17-Aug-2013 05:52 AM
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लगता है छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ में नवनियुक्त अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत से संबंधों को नए सिरे से जीवित करने का अभियान प्रारंभ किया है। ये तो सब जानते है कि दोनों की आपस में बनती नहीं है। महंत और जोगी में आपसी संवाद पिछले कई वर्षों से नहीं है, यह बात भी सत्ता के गलियारों में कही जाती है इसके बावजूद भी आलाकमान ने यदि महंत को अध्यक्ष बनाया है तो इसका अर्थ यही है कि आलाकमान किसी भी स्थिति में नहीं चाहता है कि जोगी गुटबाजी करें और कांग्रेस को नुकसान पहुंचे। एक तरह से यह जोगी को कठोर संदेश भी था। जोगी ने इसे ताड़ लिया है और अब वे टिकट के लिए अपने समर्थकों को भी कोई आश्वासन नहीं देना चाहते इसीलिए जोगी ने अपने निवास में एक बोर्ड लगा दिया था जिसमें लिखा था कि जिन्हें टिकट मांगना है वे प्रदेश अध्यक्ष के पास जाएं। हाल ही में जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी से अजीत जोगी की मुलाकत हुई थी उसके बाद यह साफ हो गया था कि हाई कमान ने महंत को पूरे अधिकार दे दिए हैं। हालांकि जोगी ने भी साफ कर दिया है कि वर्तमान हालात में कांग्रेस ज्यादा सीटें नहीं जीत सकती इसीलिए उन्होंने अपने समर्थकों के लिए 30 सीटें मांगी है और यह भी कहा है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान किसी आदिवासी नेता को सौंपी जाए।
अजीत जोगी के इस कदम को पार्टी में अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे का कहना है कि जोगी ने अपने निवास के सामने वह बोर्ड क्यों लगवाया इसका अर्थ वे ही बता सकते हैं। वे मोती लाल वोरा के समकक्ष के नेता हैं और पार्टीं में उनका महत्व बहुत अधिक है। वे पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं तथा पार्टीं में महत्वपूर्ण पद पर हैं। चौबे ने खुल कर कुछ नहीं बताया लेकिन जोगी के इस अकस्मात कदम ने पार्टी में बहुत से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। पिछले एक दशक से जोगी छत्तीसगढ़ के राजनीति में एक महत्वपूर्ण किरदार बनने के लिए लालायित हैं किन्तु आलाकमान से उनकी जो ट्यूनिंग हुआ करती थी अब वह बिल्कुल नहीं है। पार्टीं में कई नियुक्तियां उनकी मर्जी के खिलाफ की जा रही हैं और कई ऐसे लोगों को भी पार्टी में शामिल किया गया है जो जोगी को नापसंद थे। जांजगीर जिले के चंद्रपुर क्षेत्र के पूर्व विधायक नोबेल वर्मा को जोगी की मंशा के विरूद्ध कांग्रेस में शामिल कर लिया गया था। पार्टी में भी चरणदास महंत रवीन्द्र चौबे व समन्वयक भूपेश बघेल जोगी की पसन्द के नहीं हैं। महंत से जोगी रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं यद्यपि महंत ने अपनी तरफ से कोई उत्सुकता नहीं दिखाई है। महंत को इस बात का मलाल है कि जोगी ने उन्हें अभी तक पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए बधाई तक नहीं दी जबकि हाईकमान ने झगड़ा शांत करने के लिए जोगी की पत्नि डॉ.रेणु जोगी को पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया है। वहीं जोगी का कहना है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले के तत्काल बाद पार्टी अध्यक्ष का चयन जल्द बाजी में किया गया। जोगी ने तो यह भी कहा था कि पार्टी को कम से कम स्वर्गवासी नेताओं की तेरहवीं इंतजार करना था। इसलिए विरोध जताते हुए जोगी अपने विधायक सभा क्षेत्र मरवाही में भी कलश यात्रा में शामिल नहीं हुए। वर्ष 2003 में जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस 90 सीटों में से 36 सीट ही जीत पाई थी। वर्ष 2008 में धनेंद्र साहू के नेतृत्व में कांग्रेस की सीटें बढ़कर 39 हो गई लेकिन इस समय टिकट वितरण में जोगी ने हस्तक्षेप किया था और उनके प्रत्याक्षी जीते भी थे। इसी कारण इस बार जोगी चाहते है कि उनके पसन्द के लोगों को ही टिकट दिया जाएं। लेकिन चरणदास महंत ने ऊपर यह संदेश दिया है कि टिकट वितरण में ज्यादा समन्वय से काम किया जाना चाहिए। आलाकमान को डर है कि जोगी समर्थकों की उपेक्षा करने से मामला बिगड़ भी सकता है इसका खामियाजा केशकाल नगरपालिका चुनाव के समय देखने को मिला था। जोगी समर्थक यदि उनके पसन्दीदा लोगों को टिकट न दिया जाए तो अपने पार्टी के खिलाफ ही काम करने लगते हैं। इसका फायदा कांग्रेस को मिलता है।
महंत के समर्थन में आलाकमान भले ही खुलकर सामने आ गया हो लेकिन सच्चाई तो यह है कि बूथ लेवल तक जोगी की पकड़ ज्यादा है इसीलिए उनकी बगावत पार्टी को महंगी पड़ सकती है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मजबूत स्थिति में पहुच चुकी है लेकिन गुटबाजी उसे कभी भी हरवा देगी। गीतांजलि पटेल जैसे जोगी समर्थक प्रत्याशी कभी भी टिकट न मिलने पर विद्रोही तेवर अपना सकते है। आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग भी सोची समझी रणनीति का परिणाम है क्योंकि छत्तीसगढ़ में जोगी के अतिरिक्त कर्मा ही एकमात्र ऐेसे नेता थे जो आदिवासी समुदाय से थे और जिनका कद भी मुख्यमंत्री पद के लायक था लेकिन फिलहाल कोई ऐसा नेता नहीं है इसीलिए दावेदारी केवल और केवल जोगी की ही बनती है। लेकिन जोगी को आगे लाने से जोगी विरोधी खेमा सक्रिय हो जाएगा जिसका नुकसान कांग्रेस को होगा।
रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला