05-Sep-2019 08:28 AM
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जम्मू कश्मीर और अनुच्छेद 370 के साथ एक दुनिया और है, जहां खलबली मची है। वह क्षेत्र है भारत की अर्थव्यवस्था का। तमाम मानकों पर देश की अर्थव्यवस्था पिटती नजर आ रही है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ताबड़तोड़ बैठकें करने में जुटी हैं। यह सीधे तौर पर जनता की रोजी-रोटी और रोजगार से जुड़ा मसला है। अगस्त महीने के पहले पखवाड़े की हेडलाइंस में कश्मीर के साथ ही अर्थव्यवस्था की खबरें भी छाई हुई हैं। चिंताजनक बात ये है कि अर्थव्यवस्था को लेकर तत्काल जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर देश के हर नागरिक के जीवन पर पड़ेगा।
सरकार के समर्थक 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का जश्न मना रहे थे, उसी दिन सीतारमण ने बैंकों के प्रमुखों के साथ बैठक की। उसी दिन यह घोषणा हुई कि वह 6 अगस्त को एसएमई (लघु और मझौले उद्योग) सेक्टर, 7 अगस्त को ऑटो सेक्टर, 8 अगस्त को उद्योग संगठनों, 9 अगस्त को बाज़ारों के प्रतिनिधियों व निवेशकों और 10 अगस्त को मकान के खरीदारों और बिल्डरों के साथ बैठक करेंगी। उसी दिन खबर आई कि केंद्र सरकार द्वारा बजट पेश किए जाने के बाद शेयर बाजार में निवेश करने वाले खुदरा निवेशकों को 1.33 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी है और घरेलू संस्थागत निवेशकों को 3.33 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सरकार नियम लाई थी कि कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) का धन न खर्च कर पाने वालों के ऊपर 50,000 रुपये से 50 लाख रुपये तक जुर्माना लगेगा और संबंधित अधिकारियों को 3 साल तक की कैद की सजा होगी। अब रुख नरम करते हुए उद्यमियों के साथ बैठक के बाद वित्त मंत्री ने साफ किया कि सीएसआर में चूक करने वाली कंपनियों को दंडित नहीं किया जाएगा।
इसके अलावा सरकार सुपर रिच टैक्स हटाने पर भी विचार कर रही है। यह कर लगने के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने जुलाई के बाद से 22,000 करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाले है। माना जा रहा है कि निवेशकों पर इस कर का असर पड़ा है। वित्त मंत्री ने उद्योग जगत को आश्वस्त किया है कि कॉर्पोरेट टैक्स घटाकर 25 प्रतिशत किया जाएगा। सिर्फ घरेलू परिस्थितियां और कानून ही नहीं सरकार की स्थिति बिगाड़ रहे हैं, बल्कि चीन और अमेरिका की कारोबारी जंग में भारत के नाहक पिट जाने की संभावना बन रही है। अमेरिका-चीन के बीच कारोबारी जंग में युआन की कीमत एक दिन में 1.5 अंक गिरी तो अमेरिका का शेयर बाजार 3.5 प्रतिशत नीचे आ गया और अमेरिका ने चीन को करेंसी मैनिपुलेटर करार दिया। हालांकि जाने माने अर्थशास्त्री पॉल क्रूगमैन इसे सही नहीं मानते और उनका तर्क है कि चीन की आलोचना के लिए अमेरिका के पास इसके अलावा तमाम तर्क हो सकते हैं।
इस समय चीन और भारत के बीच कारोबार पूरी तरह से चीन के पक्ष में हो गया है। वित्त वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53 अरब डॉलर रहा। भारत, चीन को 17 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जबकि वहां से 70 अरब डॉलर का माल लाता है। ऐसे में अगर वैश्विक कारोबारी जंग में चीन अपने निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है तो उसका सीधा असर भारत के बाजारों पर पड़ेगा। इसे देखते हुए भारत ने उपायों पर विचार करना भी शुरू कर दिया है। भारत में इस्तेमाल होने वाले 90 प्रतिशत सौर उपकरणों का आयात चीन से होता है। अब भारत इन आयात पर शुल्क बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा भारत के कपड़ा निर्यात से चीन का सीधा मुकाबला होता है और अगर चीन का आयात सस्ता होता है तो भारत के कपड़ा बाजार के पिटने की भी पूरी संभावना है।
वाहन बाजार पिछले 19 महीने से लगातार गिर रहा है। वाहनों की बिक्री में जुलाई 2019 में 18 प्रतिशत की गिरावट हुई। यात्री वाहनों की बिक्री में 36 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जो पिछले 2 दशक की सबसे तेज गिरावट है। इस क्षेत्र ने वित्त मंत्री से कर्ज सस्ता और सुलभ करने की मांग की है।
-ऋतेन्द्र माथुर