मंदी की मार
18-Sep-2019 06:32 AM 1234817
भारत आज एक गंभीर रूप लेते रणनीतिक खतरे का सामना कर रहा है। यह खतरा इसलिए नहीं पैदा हुआ है कि पाकिस्तान ने एलओसी पर एक और ब्रिगेड को तैनात कर दिया है, या कि उसने कोई बेहद नाटकीय मिसाइल का परीक्षण कर डाला है। न ही चीन ने सीमा पर कोई नई घुसपैठ की है। यह खतरा तीन तरह का नहीं है। न तो यह सैन्य किस्म का है, न ही यह हमारे पारंपरिक दुश्मनों की ओर से पैदा किया गया है, और न ही यह हमारी सीमा के पार से उभर रहा है। यह खतरा तीन तरह का जरूर है। इसका स्वरूप आर्थिक है, यह आंतरिक है, और यह पिछले दो दशकों में कमाई गई हमारी थाती को बरबाद करने पर आमादा है। यह थाती है— अंतरराष्ट्रीय साखÓ यानी 9/11 कांड के बाद की दुनिया में एक भद्रलोकÓ वाली छवि से बनी हमारी साख। यह साख कुछ तो हमारी स्थिरता और लोकतंत्र के कारण, और मुख्यत: हमारी बढ़ती आर्थिक मजबूती के कारण बनी थी। इसे आसानी से इस तरह समझा जा सकता है— जब आपकी अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत या इससे ज्यादा की दर से बढ़ रही हो, तो इसे आप अपने लिए सात खून माफ वाला मामला मान सकते हैं। 7 प्रतिशत की दर पर इसे पांच खून माफ करने वाला मामला मान सकते हैं। मगर जब यह 5 प्रतिशत की दर पर आ गई तो मान लीजिए कि आप खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं। यह वो स्थिति है जहां एक उभरती विश्व शक्ति तीसरी दुनिया की किसी लडख़ड़ाती अर्थव्यवस्था में तब्दील हो जाती है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय महज 2000 डॉलर के निचले दायरे में होती है। ताजा आंकड़े अर्थव्यवस्था के दो सबसे बड़े रोजगार देने वाले क्षेत्रों की बदहाली की तस्वीर दिखाते हैं, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि तथा सहयोगी क्षेत्र। इन दोनों की हालत सबसे खराब है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पिछले साल की पहली तिमाही के 5.1 फीसदी से गिरकर दो फीसदी रह गई है। यानी रबी की फसल आने के बावजूद किसानों के हाथ में आने वाली आय काफी कम रह गई है। वहीं मैन्युफैक्चरिंग 12.1 फीसदी से गिरकर 0.6 फीसदी रह गई है। सर्विस सेक्टर भी पहले से कमजोर हो गया है। मांग का आलम यह है कि घर, ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल के एफएमसीजी की बिक्री भी गिरने लगी है। कौन-सा ऐसा उद्योग क्षेत्र है जहां से उद्यमी मांग में गिरावट की बात नहीं कर रहे हैं। अब सवाल सिर्फ निवेश का नहीं है, यहां मांग का अकाल पड़ गया है। नतीजा निवेश से लेकर कर्ज की मांग और बचत सभी ने नीचे का रुख कर लिया है। सुस्ती की आहट ने लोगों को हर तरह के खर्च से रोक लिया है क्योंकि अनिश्चितता है। यही वजह है कि कर्ज लेकर घर खरीदने की लोग हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि के अलावा सबसे अधिक रोजगार देने वाले कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट सेक्टर की हालत सबसे अधिक खराब है। अब सवाल है कि इस संकट को समाप्त करने का उपाय लोगों के हाथ में ज्यादा कमाई देना है ताकि वे बाजार में इसे खर्च करें। लेकिन जब निजी क्षेत्र निवेश के लिए तैयार नहीं है तो यह जिम्मा अकेले सरकार पर ही आएगा। मौजूदा परिस्थितियों में सरकार के हाथ बहुत खुले नहीं हैं क्योंकि कर से कमाई लक्ष्य बहुत पीछे चल रही है। कड़वी सच्चाई सामने होने के बावजूद सरकार ने बजट में आठ फीसदी की वृद्धि दर के आधार पर अपने लक्ष्य रखे। इसमें चार फीसदी की महंगाई दर के साथ 12 फीसदी नॉमिनल जीडीपी दर रखी गई। लेकिन पहली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर यह आठ फीसदी पर अटक गई है। इसलिए सरकार के पास सार्वजनिक व्यय बढ़ाने के विकल्प सीमित हैं। - अरविंद नारद
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