18-Jul-2019 06:55 AM
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बुंदेलखंड में एक कहावत है कि चना है सो दांत नईया, दांत है सो चना नईया...। यह कहावत बुंदेलखंड में पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। यानी यहां के लिए योजना नहीं बनती है तब भी लोग बेहाल रहते हैं और योजना के बाद भी। सरकारें क्षेत्र के विकास के लिए पैकेज देती हैं तो उनका कागजी उपयोग कर खानापूर्ति कर दी जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि समस्या जस की तस रह जाती है। बुंदेलखंड कभी जल संरचनाओं के कारण पहचाना जाता था, मगर अब यही जल संरचनाओं के गुम होने से इस इलाके की पहचान समस्याग्रस्त इलाके की बन गई है। अब सैकड़ों साल पुराने तालाबों को पुनर्जीवित करने की योजना बन रही है, अगर यह ईमानदार पहल हुई तो यह इलाका खिल उठेगा, क्योंकि पानी की समस्या ने ही इस क्षेत्र को दुनिया के बदहाल इलाके की पहचान जो दिलाई है। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैले इस इलाके में नौ हजार से ज्यादा जल संरचनाएं हुआ करती थीं, मगर वर्तमान में इनमें से बड़ी संख्या में जल संरचनाओं ने अपना अस्तित्व खो दिया है।
वर्ष 2008 में सरकार ने बुंदेलखंड क्षेत्र में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर बोर करके पानी की टंकी का निर्माण कराया था, लेकिन 11 वर्ष बीत जाने के बाद भी योजना से ग्रामीणों की प्यास नहीं बुझ पा रही है। योजना से निर्मित पानी की टंकी शो पीस बनी हुई खड़ी है। इसका लाभ किसी भी ग्रामीण को नहीं मिल रहा है कुछ गांवों में तो पानी की टंकी कचरा की टंकी का कार्य कर रही है। इस योजना में शासन ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। इसके बाद भी लोगों को पेयजल नहीं मिल रहा है, जबकि सरकारी फाइलों में यह योजना संचालित बताई जा रही हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर, 2017 में इस इलाके की जल संरचनाओं के सीमांकन, चिन्हीकरण का ऐलान किया था, मगर इस दिशा में हुआ कुछ नहीं, उसके ठीक उलट बीते दो सालों में कई जल संरचनाओं का नामोनिशान ही मिटा दिया गया। राज्य में एक बार फिर इस इलाके की जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने की योजना पर काम शुरू हुआ है। विश्व बैंक के अधीन आने वाली 2030 वाटर रिसोर्स ग्रुप ने इस काम को पूरा करने के लिए राज्य सरकार और सामाजिक संगठनों के साथ तालाबों को पुनर्जीवित करने की पहल तेज कर दी है।
विश्व बैंक के अधीन काम कर रहे 2030 वाटर रिसोर्स ग्रुप से जुड़े अनिल सिन्हा और युवराज आहूजा राज्य के अधिकारियों और सामाजिक संगठनों से बुंदेलखंड के तालाबों को लेकर लगातार संवाद कर रहे हैं। 2030 डब्ल्यूआरजी से जुड़े प्रतिनिधि का कहना है कि बुंदेलखंड के तालाबों का सर्वेक्षण कराया जाएगा, तालाबों की क्या स्थिति है, इसका आकलन किया जाएगा, उसके बाद तालाबों को पुनर्जीवित करने की योजना पर अमल होगा।
सूत्रों का कहना है कि 2030 डब्ल्यूआरजी से जुड़े प्रतिनिधि, राज्य सरकार के अफसरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की दो दौर की बैठक हो चुकी है। इन बैठकों में बुंदेलखंड की पानी संबंधी समस्याओं पर चर्चा हुई, साथ ही तालाबों की स्थिति को लेकर उपलब्ध ब्यौरे का अध्ययन किया गया। बुंदेलखंड की बदहाली में सुधार लाने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2008 में विशेष पैकेज मंजूर किया गया था।
राहुल गांधी ने बुंदेलखंड को बहुत करीब से देखा, जाना-समझा और गरीबों के घरों में रात्रि विश्राम किया था। उस दौरान उन्होंने यहां की गरीबी देखकर क्षेत्र, हालात बदलने की दिशा में प्रयास किए थे। लगभग एक दशक पहले उन्होंने इस क्षेत्र के लिए 7,600 करोड़ रुपये से अधिक का विशेष पैकेज मंजूर कराया था। सामाजिक कार्यकर्ता बासुदेव सिंह का कहना है कि तालाब बुंदेलखंड की जीवन रेखा रहे हैं। यहां समस्या है तो सिर्फ पानी की। इस समस्या का निदान हो जाए तो बेरोजगारी, पलायन आदि से मुक्ति मिल जाएगी।
मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के मौजूदा सात जिलों सागर, दमोह, छतरपुर, निवाड़ी, टीकमगढ़, पन्ना और दतिया के लिए 3,860 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इसमें से सिर्फ 2100 करोड़ की राशि खर्च हो पाई है। इस राशि से जल संसाधन, कृषि, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, उद्यानिकी, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, पशुपालन, मत्स्य-पालन, कौशल विकास आदि विभागों के जरिए सरकार को अलग-अलग काम कराने थे। लेकिन यह पैकेज जमीन पर कहीं नहीं दिखा। जो जल संरचनाएं बनीं, वे या तो एक-दो वर्ष में वस्त हो गईं या बनते ही धूल-धूसरित हो गईं।
-सिद्धार्थ पाण्डे