18-Jul-2019 09:22 AM
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विश्व इतिहास के पन्ने में 12 जून 2018 एक ऐसी तारीख है जिसे एशिया पेसिफिक ही नहीं, पूरी दुनिया में शांति के लिहाज से अहम समझा जा सकता है। इसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की सिंगापुर में एक छोटे से टापू पर स्थित होटल कैपिला में महज 50 मिनट की ऐतिहासिक वार्ता हुई थी। ऐसा माना जाता है कि यहीं से कहीं न कहीं तीसरे विश्व युद्ध के आगाज का भी अंत हुआ था।
इस वार्ता ने दोनों देशों के 68 बरस की शत्रुता का न केवल अंत किया, बल्कि मुलाकात का सिलसिला वियतनाम से गुजरते हुए उत्तर कोरिया की सीमा तक पहुंच गया। इधर बीते 30 जून को ट्रंप और किम जोंग की मुलाकात उत्तर और दक्षिण कोरिया को विभाजित करने वाले असैन्यकृत इलाका डीएमजेड यानी डीमिलिट्राइज्ड जोन में हुई है। इस मुलाकात के दौरान दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन भी उपस्थित थे। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की किम जोंग से पहली दो मुलाकातें बहुत सार्थक नहीं रहीं, पर इस पहल को सराहनीय जरूर कहा जा सकता है। तीसरी मुलाकात के बाद किम जोंग ट्रंप की दृष्टि में कितना खरा उतरेंगे, यह कहना अभी कठिन है। दो टूक यह भी कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जनवरी 2017 में सत्तासीन होने के बाद से किम जोंग तुलनात्मक अधिक हमलावर होते दिखाई देते हैं। जुबानी हमले के साथ-साथ परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल परीक्षण तक में किम जोंग लगातार सुर्खियों में बने रहे।
वर्ष 2006 से 2016 के बीच उत्तर कोरिया ने चार परमाणु परीक्षण और रॉकेट प्रक्षेपण करके दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, जबकि 2017 में बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करके अपनी हेकड़ी दिखा दी। हालांकि यह परीक्षण असफल रहा, लेकिन जिस तर्ज पर उत्तर कोरिया ने परमाणु बम और बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण के साथ जापान और दक्षिण कोरिया के ऊपर मिसाइलों को दागा, उससे युद्ध जैसी स्थिति पैदा हुई। कहा जाय तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की मार झेलने वाले उत्तर कोरिया ने अमेरिका को युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया था, पर सिंगापुर की मुलाकात ने शांति की एक राह सुझा दी।
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री डेयान रस्क का यह कथन कि हमने हर हिलती हुई चीज पर बमबारी की, एक दौर में विवादों में रहा। दरअसल तत्कालीन विदेश मंत्री डयान रस्क यह बात कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान उत्तर कोरिया पर अमेरिकी बमबारी के इरादे से कर रहे थे। अमेरिकी रक्षा मंत्री के दफ्तर पेंटागन ने इस अभियान का नाम ऑपरेशन स्ट्रैगल रखा था। माना जाता है कि इन तीन सालों तक उत्तर कोरिया पर बिना रुके हवाई हमले किए जाते रहे। वामपंथी विचारधारा के लोगों का यह कहना है कि तब उत्तर कोरिया के कई गांव, शहर और लाखों लोग तबाह हो गए थे। तभी से उत्तर कोरिया अमेरिका को एक खतरे के तौर पर देखता है। माना यह भी जाता है कि कोरिया युद्ध शीत युद्ध का सबसे बड़ा और पहला संघर्ष था।
चीन और उत्तर कोरिया ने वर्ष 1961 में पारस्परिक सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें स्पष्ट था कि अगर दोनों में से किसी पर भी हमला होता है तो वे एक-दूसरे की तत्काल मदद करेंगे। इसमें सैन्य सहयोग भी शामिल है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि दोनों देश शांति और सुरक्षा को लेकर सतर्क रहेंगे। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 2017 में कहा था कि उत्तर कोरिया पर काबू पाने के लिए सारे विकल्प खुले हैं। इसमें सैन्य कार्रवाई के साथ चीन पर दबाव की रणनीति भी शामिल है। उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इस मामले में चीन ने भी समर्थन किया, पर किम जोंग को लेकर चीन से ट्रंप की शिकायत खत्म नहीं हुई। गौरतलब है कि चीन और उत्तर कोरिया के बीच आयात-निर्यात भारी पैमाने पर आज भी जारी है। सिंगापुर में डोनाल्ड ट्रंप से पहली मुलाकात से पहले ट्रेन की यात्रा कर किम जोंग चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से मिलने चीन गए थे, और उसके बाद भी वे वहां गए। हालांकि ट्रंप को यह भी लगता है कि उत्तर कोरिया की समस्या का निदान चीन के सहयोग से आसानी से किया जा सकता है।
- संजय शुक्ला