नक्सल त्रासदी
19-Aug-2019 06:23 AM 1234938
एक लाख वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्रफल वाले छत्तीसगढ़ में लगभग 50 हजार वर्ग किमी से ज्यादा इलाके में पिछले चार दशक से नक्सलवाद इस तरह हावी है कि यहां आजादी के बाद से अब तक 200 से ज्यादा गांवों की जनगणना नहीं हो पाई है। राज्य बनने के बाद नक्सलवाद 14 से बढ़ते-बढ़ते 18 जिलों में फैल गया है और इस वजह से तकरीबन 40 हजार करोड़ रुपए के विकास कार्य या तो शुरू नहीं हुए या अधूरे छूट गए हैं। यही नहीं, नक्सल आतंक की वजह से बस्तर के बड़े हिस्से में साढ़े 6 सौ गांव पिछले 10 साल से खाली पड़े हैं, क्योंकि लोग गांव छोड़कर सड़क किनारे या सुरक्षित जगह पर आ बसे। जम्मू-कश्मीर में सरकार ने आतंकवाद से लडऩे और देश को एक करने के ध्येय से धारा 370 हटाई है। कश्मीर के अलगाववादी आतंकवाद और प्रदेश में फैले नक्सलवाद के बीच बुद्धिजीवियों का एक वर्ग काफी अंतर रहने के दावे करता है, लेकिन इंपैक्ट लगभग एक ही है। बल्कि नक्सलवाद के कारण बस्तर में हालात बेहद गंभीर हो गए हैं। पुलिस का आंकलन है कि बस्तर तथा सीमावर्ती प्रभावित जिलों को मिलाकर प्रदेश में हार्डकोर और फ्रंटल आर्गेनाइजेशन को मिलाकर 10 हजार से ज्यादा नक्सली सक्रिय हैं। इनसे निपटने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की 45 बटालियनों को मिलाकर 60 हजार से ज्यादा जवान बस्तर में ही तैनात हैं। इस सीधी लड़ाई का असर यह हुआ है कि बस्तर में आम लोग तो असुरक्षित हैं ही, पिछले दो दशक से विकास लगभग ठप हो गया है। सलवा जुडूम के कारण नक्सलियों और ग्रामीणों-फोर्स में 2005 में लड़ाई ऐसी बढ़ी कि जंगलों के 650 से अधिक गांवों को छोड़कर लोग जुडूम कैंप में रहने लगे। अब वे वहीं बस गए हैं, सारे गांव खाली पड़े हैं। 2005 में सलवा जुडूम आंदोलन शुरू हुआ था और इसके बाद 300 सुरक्षाकर्मियों सहित 800 से अधिक लोगों की हत्या का आरोप नक्सलियों पर लगा। इसके बाद गांवों से हजारों लोग 23 राहत शिविरों में पहुंच गए। तब खाली हुए अधिकांश गांव अब तक खाली पड़े हैं। छत्तीसगढ़ के 18 जिलों दंतेवाड़ा, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, नारायणपुर, राजनांदगांव, सरगुजा, जशपुर, कोरिया, धमतरी, महासमुंद, बालोद, कबीरधाम, रायगढ़, बलौदाबाजार, गरियाबंद, सूरजपुर और बलरामपुर में नक्सली गतिविधियां ज्यादा है। जबकि केन्द्र की सूची में बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, कांंकेर, कोरिया, नारायणपुर, राजनांदगांव, धमतरी, गरियाबंद, बालोद, सुकमा, कोंडागांव व बलरामपुर शामिल हैं। बच्चे शिक्षित न हों इसलिए 100 से ज्यादा स्कूल भवन उड़ा दिए गए हैं, जबकि पंचायतों में जाकर लोग जरुरी सुविधाएं न ले सकें इसलिए 50 से ज्यादा पंचायत भवनों और 90 से ज्यादा आंगनबाडियों को भी नक्सलियों ने खंडहर बना दिया है। सूचनातंत्र को कमजोर करने के लिए नक्सलियों ने फोन के दर्जनों टावर उड़ा दिए हैं। नक्सल आतंक के कारण बस्तर में 1700 आंगनबाडी, 219 अस्पताल, 300 स्कूल भवन और 200 किमी सड़कें नहीं बन पाई हैं। या तो नक्सलियों ने इन्हें बनने नहीं दिया, या फिर उन्हें धमाके से उड़ा दिया। नौनिहालों के लिए सुपोषण जैसी योजनाओं को लागू करने बनाए गए आंगनबाड़ी भवनों तक में बम लगाए गए। वित्त विभाग के सूत्रों के अनुसार बस्तर के सभी 7 जिलों में बीते 5 या अधिक सालों में करीब 40 हजार के काम शुरू नहीं हो सके हैं। यह राशि पूरे छत्तीसगढ़ के एक साल के बजट की आधी है। प्रदेश सरकार द्वारा नक्सल समस्या के निदान के लिए जितने प्रयास किए जा रहे हैं वह उतनी ही तेजी से बढ़ रहे है। -रायपुर से टीपी सिंह
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