03-Aug-2019 07:33 AM
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मप्र के आदिवासी बाहुल्य जिले श्योपुर जिले में बीते एक महीने में तकरीबन 18 बच्चों की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। सभी बच्चे सहरिया आदिवासी समुदाय के थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने मृतकों की जांच के आधार पर माना कि ज्यादातर मौत के पीछे अधिक गर्मी वजह रही। धर्मवीर उर्फ कालू आदिवासी के लिए जुलाई का महीना दुखों का पहाड़ लेकर आया है। महीने की शुरुआत में ही उसकी 18 महीने की बच्ची राजनंदनी बीमार हो गई। उल्टी और दस्त की वजह से कुछ ही देर में बच्ची ने होश खो दिया। बीमारी का असर इतना बुरा था कि शाम होते-होते उसकी बेटी ने इस दुनिया को विदा कह दिया। धर्मवीर मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके श्योपुर जिले के खुर्रखा गांव का रहने वाला है। पेशे से मजदूरी का काम करने वाले धर्मवीर ने बेटी के इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी। बीमार होते ही वह उसे बगल के गांव सहसराम में इलाज के लिए गए भी लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। धर्मवीर कहते हैं कि उन्हें कुपोषण के बारे में तो नहीं पता लेकिन उनकी बच्ची काफी कमजोर थी और वजन भी कम था।
श्योपुर धर्मवीर की तरह करीब दो दर्जन परिवार को अपना बच्चा खोने का दर्द झेलना पड़ रहा है। पिछले एक महीने के दौरान इसी जिले के छोटी पीपलबाड़ी गांव में ढाई साल की गंभीर कुपोषित निवारी लाल आदिवासी की पुत्री नीलम, कदवई गांव में कमल किशोर आदिवासी की बेटी एक साल की गुडिय़ा, शिवलालपुरा गांव की आदिवासी बस्ती में मुकेश आदिवासी का बेटा संजू, दाताराम आदिवासी की 18 महीने की बेटी सोनिया, कराहल के कांदरखेड़ा गांव में वकील सिंह आदिवासी की तीन साल की बेटी शिवानी ने दम तोड़ दिया। अगर सभी मामलों को जोड़ा जाए तो एक महीने में तकरीबन 18 बच्चों ने इस इलाके में दम तोड़ा है।
श्योपुर जिला कुपोषण के मामले में संवदेनशील है। यह कोई पहला साल नहीं जब श्योपुर से बच्चों की बदहाल स्थिति सामने आई हो। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की हालिया रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2015-16 में श्योपुर जिले के पांच वर्ष से कम उम्र के आधे से अधिक बच्चों का कद सामान्य से ज्यादा छोटा है। मध्य प्रदेश के कुल 42 प्रतिशत बच्चे इस तरह वृद्धि बाधित कुपोषण यानी कद में कमी के शिकार हैं। कद कुपोषण मापने का एक पैमाना माना जाता है। इस सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि इस उम्र के 55 फीसदी बच्चों का वजन जरूरत से काफी कम है। अगर पूरे मध्यप्रदेश के आंकड़े को देखे तो इस उम्र के 42.8 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले हैं और पूरे देश में यह आंकड़ा 35.7 प्रतिशत है।
पिछले महीने जिला योजना समिति की बैठक पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2019 तक 1144 अति कुपोषित बच्चे तीनों ब्लॉक की पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) में दाखिल हुए, जो कि एनआरसी की क्षमता से कहीं अधिक है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक साल 2016 के अगस्त-सितंबर महीने में भी कुपोषण के चलते 100 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी, हालांकि सरकार ने इन आंकड़ों की पुष्टि तब भी नहीं की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और मंत्री इमरती देवी भी इस इलाके के दौरे पर है।
क्या बच्चे भीषण गर्मी को झेल पाने में असमर्थ हैं? श्योपुर के स्वास्थ्य विभाग को इस बात का अंदेशा है। इस इलाके में कुपोषण से बच्चों की स्थिति खराब है लेकिन लगातार हो रही मौतों पर स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट का इशारा कुछ और है। एक के बाद एक बच्चे की मृत्यु पर स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों ने सभी मामलों की जांच की। जिले के मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. एआर करोदिया ने इन मामलों में कुपोषण से अधिक अन्य बीमारियों को मौत का जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि मौत के ज्यादातर मामले उस समय के हैं जब जिले में गर्मी अपने चरम पर थी। अधिकतर बच्चों को उल्टी और दस्त की शिकायत थी और कुछ मामले निमोनिया के भी मिले हैं। ऐसे में डॉ. करोदिया मानते हैं कि मौसम में भारी बदलाव से बच्चे इसे सह नहीं पा रहे और बीमार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि दस्तक अभियान के तहत पिछले दिनों उन गांवों से 40 बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया जहां उन्हें पोषण आहार और उचित इलाज मिल सकेगा।
- सिद्धार्थ पाण्डे