पाठा की पाठशाला
18-Jul-2019 08:41 AM 1234932
मिनी चंबल घाटी के नाम से चर्चित बुंदेलखंड के पाठा के जंगलों में अब बन्दूकों की धांय-धांय नहीं, क से कबूतर की आवाज गूंज रही है। यहां के पुलिस अधीक्षक बंदूक नहीं, अपने हाथ में चाक और डस्टर लेकर वनवासियों के बच्चों को पाठा की पाठशाला अभियान के तहत ककहरा सिखा रहे हैं। जी हां, जब सूबे की पुलिस बदमाशों के खिलाफ एनकाउंटर अभियान चला रही है, ठीक उसी समय चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बुंदेलखंड में मिनी चंबल के नाम से चर्चित रहे पाठा के जंगलों के बीच बसे वनवासियों के बच्चों को अपने हाथ में चाक और डस्टर लेकर पाठा की पाठशाला अभियान चला रहे हैं। वह गांव में चौपाल लगाकर बच्चों को अक्षर ज्ञान करा रहे हैं। पुलिस अधीक्षक झा ने गत दिनों दस्यु प्रभावित मारकुंडी थाना क्षेत्र के गांव किहनिया कोलान में जब ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को क से कबूतर पढ़ाया तो एक बच्चे ने कहा मास्साहब... मास्साहब! क से कमल भी तो होता है। अपने इस अभियान पर एसपी झा कहते हैं, पाठा की पाठशाला कार्यक्रम से बच्चों के मन में पुलिस के प्रति जो डर और गलत मानसिकता समाई हुई है, उसे खत्म कर ही दस्यु समस्या का हल निकाला जा सकता है। ये बच्चे जब स्कूल जाएंगे और शिक्षित होंगे, तब खुद-ब-खुद अपनी तकदीर लिखेंगे। एसपी के इस अभियान से पुलिस को देख कर भागने वाले वनवासी भी खुश हैं। उन्हें भी लगने लगा है कि वर्दी में भी नेक इंसान छिपा होता है, जो उनकी पीढ़ी को खौफ और दहशत से उबारना चाहता है। डकैतों की पनाहगाह रहे पाठा क्षेत्र में पुलिस ने एक अनोखी पहल करते हुए तालीम की रोशनी फैलाने का जिम्मा उठा रखा है। पाठा की पाठशाला मुहिम के तहत पुलिस बीहड़ों में बसे दस्यु प्रभावित इलाकों में शिक्षा की अलख जगा रही है। इनमें मानिकपुर, मारकुंडी, डोडामाफी, जमुनिहाई, निही चिरैया, औदरपुरवा, अमरपुर, कोटा कडेंला, गढ़चपा, बड़ाहर, ऊंचाडीह जैसे डकैतों से प्रभावित कई अति संवेदनशील इलाके शामिल है। पाठा के इन इलाकों में कोल आदिवासी बहुतायत संख्या में हैं, जिन्हें हमेशा कुख्यात डकैतों ने इस्तेमाल किया है, इसलिए खाकी इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान दे रही है। पाठा की पाठशाला की इस मुहिम में डीएम व पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर थाना स्तर तक के पुलिसकर्मी खासी भूमिका निभा रहे हैं। जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय एसपी मनोज कुमार झा व अपर पुलिस अधीक्षक बलवंत चौधरी खुद बच्चों के बीच जाकर उन्हें शिक्षा के महत्व के बारे में बताते हुए उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मुहिम के तहत बच्चों को शिक्षण सामग्री भी वितरित की जाती है। पुलिस की इस मुहिम का सकारात्मक असर भी क्षेत्र में दिखने लगा है। बीहड़ के जिन इलाकों में डकैतों के डर से बच्चे स्कूल जाने से कतराते थे, आज वहां बस्ता लेकर बच्चे जाते दिखते हैं। इस अभियान के तहत पुलिस 800 से अधिक बच्चों को स्कूल के मुहाने तक पहुंचाने में कामयाब हुई है। अब तक जिन कोल आदिवासियों के बीच डकैतों के साथ-साथ पुलिस को लेकर भी दहशत व अविश्वास का माहौल था, उनके बीच पुलिस काफी हद तक अपनी नई पहचान बनाने में सफल रही है। इस पहल के अगुआ, जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बताते हैं, बच्चों के दिमाग में यह बैठाना जरूरी है कि पुलिस सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करती, बल्कि वह रचनात्मक भी है। बच्चों का भविष्य शिक्षा से सुधारा जा सकता है। पुलिस अब भी दस्यु उन्मूलन में लगी है, लेकिन वह वनवासी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी प्रेरित करती है। इसके लिए दस्यु प्रभावित गांवों को लक्ष्य बनाकर पाठा की पाठशाला अभियान शुरू किया गया है, और मानिकपुर के थानाध्यक्ष केपी दुबे को इसका प्रभारी बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि चित्रकूट जिले के मानिकपुर और मारकुंडी थाना क्षेत्र के घने जंगली इलाके दस्यु प्रभावित माने जाते हैं, और यहां वनवासियों के लगभग 60 गांव हैं। - धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया
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