18-Jul-2019 07:43 AM
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कर्नाटक में सत्ता बचाने और हथियाने के लिए खेला जा रहा सियासी दांवपेंच का खेल लोकतंत्र के माथे पर दाग से कम नहीं है। पहले सत्तारूढ़ दल के 14 विधायकों और फिर सभी मंत्रियों के इस्तीफे देने से राज्य एक बार फिर अस्थिरता के भंवर में फंसता नजर आ रहा है। चौदह महीने पुरानी कांग्रेस जेडी (एस) गठबंधन की सरकार कब धराशायी हो जाए, कोई नहीं जानता। प्रदेश में एचडी कुमार स्वामी के नेतृत्व वाली सरकार हिचकोले खाते-खाते ही चल रही है। इस अवधि में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि अपने आपको बचाए रखना ही मानी जा सकती है। गठबंधन सरकार के सामने आया संकट नीतियों में टकराव के कारण नहीं है। गठबंधन सरकार में शामिल सभी 118 विधायक मंत्री पद चाहते हैं, जो संभव नहीं है। कर्नाटक के राजनीतिक नाटकÓ पर गत दिनों संसद के दोनों सदनों में गूंज सुनाई दी। यहां सवाल राजनीतिक ड्रामेबाजी का नहीं है। सवाल ये कि सत्ता हथियाने के लिए बेमेल गठबंधन बनाए ही क्यों जाते हैं?
राज्य में 37 विधायकों वाले जेडी (एस) का मुख्यमंत्री है और 78 विधायकों वाली कांग्रेस का उपमुख्यमंत्री। सिर्फ भाजपा को रोकने के लिए। विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के सामने लड़े कांग्रेस और जेडी (एस) ने नतीजों के बाद गठजोड़ कर लिया। गठजोड़ हो तो गया, लेकिन उसका नतीजा कर्नाटक की जनता झेल रही है। सरकार की सारी ऊर्जा अपने अस्तित्व को बचाने में खर्च हो रही है। कांग्रेस, भाजपा पर सरकार गिराने का आरोप लगा रही है, लेकिन अपने विधायकों को अनुशासन में नहीं रख पाने के आरोपों का जवाब तो उसे देना ही पड़ेगा। भाजपा कर्नाटक के नाटक में अपना हाथ नहीं बताए, लेकिन सत्तारूढ़ दल के बागी विधायकों को चार्टर विमान से मुंबई पहुंचाने में उनके नेताओं की भूमिका किसी से छिपी नहीं है।
भाजपा पर्दे के पीछे से वो सब कर रही है, जो कर सकती है। चौदह विधायकों के विधायकी से इस्तीफे और 31 मंत्रियों के मंत्री पद से इस्तीफे से शुरू हुए संकट की परिणति क्या होगी, कहना मुश्किल है। सरकार बच भी सकती है और गिर भी सकती है। लेकिन फिर वही सवाल कि बच गई तो क्या गारंटी है कि संकट फिर नहीं खड़ा होगा? और गिर गई तो क्या गारंटी है कि नई सरकार स्थिर होगी? कर्नाटक पहला राज्य नहीं है, जहां राजनीतिक अस्थिरता है। गठबंधन की सरकारों का मतलब ही अस्थिरता होता है। कहीं अधिक तो कहीं कम। कर्नाटक के नाटक का पटाक्षेप जो भी हो, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कुर्सी के खेलÓ का खमियाजा राज्य की जनता को उठाना पड़ रहा है।
-इंद्र कुमार