19-Aug-2019 06:50 AM
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जो जमीन किसी भू-स्वामी के मालिकाना हक की नहीं है वह समस्त जमीन नजूल यानी सरकारी भूमि है। भूमि सुधार आयोग अब भोपाल सहित प्रदेशभर में नजूल जमीनों के रिकॉर्डों को व्यवस्थित करवाने की प्रक्रिया में जुटा है। इसके लिए नजूल जमीनों की नीलामी, उनके प्रबंधन और अन्य अधिकार भी कलेक्टरों को देने और राजस्व की मांग वसूली को व्यवस्थित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। नजूल जमीनों का सर्वेक्षण करवाने के साथ-साथ उनका लैंड बैंक भी बनाया जा जाएगा और जमीनों का पूरा रिकॉर्ड कम्प्यूटराइज्ड भी होगा।
विगत वर्षों में सरकारी जमीनों की जमकर बंदरबांट हुई है। नेताओं और अन्य रसूखदारों ने अपनी संस्थाएं, एनजीओ बनाकर ये जमीनें हासिल कर लीं। इसके अलावा कई ट्रस्टों और संस्थाओं को भी नजूल जमीनें शासन स्तर पर आवंटित की जाती रही है। फिलहाल मध्यप्रदेश राज्य भूमि सुधार आयोग अब नजूल जमीनों के प्रबंधन के काम में जुटा है। इसके अध्यक्ष इंद्रनील शंकर दाणी अभी सभी जिलों और संभाग मुख्यालयों पर बैठकें ले रहे हैं। आयोग ने सभी संभागों के राजस्व अधिकारियों-जनप्रतिनिधियों, अभिभाषकों और अन्य जानकारों को नजूल जमीनों के संबंध में एक प्रश्नावली भी उपलब्ध करवाई है, जिसके आधार पर सुझाव मांगे गए हैं।
नजूल जमीनों का सर्वे कर चिन्हांकन किया जाएगा। भोपाल सहित संभाग की सभी जगहों पर नजूल जमीनों पर पुराने निर्माण कब्जे हैं। इस संबंध में नजूल भूमि के बारे में स्पष्ट कानून बनाने की भी जरूरत है। अब उन सभी जमीनों का रिकार्ड भी अपडेट करवाया जा रहा है। कलेक्टर ने भी आयोग को ग्रामीण नजूल भूमि, शहरी नजूल भूमि के अलावा सेवा भूमि के संबंध में भी सुझाव दिए हैं। तत्कालीन शिवराज सरकार ने नजूल की जमीनों पर बांटे गए पट्टों और लीज होल्ड जमीनों को फ्री होल्ड करने की योजना भी बनाई थी, जिस पर अमल ही नहीं हो सका। यहां तक कि प्राधिकरण और हाउसिंग बोर्ड की लीज की जमीनों के लिए भी फ्री होल्ड पालिसी बनाई गई, उसमें भी ढेर सारी दिक्कतें सामने आईं, जिसके चलते प्रक्रिया ठप पड़ी है। फ्री होल्ड करने के लिए शासन ने 6 सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी भी बनाई थी, जिसके प्रमुख संभागायुक्त बनाए गए और इंदौर के तत्कालीन अपर कलेक्टर, उपायुक्त राजस्व, अपर कलेक्टर भोपाल सहित अन्य अफसरों को सदस्य बनाया गया।
वहीं अब किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदने से पहले उसका दाम, रजिस्ट्री का खर्च, वैधानिकता आदि की जानकारी ऑनलाइन ही मिल जाएगी। इसके लिए पंजीयन विभाग एक ऐप तैयार कर रहा है। इस ऐप के जरिए जिस प्रॉपर्टी को खरीदना है, उस साइट पर पहुंचकर मोबाइल पर ऐप का इस्तेमाल कर उस जमीन की असली कीमत का पता लगा सकेंगे। इतना ही नहीं, इसकी रजिस्ट्री में कितना खर्च आएगा, इसका अंदाजा भी मोबाइल ऐप के जरिए लग जाएगा। इसी ऐप के जरिए रजिस्ट्री के लिए स्लॉट भी बुक कर पाएंगे। अब लोकेशन में हेरफेर कर पंजीयन शुल्क में हेराफेरी नहीं हो पाएगी। जमीन की कीमतों में 20 फीसदी की कटौती के बाद अब पंजीयन विभाग 10 से ज्यादा बदलाव करने जा रहा है। पंजीयन विभाग के अफसरों का मानना है कि गाइड लाइन में 20 फीसदी कटौती से दस्तावेज पंजीयन बढ़ेगा। अफसरों को अब स्पॉट निरीक्षण भी ज्यादा करने होंगे ताकि चोरी रुक सके।
गूगल की मदद से दस्तावेज पंजीयन के ऐन पहले संपत्ति की इमेज ऑनलाइन दिखेगी। इससे यह आसानी से पता चलेगा कि मकान, प्लॉट कहां है, कितने मंजिल का है और उसका एरिया कितना है। ऐसे ही जमीन सिंचित है अथवा असिंचित, इसका पता लगाने में आयुक्त भू-अभिलेख का रिकॉर्ड मदद करेगा। इस ऐप के जरिए स्लॉट बुकिंग की संख्या अब जिला पंजीयक तय कर सकेंगे। अभी यह काम ऑनलाइन सिस्टम करता है। इसके अमल में आते ही बैंक की तरह भीड़ के हिसाब से स्लॉट ट्रांसफर होंगे। किस पक्षकार की रजिस्ट्री कौन करेगा, यह डिस्प्ले बोर्ड पर दिखाई देगा। इस ऐप से और भी कई सुविधाएं मिलेंगी, जैसे हर लोकेशन की सटीक जानकारी अब आसानी से उपलब्ध हो जाएगी।
- श्याम सिंह सिकरवार