16-Sep-2013 06:14 AM
1234940
वीके हरिप्रसाद जब छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी नेता अजीत जोगी के घर उन्हें मनाने या यों कहें कि आलाकमान का कड़ा सन्देश देने पहुंचे थे तो लगा था कि जोगी हालात से समझौता करने को तैयार हैं।

लेकिन एक पखवाड़े के भीतर ही जोगी के तेवरों में फिर अंतर दिखाई देने लगा है। जोगी ने आलाकमान के उस सन्देश को कथित रूप से ठुकरा दिया है जिसके चलते उन्हें कहा गया था कि वे 30 सीटों से अधिक पर दखलंदाज़ी का सपना नहीं देखें। जोगी प्रदेश में अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं। इसी कारण उन्होंने साफ कहलवा दिया कि वे सारी 90 सीटों पर चुनाव के दौरान अपनी दखलंदाज़ी चाहते हैं। स्थानीय राजनीति में जोगी की पकड़ को मद्देनजर रखते हुए आलाकमान जोगी को ज्यादा नाराज नहीं करना चाहता। क्योंकि जोगी प्रदेश में कांग्रेस का गणित बिगाडऩे में सक्षम हैं। हाल ही में स्थानीय चुनाव के वक्त जोगी ने अपनी इस सक्षमता का प्रदर्शन किया है। जोगी की ताकत को देखकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मुखिया चरणदास महंत ने तो करीब करीब जोगी से रिश्ते सुधारना शुरू कर दिया है लेकिन बाकी नेता जोगी को जरा भी बर्दाश्त नहीं करते उसका कारण यह है कि जोगी अपने आस-पास किसी भी नेतृत्व को पनपने नहीं देते। जब वे मुख्यमंत्री थे उस वक्त उन्होंने प्रदेश के सारे कद्दावर नेताओं को दिल्ली शरण लेने पर मजबूर कर दिया था। बाद में 2003 में जोगी को इन्हीं नेताओं ने चुनाव में पराजित करवा दिया। अब महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल जैसे नेता नहीं हैं तो जोगी भविष्य में किसी बड़ी भूमिका का सपना देखने लगे है। प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में उनकी पकड़ निर्विवाद है और इसी कारण वे तमाम नेताओं पर दबाब बनाने में कामयाब हो जाते हैं उनकी कामयाबी का आलम यह है कि पिछले दिनों जब उन्होंने अपने कुछ विश्वसनीय लोगों को दिल्ली दबाब बनाने के लिए भेजा तो सब कुछ जानते हुए भी आलाकामन ने कसमसाकर चुप्पी साध ली।
उनके ये विश्वसनीय अभी भी दिल्ली में डेरा जमा कर बैठे हंै और कोशिश कर रहे हैं कि चुनावी टिकट आवंटन के समय जोगी की राय को तरजीह दी जाए लेकिन दिक्कत यह है कि जोगी समर्थकों को टिकट मिला तो जोगी विरोधी उन्हें पराजित करने के लिए अपनी ही पार्टीं के खिलाफ काम करने लगेंगे ऐसे हालात में जोगी को ज्यादा महत्व देना गले की हड्डी बन सकता है फिर भी छत्तीसगढ़ के दस जिले ऐसे हैं जहां जोगी कांग्रेस को पूरी तरह समाप्त करने की ताकत रखते हैं। यह ताकत प्रदेश में मौजूद किसी भी दूसरे नेता के पास नहीं है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दूसरे नेता जोगी से बहुत पीछे है। जोगी को कुछ दूसरे लाभ भी हैं। जातिगत समीकरण में वे माहिर हैं हाल ही में उन्होने मिनीमाता सप्ताह मनाकर सतनामी समाज में अपनी पहुंच का मुजाहिरा किया था। सतनामी समाज एक बड़ा वोट बैंक है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस वोट बैंक की तरफ ललचाई नजरों से देखती हैं। जोगी की कई पार्टियों से नजदीकी है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को जोगी ने मुख्यमंत्री रहते हुए बीजेपी का प्रभाव कम करने के लिए खूब बढ़ावा दिया था। एनसीपी के शरद पवार से उनकी अच्छी मित्रता है। तीसरे मोर्चे के लेफ्ट जैसे दलों से उनके संबंध मधुर हैं। यदि कांगे्रस से मनमुटाव होता है तो निश्चित रूप से जोगी को कहीं भी पनाह लेने में तकलीफ नहीं होगी और इस काम में उनकी मदद राज्य में सत्तासील दल करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि चुनाव लोकप्रियता के साथ-साथ समीकरण के आधार पर भी जीते जाते हैं। यह जोगी अच्छी तरह जानते हैं। इसीलिए कांग्रेस को भले ही वे पूरी तरह नुकसान न पहुंचाएं लेकिन कांग्रेस का काम बिगाडऩे में जोगी सक्षम हैं। यही सब भांपकर कांग्रेस चुनावों तक जोगी को लेकर टाइम पास की नीति अपना रही है। हालांकि, जोगी ऊपरी तौर पर पार्टी के लिए बोलते हैं और न ही पार्टी जोगी के बारे में। दोनों पक्षों से सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश हो रही है। लेकिन आगामी चुनावों के मद्देनजर जोगी ने एक बार फिर अपनी ताकतों और समर्थकों को जुटाना शुरू कर दिया। नक्सली हमले के बाद कांग्रेस को लग रहा था कि आगामी चुनावों में पार्टी को लोगों की सहानुभूति मिल सकती है, लेकिन घटना के महज एक महीने बाद हुए स्थानीय निकाय के उपचुनावों में जोगी के नजदीकी उम्मीदवार की जीत ने पार्टी की उम्मीदों को झटका दिया। इतना ही नहीं, कांग्रेस पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट से पता चला है कि महेंद्र कर्मा और वीसी शुक्ला जैसे लोगों का जो समर्थन और जुड़ाव जोगी के साथ है, वैसा पार्टी के किसी दूसरे बड़े नेता के साथ नहीं। इन सारी वजहों के चलते पार्टी के भीतर जोगी को लेकर मंथन जारी है। एक तरफ जहां पार्टी में जोगी को साथ लेकर चलने पर विचार हो रहा है वहीं दूसरी तरफ पार्टी जोगी के बिना भी चुनावों में अपने प्रदर्शन पर सोच विचार कर रही है। केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश नेतृत्व से भी कहा है कि जोगी के खिलाफ ऊपरी तौर पर किसी तरह की बयानबाजी से बचा जाए। फिलहाल जहां कांग्रेस की नजर जोगी की भावी रणनीति और योजनाओं पर है, वहीं सूत्रों के मुताबिक, जोगी खुद कोई कदम उठाए जाने की बजाय अपने ऊपर कार्रवाई को लेकर पार्टी की पहल का नजरें टिकाए हुए हैं।
लालीपॉप देकर फंसे रमन
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा संकेत मिलने पर प्रदेश के कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष करने का फैसला तो तत्काल कर लिया, लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने जब हाथ पीछे खींच लिए तो छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के समक्ष दुविधा पैदा हो गई। अब स्थिति ऐसी है कि न निगलते बन रहा है और न ही उगलते। चुनाव सामने है इसलिए सरकार यह कदम वापस नहीं ले सकती। कहने वालों का कहना है कि रमन सिंह को कम से कम केंद्र सरकार की घोषणा तक तो इंतजार करना था।