31-Aug-2013 09:33 AM
1234799
मध्यप्रदेश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी इस बार दोहरे मोर्चे पर लड़ रही है। एक तरफ तो भाजपा को उसके विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया से मोर्चा लेना पड़ रहा है। दूसरी

तरफ पार्टी के भीतर भी कमोबेश यही हालात हैं। हाल ही में रायशुमारी के दौरान प्रत्याशियों के चयन को लेकर पर्चियां डाली गईं और जो रुझान मिला उससे पता चला कि रायशुमति 90 प्रतिशत वर्तमान मंत्रियों और विधायकों के विरुद्ध है। इसका अर्थ यह हुआ कि पार्टी के भीतर ही भारी एंटीइनकमबेंसी है, लेकिन इस कवायद की खासियत यह है कि यह गोपनीय मतदान नहीं है। प्रत्याशियों और मौजूदा विधायकों को पता है कि कौन उनके खिलाफ वोट डाल रहा है। इसी कारण वोट डालने वालों को या राय देने वालों को इस बात का भय है कि यदि उन्होंने किसी विधायक या मंत्री की मुखालफत की और वह फिर भी किसी तरह टिकिट पाकर जीत गया तो खुन्नस निकालेगा। जैसे भोपाल में ही प्रभात झा को दायित्व सौंपा गया है। भीतरी खबर यह है कि झा सभी मौजूदा विधायकों को निपटाना चाहते हैं। यहां तक कि बाबूलाल गौर जैसे कद्दावर नेता को भी पार्टी के भीतर की एंटीइनकमबेंसी का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन प्रश्न वही है कि संबंध बिगडऩे और खुन्नस निकालने की आशंका के चलते भाजपा के रायचंदÓ निष्पक्ष रायशुमारी कर पाएंगे अथवा नहीं। आशंका यह भी है कि कहीं आपस में प्रत्याशियों को लेकर फिक्सिंग न हो जाए। ऐसा हुआ तो भाजपा की नैय्या डूबने से कोई नहीं बचा सकता। क्योंकि यह एक स्थापित सत्य है कि वर्तमान विधायकों को बड़ी तादाद में बदलने से ही भाजपा चुनाव जीत सकेगी।
हालात कठिन हैं
पाक्षिक अक्स ने बुंदेलखंड और बघेलखंड की कुछ खास विधानसभा सीटों का जायजा लिया है और उसमें सत्ता विरोधी रुझान को देखते हुए संभावनाएं तलाशने की कोशिश की है। दतिया जिले के सैवढ़ा में बहुजन समाज पार्टी का वर्चस्व और बढ़ गया है यहाँ पर पिछले चुनाव में राधेलाल बघेल ने भाजपा के प्रदीप अग्रवाल को 3276 मतों से पराजित किया था कांग्रेस के अरूण कुमार शर्मा चौथे स्थान पर रहे थे और उन्हें 11243 वोट मिले थे। राधेलाल को इस बार भाजपा के विरूद्ध सत्ता विरोधी मतों का लाभ मिलेगा ही, कांग्रेस भी अपनी पोजीशन मजबूत कर सकती है आरएसएमडी पिछली बार 13538 वोट लेने में कामयाब रही थी इस बार उसका प्रभाव उतना नहीं दिख रहा लेकिन भाजपा को फायदा मिलना सम्भव नहीं है। अग्रवाल की जगह भाजपा नए प्रत्याशी को मैदान में ला सकती है हालांकि अग्रवाल टिकिट करने की बात खारिज कर रहे हैं। भांडेर दतिया जिले की आरक्षित सीट और यहां भाजपा की पोजीशन कांग्रेस के मुकाबले मजबूत कही जा सकती हैं। पिछले चुनाव में आशाराम अहिरवार ने एलजेपी के फूल सिंह बरैया को 20098 वोटों से पराजित किया था। यह एक प्रभावी जीत थी लेकिन उसके बाद से विधायक महोदय ने क्षेत्र में शक्ल भी नहीं दिखाई हालांकि भाजपा को 39.67 प्रतिशत मत मिले थे इसीलिए इस बार भी पोजीशन थोड़ी बहुत कम ज्यादा हुई तो भी सीट निकल जाएगी क्योंकि कांग्रेस यहा तीसरे स्थान पर है। कांग्रेस के महेन्द्र बोध पिछली बार 14448 वोट ही पा सके थे और उन्हें 15.73 प्रतिशत वोट मिले थे बसपा का भी यहा अच्छा खासा प्रभाव है पर मजबूत प्रत्याशी नहीं है अहिरवार मानते हैं कि सीट पर मेहनत अधिक करनी होगी। दतिया में नरोत्तम मिश्रा को बहुजन समाज पार्टी के राजेन्द्र भारती से कड़ी टक्कर मिली थी भारती ने इस बार भी उनकी नाक में दम कर रखा है। नरोत्तम 11233 वोटों से जीते थे उन्हें 34 प्रतिशत से ऊपर वोट मिले थे। कांग्रेस को 19 प्रतिशत के लगभग वोट मिले। बसपा ने 23 प्रतिशत के करीब वोट प्राप्त कर लिए थे। कांग्रेस के भीतर इस विधान सभा सीट पर गुटबाजी ज्यादा होने के कारण कांग्रेस के कुछ नेता बसपा के लिए भीतर ही भीतर काम कर रहे हैं। नरोत्तम को इस बार जीतने के लिए उतना उत्तम माहौल नहीं मिलेगा।
शिवपुरी जिले की करेरा सीट पर भी बसपा का प्रभाव बढ़ गया है पिछले बार रमेश प्रसाद खटीक ने 12816 मतों से प्रभावी जीत हासिल की थी और बसपा के प्रागिलाल जाटव को हराया था। इस बार बसपा को कांग्रेस का साथ फायदा क्योंकि कांग्रेस की पोजीशन यहां पर चौथे नम्बर की है। हालांकि यह भाजपा की खतरनाक सीट नहीं है क्योंकि भाजपा को यहां 34 प्रतिशत से ऊपर वोट मिलते हैं लेकिन सत्ता विरोधी मत के चलते जीत का अंतर कम हो सकता है। यही हाल पोहरी विधायन सभा में है जहां पिछली बार 39.59 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा के प्रहलाद भारती ने बसपा के हरिबल्लभ शुक्ला को 19390 के भारी अन्तर से हराया था पर इस बार भारती को चुनौती बड़ी है कांग्रेस यहां तीसरे नम्बर पर है और निष्क्रिय है उसकी निष्क्रियता का फायदा बसपा उठा सकती है। शिवपुरी में बहुत कड़ा मुकाबला है माखनलाल राठौर का टिकिट कट सकता है पिछली बार वो बहुत कम अन्तर से जीत सके थे और भाजपा को 23.77 प्रतिशत वोट मिले थे जिसमें कांग्रेस के भीतर चल रही खींचतान का योगदान था। राठौर से टिकिट का पूछा गया तो फोन काट दिया । 1751 वोट की जीत के कारण भाजपा के लिए यह सीट रेडलाइन पर आ गई है। भाजपा को बसपा, कांग्रेस और बीजेएसएच से कड़ी चुनौती है। पिछोर में बीजेपी की मौजूदगी न के बराबर है यह परम्परागत कांग्रेस सीट है भाजपा यहां पिछले चुनाव में 12 वें नम्बर सिमट गई थी उसे कुल 902 वोट मिले थे जो कुल वोट के आधे प्रतिशत से थोड़े ज्यादा थे। यह दयनीय स्थिति सुधर ही सकती है बिगडने की तो गुंजाइश ही नहीं है वैसे यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बेजेएसएच के बीच है पिछली बार कांग्रेस के के पी सिंह कक्का जू ने बीजेएचएस के भैया साहब लोधी को 26835 मतों से पराजित किया था बसपा तीसरे नम्बर पर रही थी।
कोलरस में भी कमोवेश यही स्थिति है यहां पर जीत का अंतर बहुत मामूली था भाजपा के देवेन्द्र कुमार जैन कांग्रेस के रामसिंह से बमुश्किल 238 वोट से जीत सके थे। कांग्रेस को 27.31 प्रतिशत वोट मिले थे और भाजपा को 27.52 प्रतिशत वोट मिली थे। बसपा ने भाजपा के वोटों में सेंध लगाई थी बसपा की भी यहां प्रभावी उपस्थिति है और उसे 18 प्रतिशत के करीब वोट मिलते हैं। यही कारण है कि भाजपा को इस सीट पर भी खतरा महसूस हो रहा है यदि बसपा और कांग्रेस के वोटों में एक-एक प्रतिशत का इजाफा हुआ तो भाजपा के लिए कोलारस संंभालना कठिन हो जाएगा। गुना जिले की बमौरी विधायन सभा सीट पर भी सत्ता विरोधी रूझान के कारण हालात अच्छे नहीं हैं पिछली बार यहां भाजपा के कन्हैयालाल रामेश्वर अग्रवाल लगभग 31 प्रतिशत वोटों के साथ कांग्रेस के महेन्द्र सिंह सौसोधिया से 4778 वोट से जीते थे। कांग्रेस को भी 26 प्रतिशत के करीब वोट मिले थे और बसपा ने लगभग 18 प्रतिशत वोट प्राप्त करके जीत के अन्तर को कम किया था। गुना में भारतीय जनशक्ति पार्टी (बीजेएसएच)के राजेन्द्र सिंह सलूजा ने कांग्रेस की संगीता मोहन रजक को 12934 मतों से पराजित किया था। जनशक्ति पार्टीं को 36.45 प्रतिशत वोट मिले अब भारतीय जनशक्ति पार्टीं का भाजपा में विलय हो गया है इसलिए भाजपा की स्थिति यहां बेहतर है। चाचौड़ा में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। 2009 के चुनाव ने कांग्रेस के शिवनारायण मीणा ने 33.96 प्रतिशत वोट प्राप्त करते हुए भाजपा की ममता मीणा को 8022 मतों से पराजित किया था। कांग्रेस 34 प्रतिशत वोट पाने में कामयाब रही थी। भारतीय जनशक्ति पार्टीं को लगभग 13 प्रतिशत वोट मिले थे और भाजपा को 26 प्रतिशत वोट मिले थे,अर्थमैटिक के लिहाज से भाजपा यहां भारी है लेकिन सत्ता विरोधी मत के कारण मुकाबला काटे का है। राघोगढ़ में कांग्रेस को पराजित करना उतना आसान नहीं है पिछली बार यहां कांग्रेस के मूलसिंह(दादा भाई)भाजपा के भूपेन्द्र सिंह रघुवंशी से 7688 वोटों से जीते थे कांग्रेस को 43.61 प्रतिशत और भाजपा को 35.23 प्रतिशत वोट मिले थे इस बार भी कांग्रेस की स्थिति यहां मजबूत है। अशोक नगर जिले को भाजपा का गढ़ माना जाता है पिछली बार भाजपा को यहां 48.25 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा की दृष्टि से यह सीट सुरक्षित जोन में है। इसी प्रकार चंदेरी में भाजपा की जीत का अंतर बढ़ सकता है क्योंकि पिछली बार भाजपा को 35.46 प्रतिशत वोट मिले थे और भारतीय जनशक्ति पार्टीं 10.4 प्रतिशत वोट लेने में कामयाब रही थी। मुंगावली में भी भाजपा मजबूत है भाजपा के राव देशराज सिंह यादव 45.43 प्रतिशत वोटों के साथ 2145 वोटों से जीते थे और भारतीय जनशक्ति पार्टीं ने भी 12141 वोट प्राप्त किए थे इस बार भाजपा को यहां सुरक्षित बढ़त मिलने की सम्भावना है।
सागर जिले की बीना आरक्षित सीट पर भी भाजपा को मजबूत माना जा सकता है क्योंकि पिछली बार भाजपा की विनोद पंथी ने यहां कांग्रेस के डॉक्टर ओमप्रकाश कठोरिया को 6,409 वोटों से पराजित किया था। उस समय भाजपा को 35.28 प्रतिशत वोट मिले थे खासियत यह है कि भारतीय जनशक्ति पार्टी भी 11.2 प्रतिशत वोट लेने में कामयाब रही थी। अर्थमेटिक के लिहाज से भाजपा के लिए यह एक सुरक्षित सीट है। खुरई में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस के विधायक अरुणोदय चौबे की यहां अच्छी पकड़ है। पिछली बार उन्हें 45 हजार 777 वोट मिले थे और उन्होंने भाजपा के भूपेंद्र सिंह अमोल सिंह को 17 हजार 317 वोटों से पराजित किया था। भारतीय जनशक्ति पार्टी को यहां 7 हजार 671 वोट मिले थे। यह फायदा होने के बावजूद भाजपा यहां मजबूत स्थिति में नहीं है। इस सीट पर भाजपा को दमदार प्रत्याशी खड़ा करने पर ही कुछ लाभ मिल सकता है। सुरखी में भी कांग्रेस की स्थिति दमदार है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता है। पिछली बार भारतीय जनशक्ति पार्टी ने 4 हजार से ऊपर वोट प्राप्त किए थे, अब भाजश और भाजपा का विलय हो गया है, लेकिन उससे भी भाजपा फायदे में नहीं है। देवरी में भाजपा की स्थिति संतोषजनक है। पिछली बार भारतीय जनशक्ति पार्टी को 14707 वोट मिले थे और भाजपा को 40,810 वोट मिले थे भाजपा का वोट प्रतिशत 38.31 था जबकि भाजश को 13.81 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस 27.51 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रही। यदि 2-3 प्रतिशत सत्ता विरोधी रुझान रहा तब भी यह सीट सुरक्षित कही जा सकती है। रहली में भी गोपाल भार्गव के कारण भाजपा की पोजीशन मजबूत है पिछली बार गोपाल भार्गव को 55.38 प्रतिशत वोट मिले थे और उन्होंने कांग्रेस के जीवन पटेल को 25608 मतों से पराजित किया यह एक आरामदायक जीत थी। जिसमें इस बार भी कोई विशेष तब्दीली नहीं आने वाली। नरयावली में आरक्षित सीट पर भाजपा मुकाबले में बहुत आगे हैं। पिछली बार भाजपा को 43.51 प्रतिशत वोट मिले थे और भारतीय जनशक्ति पार्टी को भी 10 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार दोनों साथ हैं इसलिए भाजपा की ताकत बढ़ी हैं। यहां वर्तमान विधायक इंजीनियर प्रदीप लारिया ने काम भी ठीकठाक किया सागर को भाजपा का गढ़ कहां जाता है। पिछली बार भाजपा को 53 और भारतीय जनशक्ति पार्टी को 8 प्रतिशत वोट मिले थे दोनों का योग 61 प्रतिशत होता है। इस लिहाज से भाजपा यहां मजबूत है। वैसे यहां पर भाजपा के शैलेंद्र जैन ने 2009 में कांग्रेेस के प्रकाश जैन को 20 हजार 851 वोट से पराजित किया था। बंडा में यद्यपि पिछली बार भाजपा पराजित हो गई थी, लेकिन उस पराजय में भारतीय जनशक्ति पार्टी का बड़ा योगदान था जिसने भाजपा के 22 हजार 615 वोट काटे थे। यदि ये वोट भाजपा को मिलते तो उसकी जीत पक्की थी। इस बार यहां कांटे की टक्कर है। टीकमगढ़ जिले में पिछली बार उमा भारती की पराजय चर्चा का विषय रही। मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती को कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह ने कड़े मुकाबले में 9828 वोट से पराजित किया। भाजपा के अखंड दादा 11286 वोट लेने में कामयाब रहे। वैसे दोनों दलों को मिलाकर यहां पर 47 प्रतिशत वोट मिले थे जो अब साथ हैं और कांगे्रेस 36.29 प्रतिशत वोट लेने में कामयाब रही थी। यह सीट भी भाजपा के लिए जीत की गारंटी नहीं है। जतारा में कांग्रेस की स्थिति दयनीय है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और भारतीय जनशक्ति पार्टी के बीच था। जिसमें भाजपा के हरिशंकर खटीक ने भारतीय जनशक्ति के दिनेश अहिरवार को कड़े मुकाबले में मात्र 847 वोटों से पराजित किया था। लेकिन अब यह दोनों दल साथ हैं और दोनों को मिलाकर 45 प्रतिशत वोट बनते हैं। यहां सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद भाजपा फायदे में रहेगी बशर्ते प्रत्याशी को लेकर कोई तनातनी न हो। क्योंकि उमा भारती यहां पूरा दखल देना चाहेंगी। पृथ्वीपुर में कांग्रेस मजबूत है। बृजेंद्र सिंह ने पिछली पांच वर्ष के दौरान अपनी पोजीशन और सुधारी है। भाजपा का संगठन यहां दमदार नहीं है। पिछली बार भी भाजपा आपसी फूट के कारण यहां 5239 वोटों से पराजित हो गई थी। भारतीय जनशक्ति ने भी 4007 वोट काटे थे। भाजपा के सुनील नायक को गुटबाजी का शिकार होना पड़ा। इस बार हालात बेहतर नहीं हैं। यही हाल निवाड़ी में है। जहां भाजपा की पोजीशन बहुत डाउन है। समाजवादी पार्टी की मीरा दीपक यादव ने पिछली बार भाजपा के अनिल जैन को 15174 मतों से पराजित किया था। लगभग साढ़े सात हजार वोट भारतीय जनशक्ति पार्टी ने भी काटे लेकिन इस बार भी कोई विशेष परितर्वन की उम्मीद नहीं है। उत्तरप्रदेश में चुनाव जीत चुकी समाजवादी पार्टी यहां और आसपास की बाकी सीटों पर लंबे समय से मेहनत कर रही है।
कांग्रेस इस सीट पर चौथे नंबर पर है। वैसे समाजवादी पार्टी का प्रभाव बढऩे से भाजपा की बजाए कांग्रेस को नुकसान होना तय माना जा रहा है। खडग़पुर में इस बार रोचक मुकाबला हो सकता है क्योंकि यहां पिछली दफा भारतीय जनशक्ति के अजय यादव ने बहुतजन समाजपार्टी के सुरेंद्र सिंह गौर को 1006 वोटों से पराजित किया था और भाजपा भी 21,313 वोट लेने में कामयाब रही थी। भाजपा तथा भाजश को यहां 42.35 प्रतिशत वोट मिले थे। अब नया समीकरण है। कांग्रेेस की यहां प्रभावी उपस्थिति नहीं है। छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट पर पिछली बार बसपा, भाजपा, भाजश और कांग्रेस के बीच करीबी मुकाबला होने के कारण निर्दलीय प्रत्याशी मानवेंद्रे सिंह ने बाजी मार ली और एक निकटतम मुकाबले में भाजपा के गुड्डन पाठक को 1391 वोटों से पराजित कर दिया। भारतीय जनशक्ति पार्टी ने भाजपा के 12,931 वोट काटे थे। दोनों दलों को मिलाकर यहां 30 प्रतिशत के करीब वोट मिले। इस बार दोनों साथ हैं तो महाराजपुर में कमल खिल सकता है। चंदला विधानसभा सीट में भाजपा की स्थिति अंक गणित के हिसाब से मजबूत हो चुकी है। क्योंकि पिछली बार भाजपा के रामदयाल अहिरवार ने भारतीय जनशक्ति के आरडी प्रजापति को 958 वोट से पराजित किया था। दोनों दलों को 40 प्रतिशत से ऊपर वोट मिले थे। यहां कांग्रेेस का दूर-दूर तक अता-पता नहीं है। बसपा की मौजूदगी भी न के बराबर है। जातिगत समीकरण भाजपा के पक्ष में हैं क्योंकि अहिरवार समाज की इस क्षेत्र में बहुलता है। राजनगर में कांगे्रस की पोजीशन पिछली बार के मुकाबले मजबूत हुई है। पिछली बार कुंवर विक्रम सिंह ने बसपा के शंकर प्रताप सिंह को कड़े मुकाबले में 3032 मतों से पराजित किया था। भाजपा और भारतीय जनशक्ति क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर रही। इस बार दोनों की संयुक्त ताकत से फर्क पड़ सकता है। लेकिन भाजपा की कठिनाइयां यहां कम नहीं हो पाई हैं। छतरपुर में भाजपा का अच्छा प्रभाव है। हालांकि स्थानीय विधायक ललित यादव से कुछ शिकायतें भी हैं। शिवराज सिंह के आने से भाजपा के पक्ष में माहौल बना है। 2009 में भाजपा की ललिता यादव ने बसपा के बाबूराजा को 7,855 मतों से पराजित किया था। 7,540 वोट भारतीय जनशक्ति पार्टी के खाते में गए थे। इस बार अंक गणित भाजपा के पक्ष में है, लेकिन सत्ता विरोधी रुझान के चलते मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।
बुंदेलखंड और बघेलखंड में हालात दयनीय
पूरे मध्यप्रदेश में भाजपा की हालत शिवराज सिंह की जनआशीर्वाद यात्रा के कारण भले ही सुधरी हुई दिख रही हो पर 1998 से लेकर अभी तक के जो चुनावी समीकरण हैं उन पर नजरें इनायत की जाए तो भाजपा घिरती हुई दिख रही है। 1998 में भाजपा की पराजय की कल्पना मीडिया को भी नहीं थी। लेकिन ऐन वक्त पर प्रदेश की 186 विधानसभा सीटों से बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशियों को बिठवा दिया। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। हाल ही में रॉबर्ट वाड्रा प्रकरण और खाद्य सुरक्षा विधेयक से लेकर तमाम मसलों पर मायावती और कांग्रेस की निकटता कहीं इस बार भी भाजपा के लिए जी का जंजाल न बन जाए। समझा जाता है कि उस समय कांशीराम ने इस सौदेबाजी के बदले मध्यप्रदेश में अपनी पसंद के पांच कमिश्नर तैनात करवाए थे। बहरहाल वर्ष 2003 के चुनाव तक कांग्रेस और बसपा की इस संयुक्त चाल का असर खत्म हो गया। क्योंकि प्रदेश में कांग्रेसी कुशासन के खिलाफ माहौल बन चुका था और जिस तरह उमा भारती ने जीतोड़ मेहनत करके जनमानस को झकझोरा था उसके चलते परिवर्तन अवश्यंभावी था। 2003 में चुनाव होने पर भाजपा को कांग्रेेस के मुकाबले 13 प्रतिशत अधिक वोट मिले और वह भारी बहुमत से जीतने में कामयाब रही। लेकिन इसके बाद भाजपा की अंतर्कलह और उमा भारती प्रकरण के चलते भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता रहा। वर्ष 2008 में जीत का अंतर 5.5 प्रतिशत रह गया। हालांकि इसमें उमा भारती की पार्टी को मिले वोटों को शामिल किया जाए तो स्थिति कुछ संतोषप्रद होती है। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में 2004 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा की बुरी दुर्गति हुई और जीत का अंतर 3.5 प्रतिशत पर ठहर गया। विधानसभावार देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस से केवल एक सीट की लीड ले पाई थी। शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा में टिकिट की आशा लगाए नेता अपने-अपने समर्र्थकों को लेकर शक्ति प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यदि चार टिकिट आकांक्षी अपने समर्थकों को लेकर पहुुंचे और उनमें से केवल एक को ही टिकिट मिले तो बाकी तीन और उनके समर्थक मायूसी में क्या करेंगे यह समझना बहुत आसान है।