05-Sep-2019 07:58 AM
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भाजपा के कांग्रेस मुक्त अभियान के इस दौर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान कांग्रेस के लिए संजीवनी बने हुए हैं। क्योंकि तीनों राज्यों में उसकी सरकार है और इनके सहारे कांग्रेस अपने आपको देशभर में मजबूत करने का सपना संजोए हुए है। लेकिन इन तीनों राज्यों में से मप्र ऐसा राज्य बन गया है जहां पार्टी के दिग्गज नेता पावर पॉलिटिक्स में जुटे हुए हैं। आलाकमान चाहता है कि मप्र में एक पावर सेंटर रहे, लेकिन उसकी मंशा के विपरीत यहां तीन पावर सेंटर बन गए हैं। इस कारण सरकार और संगठन तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। इन पावर सेंटर की पावर पॉलिटिक्स के कारण नए प्रदेश अध्यक्ष का फैसला नहीं हो पा रहा है। स्थिति यह है कि एक अध्यक्ष पद के लिए आधा दर्जन से अधिक नेता दावेदारी कर रहे हैं। इसी के साथ कांग्रेस में इन दिनों शक्ति संतुलन का खेल चल पड़ा है।
गौरतलब है कि 2018 में अल्पमत के बाद भी सरकार बनाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज सरकार को इस स्थिति में ला खड़ा किया है कि वह मजबूत नजर आने लगी है। सरकार की मजबूती के लिए कमलनाथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ संतुलन साधे हुए हैं। लेकिन नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन की सुगबुगाहट के साथ ही पार्टी में पावर पॉलिटिक्स का खेला शुरू हो
गया है।
आखिर मास्टर माइंड कौन?
15 साल के संघर्ष के बाद कांग्रेस सत्ता में आई है, लेकिन 8 माह के दौरान सरकार को बरकरार रखने के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ को घाट-घाट का पानी पीना पड़ा है। अब प्रदेश अध्यक्ष को लेकर दबाव की पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में पावर पॉलिटिक्स का यह दौर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ङ्क्षसह की सक्रियता के कारण शुरू हुआ है। दरअसल, कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यही संभावना जताई जा रही थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अगले प्रदेशाध्यक्ष बनेेंगे। लेकिन समय-समय पर अलग-अलग नेताओं के नाम सामने आते रहे। यहां तक सब कुछ ठीक चल रहा था कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के आवास पर पहुंचकर दिग्विजय सिंह और मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने मुलाकात क्या की प्रदेश की राजनीति का पहिया उल्टा चल पड़ा।
अचानक अजय सिंह का नाम प्रदेश अध्यक्ष के सबसे सशक्त दावेदार के रूप में उभर गया। यही नहीं अजय सिंह के निवास पर केपी सिंह, विक्रम सिंह नातीराजा, सुनीता पटेल, कलावती भूरिया, आलोक चतुर्वेदी, देवेंद्र पटेल, फुंदेलाल मार्को, मनोज चावला समेत करीब 15 विधायक पहुंच गए। अजय सिंह के आवास पर पहुंचे विधायक दिग्विजय सिंह खेमे के थे। फिर क्या था उधर सिंधिया समर्थक मंत्री और नेता भी दबाव की राजनीति करने लगे। किसी ने पद से इस्तीफे की धमकी दी तो किसी ने आंदोलन करने की। हालांकि बाद में अजय सिंह ने कहा कि मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में नहीं हूं। सोनिया गांधी जो चाहेंगी मैं उस हिसाब से काम करूंगा। सभी विधायक मेरे आवास पर चाय पीने आए थे। वहीं दिग्विजय सिंह ने भी कहा था कि मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में नहीं हूं लेकिन अध्यक्ष पद के लिए योग्य व्यक्ति का चयन होना चाहिए। वहीं, डॉ. गोविंद सिंह ने कहा था मैं प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहता हूं लेकिन मुझे बनाएंगे नहीं।
ऐसे में सवाल उठता है कि फिर अजय सिंह के बंगले पर यह जमावट क्यों की गई। जानकार बताते हैं कि यह सारी कवायद दिग्विजय सिंह की हो सकती है। वे अजय सिंह के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। क्योंकि सियासत में ताकत की काफी अहमियत होती है।
दिग्विजय का बढ़ता हस्तक्षेप
15 साल बाद सत्ता मिलने के बाद कांग्रेसियों को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में न केवल सुशासित सरकार देखने को मिलेगी बल्कि उनके दिन भी फिरेंगे, लेकिन अगर कांग्रेसियों की माने तो कमलनाथ की इस सरकार में दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप सबसे अधिक है। प्रदेश सरकार के कई मंत्री दिग्विजय सिंह के बढ़ते हस्तक्षेप का विरोध कर चुके हैं। कांग्रेस के एक विधायक कहते हैं कि कभी -कभी तो ऐसा लगता है जैसे दिग्विजय सिंह ही प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इस संदर्भ में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि दिग्विजय सिंह सुपर सीएम हैं। सरकार में जो भी हो रहा है वह उन्हीं के इशारे पर हो रहा है।
उधर नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो घमासान मचा हुआ है उसके पीछे भी दिग्विजय सिंह को दोषी माना जा रहा है।
अपनों के निशाने पर सरकार
विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस की एकजुटता और भाजपा में फूट डालकर अपने मैनेजमेंट का जादू दिखा दिया है। उनका जादू देख भाजपा की बोलती बंद हो गई है लेकिन सरकार अपनों के निशाने पर आ गई है। आलम यह है कि अपना तथा अपने आका का पावर दिखाने के लिए कभी कोई मंत्री तो कभी कोई विधायक सरकार पर वार कर रहा है। हाल ही में अवैध खनन को लेकर सरकार दो गुटों में बंटी नजर आई स्थिति यह रही कि सरकार में बैठे मंत्री तक अपनी व्यथा सार्वजनिक करने से नहीं चूक रहे हैं। गोविन्द सिंह के पत्र के जवाब में लोक निर्माण और पर्यावरण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कह डाला कि अवैध उत्खनन रोकना हम सबकी जिम्मेदारी है और यदि डॉक्टर गोविंद सिंह अवैध उत्खनन होने की बात कर रहे हैं तो उन्हें खुद जाकर दतिया, भिंड, मुरैना में अवैध उत्खनन रोकना चाहिए। सज्जन सिंह वर्मा ने यहां तक कह दिया कि मेरे अधिकारी अगर मेरी बात न सुने तो मैं फौरन मंत्री पद से इस्तीफा दे दूं। सज्जन का कहना है कि गोविंद सिंह इतने बड़े कद्दावर मंत्री हैं और अधिकारियों की इतनी मजाल कैसे हो गई कि उनकी न सुने। सज्जन के इस बयान के क्या मायने हैं, यह तो वही जाने लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में सज्जन सिंह कमलनाथ गुट के और गोविंद सिंह दिग्विजय गुट के प्रतिनिधि माने जाते हैं और इसलिए इस बयान को भी राजनीतिक हलकों में कटाक्ष के रूप में देखा जा रहा है।
जनता और सरकार में बढ़ी दूरी
मंत्रियों और नेताओं के बीच मची वर्चस्व की लड़ाई के कारण सरकार और जनता के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस के एक पदाधिकारी कहते हैं कि मंत्री माल कूटने में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अहसास ही नहीं है कि उनका जनाधार बुरी तरह फिसल रहा है। मप्र में कांग्रेस का कार्यकर्ता सबसे अधिक हताश नजर आ रहा है। सरकार के पास ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं है जिससे वह जनता के मूड को लगातार भांप सके। विगत दिनों शिवपुरी जिले के आगर और पिछोर में शिवराज सिंह चौहान की सभा में उमड़ा सैलाब सरकार के लिए अलार्म है। आपकी सरकार, आपके द्वार कार्यक्रम कुछ जिलों को छोड़कर टांय-टांय फिस्स हो चुका है। सरकार के मंत्री ने ही अवैध उत्खनन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सिंधिया समर्थकों ने अपने नेता की उपेक्षा से दुखी होकर अलग राग अलाप रखा है।
यही नहीं निगम मंडलों में नियुक्ति की आस में प्रदेश भर के पांच सौ से अधिक नेता भोपाल में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के यहां हाजिरी लगाते दिख रहे हैं। लेकिन उनकी भी आस पूरी होती नहीं दिख रही है।
तीन गुटों में फंसा पेंच
कांग्रेस के एक पदाधिकारी कहते हैं कि ऊपरी तौर पर सरकार और संगठन में सबकुछ सही दिख रहा है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। सरकार के साथ ही संगठन भी तीन गुटों के पेंच में फंसा हुआ है। वह कहते हैं कि मप्र कांगे्रस अध्यक्ष पद को लेकर जो स्थिति दिख रही है वह पार्टी की गुटबाजी का परिणाम है।
वह कहते हैं कि सबकुछ सामान्य ढंग से चल रहा था, लेकिन पूर्व मंत्री अजय सिंह से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की मुलाकात ने माहौल को गर्म कर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम आने के बाद दिग्विजय गुट ने भी प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर लॉबिंग तेज कर दी है। प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष पद के लिए कांगे्रस के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री, विधायकों की ओर से लगातार पार्टी के भीतर दबाव बनाया जा रहा है। सिंधिया समर्थकों की ओर से यह मांग उठ रही है कि सिंधिया को मप्र कांगे्रस का अध्यक्ष बनाया जाए। इतना ही नहीं सिंधिया समर्थक मंत्री इमरती देवी ने महाराष्ट्र विस चुनाव के लिए सिंधिया को टिकट वितरण की जिम्मेदारी देने पर भी नाराजगी जताते हुए उन्हें मप्र में बड़ी जिम्मेदारी देने की मांग सार्वजनिक तौर पर की थी। वहीं कांग्रेस के कई पदाधिकारियों ने भी सिंधिया के समर्थन में सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है।
कमलनाथ गुट: मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष का पद छोडऩा चाह रहे हैं लेकिन सत्ता और संगठन के बीच संघर्ष की स्थिति न बने इसके लिए प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष का पद अपने गुट के पास ही रखना चाह रहे हैं। बाला बच्चन का नाम सबसे आगे है। बाला बच्चन आदिवासी वर्ग से हैं और विस में उपनेता संगठन के पदों पर कार्य करने का उनका अच्छा
अनुभव है।
सिंधिया गुट : सिंधिया गुट लंबे समय से ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की मांग कर रहा है। इसी बीच सिंधिया का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चल चुका है। हाल ही मेंं सिंधिया गुट के मंत्री और विधायकों ने एक बार फिर सिंधिया के लिए लॉबिंग तेज कर दी है। सांसद का चुनाव हारने के बाद सिंधिया मप्र की राजनीति ही करना चाह रहे हैं। राहुल गांधी भी सिंधिया के नाम को लेकर गंभीर हैं।
दिग्विजय गुट : इस गुट की तरफ से दिग्विजय सिंह और पूर्व मंत्री अजय सिंह के नाम प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर आगे बढ़ाए जा रहे हैं। हालांकि अजय सिंह कह चुके हैं कि वे अध्यक्ष पद की दौड़ में नहीं हैं। ऐसे में उनके बंगले पर विधायकों के जुटने को दिग्विजय सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की लॉबिंग के तौर पर देखा जा रहा है।
सीएम के निर्देशों का पालन नहीं
प्रदेश में सरकार के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंत्रियों के लिए आचार संहिता बनाई थी। उन्होंने आचार संहिता की कापी सभी मंत्रियों को दी थी। लेकिन पिछले 8 माह में किसी भी मंत्री ने उस आचार संहिता का पालन नहीं किया है। अगर मंत्री आचार संहिता का पालन करते तो सरकार पर उंगली नहीं उठती। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। तभी तो प्रदेश सरकार में शामिल तीनों गुटों के मंत्री एक-दूसरे को नीचा दिखाने का मौका नहीं चूकते हैं अभी हाल ही में गोविंद सिंह के बयान के बाद ग्वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस विधायक ने ही गोविंद सिंह की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। कांग्रेस विधायक ओपीएस भदौरिया और रणवीर जाटव ने कहा कि वरिष्ठ मंत्री को सार्वजानिक तौर पर इस तरह की बयानबाजी नहीं करना चाहिए। ओपीएस भदौरिया सिंधिया खेमे के माने जाते हैं। ओपीएस भदौरिया ने कहा- मंत्री को कैबिनेट में अपनी बात रखनी चाहिए थी। वो बताएं कि कौन पुलिसवाला पैसे ले रहा है। वहीं, दिग्विजय खेमे के माने जाने वाले रणवीर सिंह जाटव ने कहा है कि अवैध उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई चुन-चुनकर नहीं सभी जगह एक जैसी होनी चाहिए। वहीं, कांग्रेस नेता अशोक सिंह ने कहा- दतिया और लहार में सबसे ज्यादा अवैध उत्खनन होता है। वहीं, इस मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा- अवैध उत्खनन के मामले में सार्वजानिक बयानबाजी न करें। सरकार उसे रोकने के प्रयास कर रही है, जिसमें उसे सफलता भी मिल रही है। आने वाले दिनों में अवैध उत्खनन पूरी तरह से बंद होगा। नेता उचित प्लेटफार्म पर अपनी बात रखें। सार्वजानिक बातों बयानों से पार्टी की छवि खराब होती है।
सिंधिया के बाहर जाने से किसे फायदा?
दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बाद प्रदेश के कांग्रेस नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम आता है। जानकारों का कहना है कि सिंधिया अगर मध्यप्रदेश की सियासत से दूर रहते हैं तो इसका सीधा फायदा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को हो सकता है। दिग्विजय सिंह इस समय राज्यसभा सांसद हैं और उनकी उम्र भी करीब 72 साल की है। दिग्विजय सिंह अब प्रदेश की सियासत में अपना वर्चश्व बचाए रखना चाहते हैं इसलिए अक्सर मीडिया के सामने आते रहते हैं। राज्यसभा सांसद के अलावा उनके पास पार्टी का कोई बड़ा पद भी नहीं है। लेकिन दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह प्रदेश की सियासत में बड़ी तेजी से उभर रहे हैं। जयवर्धन सिंह अपने पिता की सीट राघौगढ़ से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं और प्रदेश सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री हैं।
वहीं, दूसरी तरफ मध्यप्रदेश का सीएम बनने के बाद कमलनाथ इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े। कमलनाथ 9 बार छिंदवाड़ा संसदीय सीट से सांसद रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने अपनी सीट अपने बेटे नकुलनाथ को सौंपी है। 2019 में उन्हें छिंदवाड़ा संसदीय सीट से टिकट मिला और वो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इकलौते सांसद हैं। जयवर्धन और नकुलनाथ दोनों ही युवा हैं और प्रदेश की सियासत में अपनी पहचान बनाने में लगे हुए हैं। अभी दोनों प्रदेश में दूसरी पंक्ति के नेताओं में शामिल हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी युवा हैं और केन्द्र की मनमोहन सरकार में दो बार मंत्री भी रह चुके हैं। अगर सिंधिया मध्यप्रदेश की सियासत में सक्रिय रहते हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने जयवर्धन और नकुलनाथ सरीके नेता दूसरी पंक्ति के नेता ही बने रह जाएंगे और मौका सिंधिया को मिलेगा। अगर सिंधिया प्रदेश से बाहर सियासत करते हैं तो कमलनाथ और दिग्विजय के बाद जयवर्धन और नकुलनाथ प्रदेश की सियासत में आगे बढ़ सकते हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेस नेताओं में छिड़ी वर्चस्व की जंग कहां जाकर समाप्त होती है।