लांट लगाने की योजना है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। ऐसे में इस साल हुई बारिश केवल मुसीबत बन कर रह गई है। इस साल गर्मियों में प्रदेश में गहराए जलसंकट से निपटने के लिए सरकार सजग दिखी। गिरते भूजल स्तर से निपटने और जमीन को पानीदार बनाने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सख्ती से लगाए जाने का निर्णय लिया गया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए सरकारी खजाने में जमा सिक्योरिटी डिपॉजिट के 193 करोड़ रुपए योजनाबद्ध तरीके से खर्च करने का प्लान बना। लेकिन प्लान पूर्णत: क्रियान्वित नहीं हो सका। जबकि नगरीय विकास आयुक्त पी. नरहरि ने सभी नगरीय विकायों के आयुक्तों को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के नियमों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए थे। जानकार बताते हैं कि सरकारी दस्तावेजों में जमीन में पानी उतारने और जलस्तर बढ़ाने के लिए नियम-कायदे बने हैं, लेकिन इनका पालन धरातल पर नहीं हो रहा है। जबकि प्रदेश के सभी शहरों में नगरीय निकायों में बिल्डिंग परमिशन के लिए 140 वर्गमीटर से बड़े आकार के प्लॉट पर बनने वाले घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है। नगरीय निकाय सिक्योरिटी डिपॉजिट के बाद ही बिल्डिंग परमिशन जारी करते हैं, जो सिस्टम लगने के बाद वापस लौटाने का प्रावधान है। हालात ऐसे हैं कि पिछले एक दशक में बनी 47,871 इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है। सरकारी खजाने में सिक्योरिटी डिपॉजिट के 193 करोड़ रुपए जमा हैं। सिस्टम न लगवाने वालों पर नहीं होता जुर्माना जो लोग रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवा लेते हैं तो उन्हें सिक्योरिटी मनी लौटा दी जाती है। हालांकि नियम में कमी यह है कि अगर लोग सिस्टम न लगवाएं तो उन पर जुर्माना नहीं होता। खुद निगम के इंजीनियर भी मौका मुआयना नहीं करते। लिहाजा, लोग सिस्टम लगवाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे। वर्ष 2009 से पहले के मकानों पर वाटर हार्वेस्टिंग की धरोहर राशि नहीं ली जाती है और जो लोग खुद ही ये सिस्टम लगवाते हैं, उन्हें भी निगम से कोई मदद नहीं मिलती है। लिहाजा, यदि निगम इन मकानों के लिए नियम बनाकर वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य कर दे तो गर्मियों में शहर में जलसंकट दूर हो जाए। - बृजेश साहू
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