अगला निशाना आरक्षण?
05-Sep-2019 07:47 AM 1234817
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत चाहते हैं कि आरक्षण पर सौहार्दपूर्ण वातावरण में समर्थक और विरोधी आपस में चर्चा करें। इसके साथ ही आरक्षण का मसला एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। क्या ऐसी चर्चा के जरिए आरएसएस और उसका अनुषंगी संगठन भाजपा आरक्षण को मजबूत करना चाहती हैं या फिर इनका इरादा आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों को नष्ट करना है? जिस तरह बीजेपी ने अनुच्छेद 370 को खत्म करके वाहवाही लूटी है और तीन तलाक को अपराध बना दिया है, उसके बाद ये आशंका होने लगी है कि भाजपा अपने कोर वोट बैंक यानी सवर्ण तबके को खुश करने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है। ऐसा भी माना जाने लगा है कि अब उसका निशाना ओबीसी का आरक्षण हो सकता है। ये आशंका इसलिए भी है कि आरएसएस से लेकर भाजपा तक के तमाम नेता समय-समय पर आरक्षण खत्म करने की मांग करते रहे हैं। सवर्ण गरीबों को 10 परसेंट रिजर्वेशन देने का बीजेपी को जिस तरह का चुनावी लाभ मिला है, उसके बाद बीजेपी इस रास्ते पर आगे बढ़ सकती है। एक बात जरूर है कि भाजपा ने जिस तरह से जोर-शोर से हंगामा करके अनुच्छेद 370 को खत्म किया, उस तरह से वह आरक्षण को खत्म शायद न करे। इसके पीछे कारण यह है कि साल-दर-साल आरक्षण को निष्प्रभावी बनाने की प्रक्रिया पहले से ही जारी है और जब भाजपा की सरकार होती है यह प्रक्रिया और तेज हो जाती है। आजाद भारत में देखा जाए तो संवैधानिक बाध्यता के कारण अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान एक मजबूरी बन गयी थी, परंतु अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या का सही आंकड़ा ना होने का बहाना बनाकर इस वर्ग के आरक्षण को दशकों तक संविधान की किताबों में निष्क्रिय अनुच्छेद के रूप में पड़ा रहने दिया गया। आखिर आजादी के 43 साल बाद केंद्रीय नौकरियों में 27 परसेंट ओबीसी आरक्षण देकर मंडल कमीशन की रिपोर्ट की एक सिफारिश लागू की गई। रिपोर्ट लागू होने के बाद से ही इसमें समय-समय पर काट-छांट की जाती रही। अब दो बार प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा नीत मोदी सरकार ने तो आरक्षण को रौंदने का मन बना लिया है। भाजपा सरकार आरक्षण को बेअसर तो लगातार करती ही जा रही है, लेकिन साथ ही वह आरक्षण के खिलाफ जनमत भी तैयार करती जा रही है। भाजपा और आरएसएस के नेता समय-समय पर ऐसे बयान देते रहे हैं, जिनमें आरक्षण को प्रतिभाओं के साथ होने वाला अन्याय बताया जाता है। इसे देश के विकास से भी जोड़ दिया जाता है। जिस तबके को आरक्षण का लाभ मिलता है, उनके बीच भी संघ परिवार ये संदेश देने में सफल होता जा रहा है कि आरक्षण से कोई फायदा नहीं है। कम संख्या वाली जातियों को तो ये काफी ज्यादा प्रभावित करने में सफल रहा ही है। बड़ी संख्या वाली जातियों को भी संघ ये समझा रहा है कि आरक्षण का लाभ केवल कुछ संपन्न परिवारों को ही मिलता है। सोशल मीडिया के दौर में आरक्षण के प्रावधान के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों वाले संदेश लगातार वायरल होते रहते हैं। खास बात यह है कि ये संदेश अधिकतर संघ परिवार से जुड़े लोगों की तरफ से ही शुरू होते हैं। आरक्षण हटने से एक बड़ा सवाल यह है कि जो आरक्षण ठीक से लागू हुआ ही नहीं, वह अगर हट भी जाए तो क्या फर्क पड़ेगा। इसका जवाब यह है कि आधे-अधूरे आरक्षण के सहारे ही सरकारी नौकरियों में कुछ भागीदारी तो बहुजनों की होने ही लगी है। आरक्षण के बिना वंचित जातियों के इतने लोग भी सरकारी सेवाओं में न आ पाते। इसके अलावा, धार्मिक या सनातनी आरक्षण और भ्रष्टाचार जनित आरक्षण तो समाज में लागू है ही जिसका फायदा तो अधिकतर सवर्ण समुदाय ही उठाता है। ऐसे में संविधान प्रदत्त जातिगत आरक्षण से स्थिति कुछ तो संतुलित होती है। जरूरत आरक्षण को सही तरीके से लागू करने की है, न कि आरक्षण हटाने की। वैसे भी कोई कानून अगर अपराध रोकने में बेअसर होता है, तो उस कानून को और कड़ा किया जाता है, न कि उस कानून को हटा दिया जाता है। -इंद्र कुमार
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