19-Aug-2019 06:56 AM
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मप्र में 15 साल तक एक सुर, एक ताल और एक सोच वाली भाजपा सत्ता जाते ही खंड-खंड हो गई है। आलम यह है कि पार्टी प्रदेश में करीब आधा दर्जन गुटों में बंटी नजर आ रही है। यह खुलासा हुआ है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक रिपोर्ट में। रिपोर्ट आने के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सजग हुआ है और संघ को जिम्मेदारी सौंपी है कि वह सभी नेताओं को एक सूत्र में बांधने का जतन करे। सूत्र बताते हैं कि भाजपा से मिली जिम्मेदारी के बाद संघ ने 4, 5 और 6 अगस्त को सर सहकार्यवाह कृष्ण गोपाल के नेतृत्व में भोपाल महानगर के पार्टी प्रमुखों के साथ समन्वय बैठक की और स्थिति का जायजा लिया। संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि भाजपा नेताओं के बीच समन्वय की कमी चिंता का विषय बनी हुई है। संघ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच सेतू का काम करेगा।
सूत्र बताते हैं कि संघ ने आलाकमान को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें बताया गया है कि प्रदेश में भाजपा आधा दर्जन गुटों में बंटी हुई है। प्रदेश में भाजपा के जो 108 विधायक हैं वे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा के गुटों में बंटे हुए है। एक गुट ऐसे विधायकों का भी है जो न इधर के हैं और न उधर के। यानी पार्टी पूरी तरह पटरी से उतर गई है। ऐसा ही कुछ हाल भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का है। पार्टी की गुटबाजी का असर सदस्यता अभियान में भी देखने को मिला।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधानसभा के हालिया मानसून सत्र में मत विभाजन में भाजपा के दो विधायकों के कांग्रेस के साथ खड़े होने के बाद पार्टी की गुटबाजी चरम पर आ गई है। प्रदेश के नेता भले ही एकजुटता के कितने भी दावे करें, मगर सच्चाई यह है कि भाजपा इस समय तीन बड़े गुटों में बंटी है। ये गुट गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा और शिवराज सिंह चौहान का है। वहीं कैलाश विजयवर्गीय और राकेश का अपना गुट है। यही वजह है कि पूरे विधानसभा सत्र के दौरान भाजपा बिखरी नजर आई और अपने विधायकों को क्रॉस वोटिंग से नहीं रोक पाई। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद पार्टी दफ्तर से गोपाल भार्गव की दूरी भी विधायकों को संदेश देने में विफल रही। फिर शिवराज की पार्टी गतिविधियों से ज्यादा सामाजिक कार्यक्रमों में मौजूदगी से पार्टी में बिखराव हुआ। भाजपा की इन परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा का कहना है कि निश्चित रूप से कहीं न कहीं इन परिस्थितियों को लेकर मध्यप्रदेश भाजपा का नेतृत्व दोषी है। आपस में गुटबाजी, अंतर्कलह और प्रतिस्पर्धा है। जिसके कारण एक-दूसरे को निपटाने का काम चल रहा है। यदि भाजपा के नेताओं में समन्वय होता तो ये बात सामने नहीं आती कि बागी विधायकों से बात करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय नेतृत्व संभालेगा। इससे समझा जा सकता है कि मप्र में नेतृत्व कमजोर है।
विंध्य क्षेत्र से आने वाले एक भाजपा विधायक का कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं के आपसी टकराव से प्रदेश में भाजपा लगातार कमजोर होती जा रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने काश्मीर से धारा 370 हटाकर देशभर में भाजपा की स्थिति को मजबूत बनाया है, वहीं मप्र में मजबूत स्थिति में होने के बाद भी पार्टी नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई के कारण कमजोर होती जा रही है। इससे आलाकमान प्रदेश के शीर्ष नेताओं से नाराज है। वह कहते हैं कि प्रदेश में भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल द्वारा कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करने के मामले पर पार्टी आलाकमान प्रदेश के शीर्षस्थ नेताओं की भूमिका से बेहद नाराज है। लोकसभा चुनाव में सभी 28 सीटें जीतने के बाद से इन नेताओं ने न तो संगठन पर ध्यान दिया और न ही विधायकों की नाराजगी टटोली। यह भी ध्यान नहीं दिया कि क्या चल रहा है। यही वजह है कि दो विधायकों को तोडऩे में कांग्रेस कामयाब हो गई।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान डैमेज कंट्रोल की चाभी भी अपने हाथों में रखना चाहता है, ताकि विधायकों में भरोसा बना रहे। क्योंकि एक अगस्त को प्रदेश भाजपा मुख्यालय में हुई पार्टी की बैठक में जो नजारा देखने को मिला वह चिंताजनक है। दरअसल, इस महत्वपूर्ण बैठक में पार्टी के 16 विधायक शामिल नहीं हुए। जबकि बैठक में शामिल होना अनिवार्य था। संघ के एक नेता कहते हैं कि मप्र भाजपा में काफी समय से सबकुछ सही नहीं चल रहा है। पहले भाजपा को विधानसभा
चुनाव में पराजय मिली और अब विधानसभा में दो विधायक कांग्रेस के साथ चले जाने से बड़े नेताओं के बीच की अंतर्कलह खुलकर
सामने आ गई है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन की निष्क्रियता,
गुटबाजी और बड़े नेताओं की भूमिका पर रिपोर्ट तलब की थी। रिपोर्ट भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को सौप दी गई है। पार्टी के नेता आशंका जता रहे हैं कि कई बड़े नेताओं की भूमिका बदली जा सकती है।
सूत्र बताते हैं कि संघ ने भाजपा आलाकमान को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें कहा गया है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के जिन चार नेताओं पर सबसे अधिक भरोसा जताया वे उस पर खरे नहीं उतरे। वह कहते हैं कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के अलावा पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा पर भरोसा जताया था कि वे पार्टी में एकजुटता बनाए रखेंगे। लेकिन इनके बीच कोई समन्वय नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि संघ की रिपोर्ट के बाद प्रदेश भाजपा संगठन में बड़ा फेरबदल किया जा सकता है। उधर, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को बदलने की भी मांग तेज हो गई है। साथ ही संगठन महामंत्री सुहास भगत को भी हटाने को फैसला हो सकता है। भाजपा की नजर पूरी तरह डैमेज कंट्रोल पर है। राज्य के भाजपा नेता भले कमलनाथ सरकार गिराने की बात कह रहे हैं, लेकिन उनमें आपस में तालमेल कहीं नहीं दिखाई पड़ता। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और सचेतक नरोत्तम मिश्रा की दिशा अलग-अलग दिखती है। पार्टी का एक धड़ा अब शिवराज सिंह को प्रदेश की कमान सौंपने के पक्ष में नहीं है, लेकिन शिवराज का दिल मध्य प्रदेश को छोड़ ही नहीं पा रहा है। कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर भी भाजपा की सत्ता में मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहते हैं। नरोत्तम मिश्रा को अमित शाह का काफी करीबी माना जाता है। वह नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते हैं। इसलिए दो विधायकों के कांग्रेस के पाले में जाने का दोष मौजूदा नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव पर मढ़ा जा रहा है। पूरे मामले में भार्गव अलग-थलग दिख रहे हैं।
वहीं भाजपा सूत्रों के अनुसार भाजपा में 13 साल से शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए जो विधायक उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहे थे, माना जा रहा है कि वे विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं और कई बड़े नेताओं से उनकी चर्चा हो चुकी है। जल्द ही वे सभी नेता कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर सकते हैं। खास तौर से ये वे विधायक हैं, जो कभी कांग्रेस का पाला छोड़कर भाजपा के दामन में जाकर बैठ गए थे, लेकिन पिछले 15 साल में पार्टी में उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही थी। ऐसे में इन विधायकों में अजब छटपटाहट देखने को मिल रही है।
- विशाल गर्ग