शिवराज के सेक्युलरिज्मÓ का राज
17-Aug-2013 06:23 AM 1234755

मध्यप्रदेश में पिछले दिनों दो अभूतपूर्व वाकये हुए। मदरसों में गीता ज्ञान देने संबंधी आदेश सरकार ने आनन फानन में वापस ले लिया और ईद मिलन समारोह में शिवराज की टोपी देखकर अभिनेता रजा मुराद ने उनकी तारीफ के पुल बांध दिये। रजा ने जो कुछ कहा उसके पीछे सोची समझी रणनीति हो सकती है। जिस तरह कांतिलाल भूरिया और कांग्रेस दूसरे नेताओं ने उन्हें अचानक मंच पर शिवराज सिंह के समक्ष प्रस्तुत कर दिया और बाद में रजा ने मौके पर चौका लगा दिया उससे कहीं न कहीं यह उभरकर सामने आया कि कांग्रेस भी भाजपा के भीतर ही धर्मनिरपेक्ष बनाम सम्प्रदायिकता की जंग को आग देना चाहती है। शिवराज अपनी छबि के प्रति उतने ही सचेत रहते है जितने कभी अटलबिहारी वाजपेयी रहा करते थे। भोजशाला प्रकरण में शिवराज ने जो अतिरिक्त सावधानी बरती उससे यही संदेश गया कि वे अपनी कथित सेक्युलर छबि को संजोना चाहते हैं क्योंकि इसमें भविष्य की बड़ी भूमिका की सम्भावना छिपी हुई है। पिछली बार भी वे बड़े सहज भाव से मुस्लिम बंधुओं से मिलने ईदगाह चले गए थे हालांकि वहां उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया गया क्योंकि नमाज चल रही थी। उनके साथ आश्चर्यजनक रूप से  कुछ संघ के बड़े पदाधिकारी भी थे। शिवराज के इन तमाम कदमों ने इस बात का संकेत तो दिया है कि भाजपा के भीतर नरम दल और गरम दल की तर्ज पर जो स्पष्ट विभाजन दिख रहा है उसके एक सिरे पर शिवराज जैसे नेता है जो अपनी छबि सेक्युलर बनाए रखना चाहते हैं और जिन्हें टोपी पहनने से भी ऐतराज नहीं है।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी के भीतर मोदी को लेकर कशमकश पुरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं इसका कारण यह है कि मोदी के रहते भाजपा की सीटों में भले ही इजाफा हो जाए लेकिन भाजपा को सहयोगी मिलने में दिक्कत होगी इसलिए एक सर्वमान्य नेता के रूप में शिवराज को भी भाजपा प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है ताकि आवश्यकता पडऩे पर उनका नाम आगे किया जा सके। मोदी को फिलहाल प्रधानमंत्री पद का प्रत्याक्षी न बनाने के पीछे भी कहीं न कहीं यही रणनीति है। हालांकि शिवराज की लोकप्रियता मध्यप्रदेश तक ही सीमित है जबकि मोदी सारे भारत में भाजपा और मतदाताओं के बीच एक पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। भाजपा में यदि सर्व सम्मति से किसी नेता को चयनित किया जाए तो मोदी का नाम ही ऊपर आयेगा लेकिन शिवराज लालकृष्ण अडवाणी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह के बाद गिने जाते हैं। वे अग्रिम पंक्ति के लीडर तो हैं पर राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ बनाने के लिए अभी उनको लम्बा रास्ता तय करना पड़ेगा। शायद इसीलिए जब रजा मुराद ने मोदी पर कटाक्ष करते हुए शिवराज की प्रशंसा की तो भाजपा में बौखलाहट शुरू हो गई। ये बौखलाहटें कमोवेश उन नेताओं की तरफ से आई जो भाजपा में हासिये पर चल रहे हैं। उमा भारती ने रजा मुराद को सी ग्रेट नेता घोषित करते हुए उनकी टिप्पणी को घटिया सियासत बताया। भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा रजा मुराद ने नामुराद जैसी बाते कहीं है। उमा भारती को मध्यप्रदेश में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दी गई है। चुनावी टिकट से संबंधित फीडबैक लेने की जिम्मेदारी भी उमा भारती को नहीं सौपी गई है इसीलिए वे मध्यप्रदेश से संबंधित छोटे छोटे मसलों पर चितिंत हो उठती हैं। उनका कहना है कि वोट जुगाडने की स्तरहीन राजनीति प्रदेश की तासीर को बिगाड़ेगी। शिवराज के सेक्युलर घोषित होने से तासीर किस तरह बिगड़ेगी यह उमा भारती ने नहीं बताया। ऐसा पहली बार हुआ है जब टोपी का राजनीतिकरण हो गया। सितम्बर 2011 में सद्भावना उपवास के दौरान मोदी को एक इमाम ने टोपी पहनानी चाही लेकिन मोदी ने उनका हाथ रोक दिया विवाद तभी से बना हुआ है। लखनऊ के सुन्नी धर्म गुरू मौलाना खालिद रशीद फिरंगी का कहना है कि टोपी को इस्लाम में पवित्र माना गया है और इस पर सियासत करना और इसका मजाक बनाना उचित नहीं है। लेकिन टोपी के माध्यम से मोदी पर कटाक्ष किए जा रहे है कुछ दिन पहले मोदी ने गुजरात दंगों पर एक साक्षात्कार के दौरान प्रश्न का जवाब देते हुए। कुत्ते के पिल्ले शब्द का प्रयोग जिस संदर्भ में किया था उस पर भी बवाल मचा था और रजा मुराद ने शिवराज की तारीफ करते हुए भी यह उल्लेख करा कि शिवराज यदि यहां आए है तो मुसलमानों के बच्चों को ईद की मुबारक बाद देने आए होंगे कुत्ते के बच्चों को नहीं। जाहिर है मोदी को निशाना बनाया जा रहा है और यह केवल बाहरी दल कर रहे हों ऐसा नहीं है भाजपा के भीतर भी जोर अजमाइश चल रही है।
बहरहाल शिवराज को इस छवि से फायदा ही है। क्योंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वोट भी शिवराज को मिल सकते हैं यदि उन्हें सेक्युलर नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया गया। जिन सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभावी भूमिका में है उन सीटों पर शिवराज को बढ़त मिल सकती है। इसीलिए यदि कांग्रेस सुनियोजित तरीके से शिवराज को आगे लाने की कोशिश करते हुए भाजपा में कलह बढ़ाने की मंशा पाले हुए है तो उससे घाटा कहीं मध्यप्रदेश में कांग्रेस को न हो जाए। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शिवराज की पांचों उंगलियां घी में है। उन्हें लाभ ही लाभ है नुक्सान नहीं।
सुनील सिंह

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