18-Jul-2019 09:33 AM
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मप्र सरकार प्रदेश में राइट टू वाटर एक्ट लाने की तैयारी कर चुकी है। इसके लिए सरकार ने बजट में 1 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जिसके तहत हर नागरिक को प्रतिदिन 55 लीटर पानी पाने का अधिकार होगा। वहीं, ग्रामीण इलाकों में पेयजल व्यवस्था के लिए तकरीबन 4 हजार करोड़ की व्यवस्था की गई है जो कि पिछले बजट प्रावधान से 46 प्रतिशत आधिक है। वैसे तो पानी का अधिकार देश के संविधान आर्टिकल 21 के तहत जीने के अधिकारी के साथ पहले से ही शामिल हैं और इस तरह का कोई कानून अच्छा माना जाएगा, लेकिन सरकार को इस एक्ट को बनाते समय जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर कहती हैं कि मध्यप्रदेश में अब तक बड़े डैम बनाकर पानी रोकने की नीति पर काम हुआ है जिस वजह से नर्मदा से लगे 4 किलोमीटर दूर के गावों में भी पानी की किल्लत आ रही है। पानी का अधिकार कानून को बनाने की प्रक्रिया के तहत मध्यप्रदेश के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया गया है जिससे कानून का ड्राफ्ट उतना प्रभावी नहीं हो पाएगा जितनी जरूरत है।
पाटकर कहती हैं कि जल का अधिकार जल संरक्षण और उसके मैनेजमेंट से शुरू होना चाहिए। मध्यप्रदेश में पानी पर अब तक जो काम हुए हैं इसमें बड़े डैम और नदी जोड़ जैसी बड़ी योजनाएं शामिल हैं जिससे पर्यावरण का नुकसान हुआ है और यह योजनाएं पानी की समस्या का टिकाऊ समाधान नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि पानी से जुड़ा कोई भी प्रोजेक्ट पब्लिक सेक्टर का हो न कि निजी क्षेत्र का, ताकि पानी के अधिक दोहन से बचा जा सके। उन्होंने आगे कहा कि इस कानून को बनाने में सिर्फ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ही नहीं बल्कि अन्य विभाग जैसे आदिवासी कल्याण विभाग को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि जल संरक्षण का उद्देश्य सही मायनों में पूरा हो, न कि यह कानून जल संसाधनों को और क्षति पहुंचाए।
इस मुद्दे पर पिछले 22 वर्षों से जल संरक्षण पर काम कर रहे जबलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता विनोद शर्मा ने बताया कि कानून एक अच्छी पहल है। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि इस कानून में जल संरक्षण के साथ जल बचाने और इसका दुरुपयोग रोकने पर भी बात होगी। उन्होंने पंजाब सरकार के हाल में लिए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि गर्मियों में पंजाब में पानी के दुरुपयोग पर सरकार ने कड़ा रुख अपनाया था। इस तरह से इस कानून में भी पानी के समान वितरण की व्यवस्था होनी चाहिए। इस कानून को तैयार करने में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग अहम भूमिका निभा रहा है। इस विभाग से जुड़े इंजीनियर एके जैन बताते हैं कि इस समय मध्यप्रदेश में ग्रामीण, शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग पानी देने की व्यवस्था है। मध्यप्रदेश के दो तिहाई हिस्सों में ग्रामीण बसाहट है और विभाग के मुताबिक जहां हैंडपंप से पानी सप्लाई होती है वहां 70 लीटर प्रति व्यक्ति पानी मिलता है। ग्रामीण इलाकों में पाइप लाइन से सप्लाई होने वाले क्षेत्र में 55 लीटर प्रति व्यक्ति पानी की सप्लाई होती है। लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में पाइप लाइन से पानी की सप्लाई की जा रही है। शहरी इलाकों में कुछ शहरों में 90 लीटर तो कुछ में 135 और भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में 180 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी की सप्लाई पहले से ही की जा रही है। इस तरह हर रोज मध्यप्रदेश में कितना पानी सप्लाई हो रहा है इसकी गणना मुश्किल है।
इस कानून में अब तक तय हुई रूररेखा पर बात करते हुए एके जैन ने बताया कि पानी को लेकर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से लेकर नगर निगमों के अपने नियम बनें हैं। इस कानून के जरिए सभी नियमों का पालन करवाना सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार सख्ती से रूप टॉप वाटर हार्वेस्टिंग के नियम लागू करेगी। पानी बचाने पर अधिक ध्यान होगा और इस तरह हर नागरिक के लिए कम से कम 55 लीटर पानी प्रतिदिन मिले यह सुनिश्चित किया जाएगा। अब तक पानी के सभी प्राइवेट और सरकारी स्त्रोतों की जानकारी सरकार के पास नहीं थी, लेकिन इस कानून के बाद सभी स्त्रोतों की जियो टैगिंग और बोरिंग का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा।
-नवीन रघुवंशी