कामयाबी का चांद
03-Aug-2019 06:25 AM 1234888
अंतरिक्ष में भारत ने सफलता की एक और लंबी छलांग लगाई है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 22 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग सफलतापूर्वक संपन्न की। इससे पहले चंद्रयान-2 को 15 जुलाई को लॉन्च किया जाना था, लेकिन आखिरी वक्त पर एक तकनीकी गड़बड़ी पकड़ में आ जाने से लॉन्चिंग टाल दी गई थी। इसकी सफलता ने जाहिर किया है कि अब क्रायोजेनिक इंजन पर हमारी पकड़ मजबूत हो गई है। चंद्रयान-1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा गया है। चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्य के बाद चांद की सतह पर, उसके नीचे और अति विरल वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण का अध्ययन करना इस मिशन का मुख्य उद्देश्य है। चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। चंद्रमा का यह ऐसा इलाका है, जिसकी अब तक सीधे कोई जांच नहीं हुई है। मून मिशनों के माहिर अमेरिका, रूस और चीन ने भी अभी तक इस तरफ कोई लैंडिंग नहीं की है। इस इलाके के कुछ क्रेटर हमेशा छाया में रहते हैं और सूरज की किरणें न पडऩे से यहां बर्फ की शक्ल में पानी मिलने की संभावना ज्यादा है। हाल में कुछ ऑर्बिट मिशंस ने भी इस पर मोहर लगाई है। कहा जा रहा है कि बेहद ठंडे क्रेटर्स में सौर परिवार की प्रारंभिक सामग्री के अवशेष भी मौजूद हो सकते हैं। पानी की मौजूदगी आगे चलकर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इंसान की लंबी, सशरीर उपस्थिति के लिए केंद्रीय भूमिका निभा सकती है। यहां की सतह की जांच चंद्रमा के निर्माण को और गहराई से समझने में मददगार साबित होगी। भविष्य के मिशनों के लिए संसाधन की दृष्टि से इसके इस्तेमाल की संभावनाओं का पता लगाना संसार के सभी चंद्र अभियानों का एक बड़ा उद्देश्य है ही। सबसे बड़ी बात यह कि पृथ्वी के इस एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह को दुर्लभ अंतरिक्षीय सूचनाओं के केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। हीलियम-3 जैसा बहुमूल्य खनिज मिलने की भी आशा है, जिसके एक टन की कीमत करीब 5 अरब डॉलर हो सकती है। चंद्रमा से ढाई लाख टन हीलियम-3 लाया जा सकता है, जिसकी कीमत कई लाख करोड़ डॉलर होगी। इस काम के लिए चीन ने भी इसी साल अपना चांग ई-4 यान भेजा था। अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ की चंद्रमा के प्रति दिलचस्पी बढऩे की यह एक बड़ी वजह है। दुनिया की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के मालिक जेफ बेजोस का इरादा चंद्रमा पर कॉलोनी बसाने का है। इस सफलता के लिए इसरो के वैज्ञानिक निश्चय ही बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इसके लिए जीतोड़ परिश्रम किया और शुरुआती नाकामियों के बावजूद अपना धैर्य बनाए रखा। यह एक दूरगामी अभियान है, जिसमें सफलता-असफलता के दौर आते-जाते रहेंगे। हमें हर स्थिति में अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़ा होना होगा और अपनी अपेक्षाओं का बोझा लादकर उन पर अतिरिक्त दबाव बनाने से बचना होगा। यह किसने सोचा था कि आज से करीब सैंतालीस साल पहले यानी 1972 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी- नासा के अपोलो अभियानों की शृंखला एक बार खत्म होने के बाद दोबारा चंद्रमा को खंगालने की कोई पहलकदमी होगी। खासतौर से चांद की बनावट और उसके वातावरण से जुड़े रहस्यों की थाह लेने के लिए ऐसी कोशिशें फिर कभी होंगी- इसका अनुमान तक नहीं लगाया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में चंद्रमा भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम मुल्कों के अंतरिक्ष कार्यक्रम में फिर से शामिल हो गया है। नासा भी 2030 तक चांद पर एक बार फिर इंसान को उतारने और वहां इंसानी बस्तियों से लेकर दूरगामी अंतरिक्ष अभियानों के पड़ाव के रूप में चंद्रमा के इस्तेमाल के बारे में सोचने लगा है। -इंद्र कुमार
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^