बंजर भूमि बनेगी उपजाऊ
05-Sep-2019 08:50 AM 1234820
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर मप्र की 3 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि सहित देश में अगले 10 साल के भीतर 50 लाख हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया जाएगा। इससे करीब 75 लाख लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा। क्योंकि एक हेक्टेयर जमीन को खेती योग्य बनाने पर डेढ़ रोजगार का सृजन होता है। देश में कुल 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर जमीन में से 12 करोड़ 95 लाख 70 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर है। जिसमें मप्र की दो करोड़ एक लाख 42 हेक्टेयर बंजर भूमि भी है। इसे खेती योग्य बनाने के लिए केंद्र सरकार नीति बनाने जा रही है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, मप्र में उपजाऊ शक्ति के लगातार क्षरण से भूमि के बंजर होने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। सूखा, बाढ़, लवणीयता, कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल स्तर में गिरावट आने से सोना उगलने वाली उपजाऊ धरती मरुस्थल का रूप धारण करती जा रही है। ऐसे में आने वाले समय में खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बढ़ते मरुस्थलीकरण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि अगर रेगिस्तान के फैलते दायरे को रोकने के लिए विशेष कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वक्त में अनाज का संकट पैदा हो जाएगा। इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने 2010-20 को मरुस्थलीकरण विरोधी दशक के तौर पर मनाने का फैसला किया। मप्र सहित देशभर की बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के मुद्दे पर ग्रेटर नोएडा वैज्ञानिक और विशेषज्ञ मंथन करेंगे। इसमें तकनीकी इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिग और तेजी से फैल रहे बंजरपन को रोकने की कवायद होगी। इसमें 200 देशों के प्रतिनिधि और वैज्ञानिक अपने अविष्कारों को प्रस्तुत करेंगे। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक अनुमान के मुताबिक, देश में कुल 32 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर जमीन में से 12 करोड़ 95 लाख 70 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर है। इनमें सबसे अधिक मप्र की बंजर भूमि है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अगले 10 साल के भीतर देश की 50 लाख हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की योजना पर काम कर रहा है। उसमें मप्र की 3 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि भी शामिल है। जमीन के बंजरपन को रोकने के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के चार दिन पहले भारत ने कहा है कि वह 2030 तक अपने देश में बंजर हो चुकी 50 लाख हेक्टेयर जमीन को फिर से उपजाऊ बनाएगा, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या भारत ने अपना लक्ष्य कम कर दिए हंै? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है, क्योंकि बीते 17 जून को आयोजित लैंड डिग्रेडेशन न्यूट्रलिटी (एलडीएन) टारगेट सेटिंग प्रोग्राम में कहा गया था कि भारत 2030 तक 3 करोड़ हेक्टेयर जमीन का बंजरपन दूर करेगा। तो क्या सरकार ने अपने टारगेट में 80 फीसदी से अधिक की कमी कर दी है? उधर, मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि लक्ष्य को कम इसलिए किया गया है, क्योंकि मंत्रालय में आम सहमति नहीं बन सकी। सचिव स्तर पर 30 माह के लक्ष्य को मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन अब इसे संशोधित किया जा रहा है। भारत पहले 2011 में जर्मनी बोन चैलेंज में यह वादा कर चुका है कि 2030 तक 2.1 करोड़ हेक्टेयर जमीन का बंजरपन खत्म किया जाएगा। ऐसे में यह संभव है कि अब जो लक्ष्य रखा गया है, उसमें इसे जोड़ दिया जाए और कुल लक्ष्य 2.6 करोड़ हेक्टेयर का तय कर दिया जाए, लेकिन अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। दरअसल, भारत में जमीन का बंजरपन बड़ी तेजी से बढ़ा है। इसकी वजह वनों का कटाव, भूमि का क्षरण, बरसात के पैटर्न में बदलाव, जमीन का अत्याधिक दोहन है। यही वजह है कि 2011 में जब जर्मनी के बोन शहर में हुए एक कार्यक्रम में दुनिया के देशों ने 150 मिलियन हेक्टेयर जमीन का बंजरपन दूर करने की शपथ ली थी तो उस समय भारत ने शपथ ली थी कि वह 2020 तक 13 मिलियन (1.3 करोड़) हेक्टेयर जमीन का बंजरपन दूर करेगा और अगले 10 साल में 80 लाख हेक्टेयर जमीन को बंजर होने से बचाएगा। लेकिन जून 2019 में मंत्रालय ने इस लक्ष्य को बढ़ा कर 30 मिलियन हेक्टेयर कर दिया था। यूएनसीसीडी का आयोजन भारत में दो सितंबर से 13 सितंबर तक होगा। भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस सम्मेलन में भाग ले सकते हैं। ऐसे में समझा जा रहा है कि भारत देश में बढ़ रहे मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए कई अहम घोषणाएं कर सकता है। - अरविंद नारद
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