05-Sep-2019 07:30 AM
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बुंदेलखंड की प्यासी जनता को पानी पिलाने के नाम पर खूब लूटा और ठगा गया। बुंदेलखंड पैकेज के तहत पहले साल नल-जल योजना नाम से सौ करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे। योजना के लिए बाकायदा पैसा आया और खर्च भी हो गया। लेकिन लोगों की प्यास नहीं बुझ सकी। विभागीय जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि 100 करोड़ रुपए की इस योजना में 78 करोड़ रुपए का घोटाला हो गया। शिवराज सरकार में पीएचई मंत्री रही कुसुम महदेले हरकत में आईं थीं और और कहा था कि 78 करोड़ रुपए का क्या हुआ? पैकेज में बुंदेलखंड से पानी कहां गायब हो गया। इस बात का जवाब अफसर भी नहीं दे पाए थे।
उसी दौरान समीक्षा बैठक में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नल-जल योजना में हुए घोटाले पर पीएचई मंत्री कुसुम मेहदेले से कहा था कि आप ही मामले को देखिए, जो भी दोषी हों, उन पर कठोर कार्रवाई करिए। लेकिन उक्त बैठक के बाद तीन महीने तक जीएडी ने मामले की फाइल को दबाए रखा और दोषियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने के लिए मंजूरी नहीं दी। जब मामला ज्यादा गरमा गया तो हाईकोर्ट के आदेश पर दिसंबर 2014 में मुख्य सचिव अंटोनी डिसा ने उच्च स्तरीय जांच के लिए कमेटी गठित की। रिपोर्ट के मुताबिक योजना के कामों में शुरु से आखिरी तक गड़बडिय़ां मिलीं। 1 हजार 269 गांवों में जांच के दौरान जो 272 योजनाएं चालू मिलीं, उनसे भी मामूली पानी मिला और बिना पानी के ही 78 करोड़ डूब गए। इसकी रिपोर्ट 31 मार्च को सौंपी गई। अब देखना यह है कि विभाग कब तक दोषियों पर कार्रवाई करता है और बुंदेलखंड की जनता को कब पानी मुहैया कराता है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग द्वारा 6 जिलों में 100 करोड़ की लागत से 1287 नलजल योजनाएं तैयार की। इनमें से 997 योजनाएं शुरू ही नहीं हो पाईं। सीटीई रिपोर्ट के बाद पीएचई ने बुंदेलखंड पैकेज से जुड़े 15 अफसरों पर आरोप तय किए हैं। पीएचई के उच्चाधिकारियों ने राज्य सरकार को 100 पेज की रिपोट भेजी है। जिसमें 78 करोड़ रुपए की बर्बादी के लिए सीधे तौर पर अफसरों को जिम्मेदार बताया है। सरकार को भेजी रिपोर्ट में सागर संभाग के तत्कालीन अधीक्षण यंत्री सीके सिंह समेत 6 जिलों के कार्यपालन यंत्रियों पर आरोप तय किए जा चुके हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि अफसरों ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत योजनाएं तैयार करने में अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया। यही कारण है कि 1287 में से 997 नलजल योजनाएं पूर्णत: व्यर्थ रही। अफसरों ने न तो सामान की गुणवत्ता परखी, न भौतिक सत्यापन किया, न साइट विजिट की, न ही पाइन लाइन बिजली पंपों की गुणवत्ता परखी। अफसरों ने कार्यालय में बैठकर ही काम पूरा कर दिया। यदि अफसर जिम्मेदारी निभाते तो बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र की तस्वीर बदल गई होती।
जिस समय घोटाला हुआ उस समय मप्र सरकार में बुंदेलखंड क्षेत्र के 6 मंत्री गोपाल भार्गव, बृजेन्द्र प्रताप सिंह, हरिशंकर खटीक, जयंत मलैया, रामकृष्ण कुसमारिया, नरोत्तम मिश्रा थे। खास बात यह है कि बुंदेलखंड पैकेज की कमेटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री एवं सदस्य मंत्री एवं अफसर थे। उल्लेखनीय है कि जांच में 80 फीसदी भ्रष्टाचार हुआ, लेकिन मंत्रियों ने भी ध्यान नहीं दिया। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूपी की सभा में इसी काम के लिए तारीफ भी कर गए थे। टीकमगढ़ जिले में बुंदेलखंड पैकेज के तहत मंजूर की गईं 200 नल जल योजनाओं पर तकरीबन 14 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन हालात जस के तस हैं। इतनी राशि खर्च होने के बाद भी ग्रामीणों को पानी अब तक नसीब नहीं हो पाया है। हैरानी की बात यह है कि पीएचई ने योजनाएं कंपलीट करके ग्राम पंचायतों के हैंडओवर कर दीं, बाद में इनकी ओर मुड़कर तक नहीं देखा। इधर पंचायतों ने जलकर न मिलने और मेंटनेंस न हो पाने पर योजनाएं बंद कर दीं। देखरेख के अभाव में कहीं पर पाइप लाइन चोरी चली गई तो कहीं पर टंकी। इसके अलावा कई जगह तो काम की गुणवत्ता सही नहीं होने की वजह से कुछ दिन में ही योजना ने दम तोड़ दिया। बुंदेलखंड को सूखे से निजाद दिलाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से भारी भरकम राशि कार्ययोजना के नाम पर खर्च की जा रही है, मगर अधिकारी और कर्मचारियों की अनदेखी के चलते इसका लाभ हितग्राहियों को नहीं मिल पा रहा है। घुवारा का कहना है कि प्रदेश में अब कांग्रेस की सरकार बनने से जांच में तेजी आ गई है। पैकेज से जुडे अन्य भ्रष्टाचार भी जल्द ही जनता के सामने आएंगे।
-सिद्धार्थ पाण्डे