19-Aug-2019 06:38 AM
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पर्यटकों की ज्यादा संख्या जंगल में अमंगल कर रही है। हालत यह है कि राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य में अन्य वन्य प्राणियों सहित बाघ भी टेंशन में है। यह खुलासा हाल ही में हुए एक अध्ययन में हुआ है। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व के बाघ पर्यटकों की ज्यादा आवाजाही की वजह से भारी मनोवैज्ञानिक तनाव में हैं। इससे उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है और उनकी प्रजनन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) हैदराबाद के वैज्ञानिक डॉ. जी. उमापति और उनकी टीम ने बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व के बाघों के 341 सैंपल इक_ा किये। सैंपल दो अलग-अलग मौके पर लिए गए। एक तब, जब पर्यटकों की संख्या ज्यादा होती है और दूसरे तब, जब पर्यटक नहीं आते हैं। सैंपल में लिए गए बाघ के अपशिष्ट पदार्थ और यूरिन का परीक्षण किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि उन सैंपल्स में फेकल ग्लूकोकॉर्टिकोइड मेटाबोलाइट की मात्रा तब बहुत ज्यादा थी, जब टाइगर रिजर्व में ज्यादा पर्यटक आते हैं। यह बाघों में तनाव का सूचक है। उसके शरीर में कुछ खास किस्म के बायो कैमिकलों का श्राव शुरू हो जाता है। यही नहीं, बाघों के अपशिष्ट पदार्थ के परीक्षण में फेकल ग्लूकोकॉर्टिकोइड मेटाबोलाइट की बढ़ी हुई मात्रा पाई गई।
सीसीएमबी के निदेशक राकेश मिश्रा का कहना है कि बाघ के शरीर में ग्लूकोकॉर्टिकोइड के ज्यादा श्रावित होने से उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका प्रजनन घट जाता है, प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है। इसका दूरगामी प्रभाव होना तय है और वो भविष्य में विलुप्त हो सकते हैं।
सरकार वन्य जीव पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे लोगों को जानवरों के बारे में जानकारी मिलती है और वो वन्य जीव से जुड़ाव महसूस करते हैं। लेकिन ज्यादा पर्यटन के दुष्प्रभाव भी नजर आने लगा है। कुछ समय पहले राजस्थान के सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान में किए गए अध्ययन में बाघों के तनावग्रस्त होने की बात का पता चला था, लेकिन बांधवगढ़ और कान्हा में किए गए ताजा अध्ययन से साफ हो गया है कि यह तनाव बाघ के लिए कितना घातक है और वो उनकी प्रजनन क्षमता और मांसपेशियों की ताकत को कमजोर कर रहा है। जाहिर है एक बीच का रास्ता निकालने की जरूरत है।
अध्ययन में सुझाव दिए गए हैं कि राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य में गाडिय़ों की आवाजाही को कम किया जाए और जानवरों के पानी पीने के लिए बनाए जाने वाले कृत्रिम तालाबों को सड़कों से दूर बनाया जाए। सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी इस मामले में केंद्र सरकार को कुछ सुझाव भेजने की तैयारी कर रहा है। वन विभाग को अनौपचारिक तौर पर इसकी जानकारी दे दी गई है। लेकिन सरकार को औपचारिक तौर पर सुझाव भेजने के लिए संस्थान अब तक हुए अध्य्यनों की महत्वपूर्ण बातों को इक_ा करके एक पॉलिसी पेपर तैयार करने वाला है, जिसे सुझाव के तौर पर सरकार को सौंपा जाएगा।
-नवीन रघुवंशी