19-Aug-2019 06:30 AM
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आजादी की 73वीं वर्षगांठ पर देश में एक अजब किस्म का उत्साह देखने को मिला। जहां स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सख्त संदेश दिया कि देश की एकता-अखंडता के लिए सरकार कठोर से कठोर कदम उठा सकती है। वहीं उन्होंने देश से अपील की कि भारत को विश्व का सबसे शक्तिशाली और संपन्न देश बनाने के लिए देशवासियों को भी त्याग करने होंगे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि देश हित में जो काम पिछले 70 सालों में नहीं हो सके उसे उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के महज 70 दिनों में पूरा कर दिया। वह चाहे अनुच्छेद 370 को हटाना हो या फिर समाज की सबसे बड़ी कुरीतियों में शुमार तीन तलाक का मामला हो। उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कि हम न समस्याओं को टालते हैं न पालते हैं। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने स्पष्ट संकेत दिया कि आने वाले दिनों में छोटे परिवार के लिए भी अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने जहां प्लास्टिक बैन करने की अपील की वहीं हर घर जल के लिए जल जीवन मिशन शुरू करने का ऐलान किया।
आतंकवाद समाप्ति का भरोसा
कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाए जाने को लेकर देश में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं उभर रही हैं, सो उस पर उनका बोलना स्वाभाविक था। उन्होंने उन वजहों को रेखांकित किया, जिसके चलते इस धारा को हटाना अनिवार्य था। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के जीवन में बेहतरी लाने और सीमा पार से मिलने वाली चुनौतियों से पार पाने के लिए यह फैसला अनिवार्य था। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने आतंकवाद समाप्त करने को लेकर भरोसा जताया। यह पूरी दुनिया के लिए एक प्रकार से संदेश था कि भारत आतंकवाद को लेकर कितना गंभीर है और इस तरह इस समस्या से पार पाने में वह विश्व बिरादरी के साथ खड़ा है। प्रधानमंत्री ने एक बड़ी घोषणा की कि सेना के तीनों अंगों के सुचारु संचालन के लिए एक चीफ ऑफ डिफेंस की नियुक्ति की जाएगी। यह मांग करगिल युद्ध के समय से ही उठाई जा रही थी, पर किन्हीं वजहों से टल रही थी। हालांकि सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल ठीक न होने की शिकायत अभी तक नहीं आई है, पर दुनिया भर में जिस तरह सैन्य प्रशासन में बदलाव हो रहे हैं और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतिक स्तर पर मजबूती की जरूरत महसूस की जा रही है, उस मामले में कई देशों से हम कुछ पीछे कहे जा सकते हैं। अभी तक सेना के तीनों अंगों के प्रमुख ही अपनी जरूरतों और स्थितियों के मुताबिक निर्णय करते रहे हैं। मगर उसमें कई बार कोई कमी देखी जाती है।
भौगोलिक नक्शे में बदलाव
आजादी की 73वीं वर्षगांठ से 10 दिन पहले यानी पांच अगस्त को मोदी सरकार ने इस देश को वह तोहफा दिया जिसका पिछले 7 दशक से इंतजार था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त कर उसे संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत मिले अधिकारों को समाप्त कर दिया। यही नहीं, जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कर अब उसे राज्य के बजाय केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया। दरअसल यह सब कुछ सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस.जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रॉ प्रमुख सामंत गोयल और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव एवं पीएमओ में पूर्व संयुक्त सचिव के तौर पर काम कर चुके मोदी के भरोसेमंद बीवी आर सुब्रमणयम, डीजीपी जम्मू-कश्मीर दिलबाग सिंह, जम्मू कश्मीर पुलिस में पुलिस महानिरीक्षक फारुख खान आदि ने रणनीति बनाकर धारा 370 को हटाया।
सरकार ने इस ऐतिहासिक और जोखिम भरे कदम को उठाने के लिए अनुच्छेद 370 के प्रावधानों का ही इस्तेमाल किया। भारतीय जनता पार्टी और उसके हिंदुत्व की विचारधारा वाले संगठनों का यह सपना रहा है कि कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अनुच्छेद 370 को समाप्त करना जरूरी है, क्योंकि यही अनुच्छेद कश्मीर घाटी में समस्याओं की जड़ है। भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में इसे समाप्त करने का वादा किया था। दूसरी बार मजबूत बहुमत हासिल करने के सौ दिन के भीतर सरकार ने यह वादा पूरा कर दिया। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के तौर-तरीके अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से पूरी तरह अलग हैं और वह कड़े फैसले लेने में परहेज नहीं करती है।
फिल्म कथानक जैसा घटनाक्रम
मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का घटनाक्रम रहस्य-रोमांच से भरी किसी फिल्म जैसा रहा जिसमें हर कोई अंदाज लगाता रहा और पता तब चला जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की। किसी धमाकेदार फिल्म की तरह सुरक्षबलों की तैनाती हुई, आतंकी खतरे के मद्देनजर परामर्श जारी हुआ, कश्मीर घाटी के राजनीतिक नेताओं को नजरबंद किया गया, इंटरनेट सहित अन्य संचार सेवाएं रोक दी गईं और बीती आधी रात अत्यंत गहमागहमी रही। यह सब जुलाई के अंतिम सप्ताह में तब शुरू हुआ जब केंद्र ने आतंकवाद रोधी अभियानों की मजबूती और कानून व्यवस्था की स्थिति के आधार पर घाटी में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियों (करीब दस हजार केंद्रीय सुरक्षाकर्मियों) की तैनाती का आदेश दिया। हालांकि, राज्य के राजनीतिक दलों और विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार के इरादोंÓ पर चिंता जाहिर की और दावा किया कि केंद्र कुछ बड़ा करनेÓÓ की योजना बना रहा है। दरअसल सरकार ने इतने सुनियोजित तरीके से कश्मीर को धारा 370 से मुक्त कराया कि कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सका। सबसे बड़ी बात कि बिना किसी फसाद के यह पूरा हुआ।
कांग्रेस ने क्या-क्या गंवाया
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 में बदलाव के लिए उठाए गए कदम पर कांग्रेस पार्टी जिस तरह से दिशाहीन नजर आयी, उससे लगता है कि उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। संसद के दोनों सदनों-राज्यसभा और लोकसभा में कांग्रेस जिस तरह भ्रमित नजर आई और उसके नेता जिस तरह अलग-अलग बयान देते नजर आए, उसका आंकलन करने की कोशिश इस लेख में की जाएगी। साथ ही ये भी जानने की कोशिश की जाएगी कि कांग्रेस की भविष्य की संभावनाओं पर इसका क्या असर हो सकता है। कश्मीर पर कांग्रेस की दिशाहीनता का नजारा सबसे पहले राज्यसभा में दिखा, जहां पार्टी के चीफ ह्विप-भुवनेश्वर कालिता ने सांसदों को ह्विप जारी करने से मना करते हुए राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कलिता ने कश्मीर मामले पर पार्टी के स्टैंड को जन भावना के विरुद्ध बताया। कलिता के अलावा जनार्दन द्विवेदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, अदिति सिंह आदि ने भी पार्टी लाइन से हटकर कश्मीर मुद्दे पर मोदी सरकार के फैसले से सहमति दर्ज करायी। इससे ऐसा संदेश गया कि कांग्रेस के युवा नेतृत्व का एक हिस्सा जन भावना के साथ खड़ा है, वहीं पुराना नेतृत्व अपना रवैया बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसी ही स्थिति पार्टी द्वारा जल्दबाजी में बुलायी गयी कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में भी दिखी, जहां युवा नेतृत्व जन भावना का हवाला देकर सरकार के फैसले के साथ खड़ा हुआ, तो पुराने नेता विरोध में रहे।
इस पूरे मामले में राहुल गांधी की भूमिका अजीब रही। पहले तो वो पूरे मामले पर चुप्पी साधे रहे, लेकिन युवा नेताओं के एक-एक करके पार्टी के स्टैंड के खिलाफ जाने पर ट्वीट करके पार्टी का स्टैंड क्लीयर करने की कोशिश की, लेकिन जब वे लोकसभा में पहुंचे तो उन्होंने इस मामले पर न बोलने का फैसला किया। विदित हो कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कश्मीर पर जो कुछ बोला (वे लगभग ये बोल गए कि कश्मीर अंतरराष्ट्रीय मसला है)। वह यह दिखाता है कि इस मामले पर कांग्रेस ने किस तरीके से अपना होम वर्क नहीं किया था। राहुल गांधी लोकसभा में बोलकर अधीर रंजन चौधरी की गलती सुधार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आने वाले समय में अधीर रंजन चौधरी की गलती की कीमत कांग्रेस को बार-बार चुकानी पड़ सकती है। इन सबके अलावा राहुल गांधी ने पार्टी की वर्किंग कमेटी की मीटिंग में वरिष्ठ नेताओं का साथ दिया, जिससे पता चलता है कि वो किस तरह से सिंडिकेट से घिरे हुए हैं। उधर इस मामले में विश्व समुदाय भी भारत के साथ खड़ा नजर आ रहा है जो मोदी और शाह की जोड़ी के लिए बड़ी बात है।