04-Feb-2013 11:07 AM
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गुजरात भारतीय जनता पार्टी में नंबर दो की तलाश शुरू हो गई है। राज्य में सर्वत्र भरतीय जनता पार्टी के नेता के रूप में नरेंद्र मोदी ही छाए हुए हैं इसी कारण किसी अन्य नेता का नाम आगे नहीं आ पाता। एक जमाने में केशुभाई पटेल और शंकर सिंह बघेला का नाम भी अग्रणी पंक्ति के नेताओं में शामिल था, लेकिन बाघेला कांग्रेस में चले गए तो केशुभाई पटेल ने नई पार्टी बना ली। भाजपा अध्यक्ष आरसी फल्दू की राज्य में कोई विशेष पहचान नहीं है और बाकी नेता भी कमोबेश राज्य के बाहर पहचान नहीं रखते हैं। जयवंती बेन मेहता राज्य के बाहर केंद्रीय मंत्री के रूप में काफी चर्चित रहीं पर उनका कद भी नरेंद्र मोदी के मुकाबले बहुत छोटा माना जाता है। हाल ही में जब सुगबुगाहट उठी थी कि नरेंद्र मोदी केंद्र की राजनीति में जाने वाले हैं तो उस वक्त आनंदी बेन पटेल का नाम उभरकर सामने आया था, लेकिन उनका विरोध राज्य में ही शुरू हो गया। अब राजनाथ सिंह ने संकेत दिए हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी को चुनाव की कमान सौंपी जा सकती है। ऐसी स्थिति में यह सवाल खड़ा हो गया है कि यदि नरेंद्र मोदी चुनाव की कमान संभालते हैं तो गुजरात की कमान किसके हाथ में रहेगी। नितिन भाई पटेल को नरेंद्र मोदी का प्रबल समर्थक और सहयोगी माना जाता है। कई मौकों पर वे नरेंद्र मोदी के साथ खड़े रहे और आड़े वक्त में भी उन्होंने नरेंद्र मोदी की भरसक सहायता की है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि गुजरात में यदि नरेंद्र मोदी केंद्र में आने की रजामंदी करते हैं तो वे अपने किसी विश्वास पात्र को ही सत्ता सौंपना चाहेंगे। क्योंकि मोदी के लिए गुजरात की सत्ता छोडऩा एक तरह से जुआ ही होगा। यदि वे प्रधानमंत्री नहीं बने तो गुजरात से भी हाथ धो बैठेंगे। इसलिए मोदी बहुत सोच-समझकर अपने उत्तराधिकारी का चुनाव करने वाले हैं। हालांकि इस बात की संभावना बहुत कम है कि वे केंद्र में लोकसभा चुनाव की कमान संभालने के बाद राज्य से मुख्यमंत्री पद त्याग देंगे किंतु भारतीय जनता पार्टी ने आगामी संभावनाओं को देखते हुए कुछ नए नेताओं को टटोलना शुरू कर दिया है।

रमन लाल वोरा भी एक कम्प्रोमाइज केंडीडेट के रूप में सामने आ सकते हैं। जबकि भूपेंद्र सिंह चोडसमा को संघ की पसंद माना जाता है। सौरभ पटेल और गणपत वसावा जैसे नेताओं की कहीं कोई पहचान नहीं है। बाबू भाई बोखिरिया भी उतने चर्चित नहीं हैं। बाकी सब नए नेता हैं जिनकी पहचान अभी पूरी तरह से स्थापित नहीं हुई है। नितिन पटेल और आनंदी बेन पटेल को पटेल समुदाय से होने का फायदा अवश्य मिल सकता है पर सवाल वही है कि क्या मोदी अपने रहते राज्य में समानांतर लीडरशिप विकसित होने देंगे। गुजरात में किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का अभाव सदैव बना रहता है। वहां आमतौर पर दो बड़े नेता स्थायी नहीं रह पाते। एक न एक को केंद्र में ही जाना पड़ता है और यदि वह नहीं जाता है तो उसे पार्टी में एक तरफ बिठा दिया जाता है या फिर पार्टी से ही रुखसत कर दिया जाता है। केशुभाई पटेल इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। जब नरेंद्र मोदी की राज्य में कोई पहचान नहीं थी उस वक्त भी राज्य में बड़े नेता के रूप में केशुभाई पटेल सर्वस्वीकार्य थे बाद में शंकर सिंह बघेला जैसे ही फ्रेम में आए केशुभाई को उन्होंने पीछे धकेलना शुरू कर दिया। लेकिन तभी मोदी ने मुख्यमंत्री पद संभाला और राज्य के बड़े-बड़े नेता धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए। आज स्थिति यह है कि नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति में राज्य का नेतृत्व संभालने के लिए भाजपा के पास कोई संभावनाशील नेता नहीं है। इसी कारण भाजपा में गुजरात को लेकर चिंता भी है और मोदी को केंद्र में लाने का विरोध करने वालों का भी यही तर्क है कि गुजरात में एक बड़ा नेता स्थापित किए बगैर मोदी को केंद्र में लाने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता। क्योंकि मोदी इस राज्य में भारतीय जनता पार्टी को लगातार जीत दिलाने में सफल रहे हैं और केंद्र की राजनीति में भी गुजरात का व्यापक योगदान है।
गुजरात से लोकसभा में भी भाजपा के प्रतिनिधियों की अच्छी खासी तादाद रही है। इस बीच राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद अब इस बात की अटकलें तेज हो गई हैं कि लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी भाजपा के मुख्य नेता रहेंगे और उन्हीं की देखरेख में 2014 का चुनाव लड़ा जाएगा। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाएगा अथवा नहीं, लेकिन यह तो तय है कि टिकिट तय करने से लेकर चुनाव के संचालन, प्रबंधन और अन्य दायित्व नरेंद्र मोदी ही संभालेंगे। ऐसा करके भाजपा फिलहाल सहयोगियों को भी अपने साथ रखना चाहती है जो मोदी की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। मुख्य रूप से जनतादल यूनाइटेड ने मोदी के संदर्भ में जो रुख अख्तियार किया है उसी वजह से भाजपा में मोदी की दावेदारी को लेकर दुविधा की स्थिति देखी जा रही है, लेकिन जनता का मूड मोदी के पक्ष में है। कार्यकर्ता भी मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दे दिया है। गुजरात में चुनाव जीतकर मोदी ने अपनी स्थिति भी पुख्ता कर ली है। इसी वजह से अब यह माना जा रहा है कि केंद्र की राजनीति में मोदी करीब-करीब सक्रिय हो चुके हैं और राजनाथ सिंह से भी उनकी पटरी अच्छी बैठ रही है। लिहाजा राज्य में एक सर्वमान्य नेता की दरकार है जो मोदी का विकल्प बन सके।
-अहमदाबाद से सतिन देसाई