31-Aug-2013 09:11 AM
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लगता है बारिश का सैलाब अजीत जोगी के मंसूबों पर पानी फेर गया है। आला कमान को बगावत का संदेश देकर अजीत जोगी जिस तरह छत्तीसगढ़ में किसी महत्वपूर्ण भूमिका में आना चाह रहे थे फिलहाल

वह भूमिका दिखाई नहीं दे रही। बी.के. हरिप्रसाद और अजीत जोगी की मुलाकात ने अजीत जोगी के बगावती तेवरों को जिस तरह शांत किया है उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। संभवत: पहली बार ऐसा हुआ कि हरिप्रसाद ने जोगी से उनके निवास जाकर मुलाकात की और उस मुलाकात के बाद जब जोगी बाहर निकले तो तरोताजा थे, न केवल तरोताजा थे, बल्कि पहले की तरह मुखर भी थे। अपनी चिरपरिचित कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए जोगी ने कहा कि वे न तो कोई जोगी एक्सप्रेस बना रहे हैं और न ही उनका अपना कोई झंडा है। वे कांग्रेस के साथ हैं और तिरंगे में उनकी आस्था है।
जोगी ने लगभग 24 घंटे के भीतर अपना स्टैंड बदल लिया। कांगे्रेस ने दक्षिण पंथी राजनीति का सूत्रपात करते हुए भाजपाई तर्ज पर जिस अंदाज में कलश यात्रा निकाली है उसका न्यौता जोगी को नहीं दिया गया। इसके बाद लगने लगा था कि जोगी शायद अब कांगे्रस में रहना पसंद नहीं करेंगे, लेकिन जोगी के नाम का कांटा इतनी आसानी से निकलने वाला नहीं था। जब महंत ने कहा कि जोगी स्वास्थ्य कारणों से नहीं आ रहे हैं तो जोगी ने पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें कलश यात्रा का न्यौता ही नहीं दिया गया। इस वाक्युद्ध ने दिल्ली में बैठे कांग्रेसियों को सचेत कर दिया। दरअसल दिल्ली में यह संदेश दे दिया गया है कि यदि जोगी हाशिए पर धकेले जाते हैं तो छत्तीसगढ़ में आदिवासी के साथ-साथ ईसाई वोट बैंक पर भी असर पड़ सकता है जो कि आमतौर पर कांग्रेस को समर्थन करते आए हैं। जोगी ने न केवल यह संदेश पहुंचाया बल्कि कुछ ऐसी हवा भी उड़ी की प्रदेश में वे एक प्रदेशव्यापी यात्रा भी कर सकते हैं जो अलग झंडे के नीचे की जाएगी। हालांकि जोगी अब इस बात से इनकार कर रहे हैं लेकिन पार्टी सूत्रों से पता चला है कि जोगी की इस कथित यात्रा के लिए संसाधन जुटाना शुरू कर दिया गया था पर अब जोगी को हरिप्रसाद ने स्पष्ट बता दिया है कि जो सोनिया और राहुल के साथ जुड़ा रहेगा वही पार्टी में टिक सकेगा। इसके अलावा आला कमान ने भी जोगी को अलग से यही बात कही थी। लेकिन जोगी इस सवाल से अभी भी बच रहे हैं कि वे चरणदास महंत के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे अथवा नहीं। इसका अर्थ यह है कि बगावत अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, किंतु-परंतु की गुंजाइश अभी भी है। शायद इसीलिए जब जोगी से मिलकर हरिप्रसाद बाहर निकल रहे थे तो अचानक जोगी समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी कि जोगी एक्सप्रेस में आ जाओ। जोगी एक्सप्रेस का अर्थ है जोगी के नेतृत्व को तरजीह देना पर दिक्कत यह है कि जोगी का पार्टी कार्यकर्ताओं में भले ही व्यापक जनाधार हो लेकिन प्रदेश के ज्यादातर बड़े कांग्रेसी नेताओं के लिए जोगी और उनके सुपुत्र नाकाबिले बर्दाश्त हैं। जोगी इसी कारण बार-बार आलाकमान से सौदेबाजी करते रहे पर अब सौदेबाजी चलने वाली है नहीं। इसलिए तिकड़म यह भिड़ाई जा रही है कि जोगी येन-केन-प्रकारेण कोई फार्मूला स्वीकार करें। नक्सली हमलें में मारे गए कांग्रेस के नेता नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल और उदय मुदिलयार की स्मृति में कांग्रेस ने कलश यात्रा निकालकर सहानुभूति का लाभ उठाने का प्रयास किया था। अब 24 अगस्त से जो कलश यात्रा बस्तर के दिग्गज नेता महेंद्र कर्मा की याद में निकाली जा रही है। वह 2 सितंबर तक चलने वाली है। लेकिन इस यात्रा में जोगी फेक्टर कांग्रेस को परेशान कर रहा है। कांग्रेस के नेता भले ही यह कह रहे हों कि हर एक की अलग जिम्मेदारी है और उसी के चलते जोगी को कलश यात्रा में नहीं बुलाया गया।
रायपुर से संजय शुक्ला के साथ टीपी सिंह