18-Jul-2019 06:42 AM
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आयुष्मान योजना का ढोल मोदी सरकार जोर-शोर से पीट रही है, जिसमें 5 लाख रुपए तक का सालाना नि:शुल्क इलाज गरीब परिवारों को उपलब्ध करवाया जाएगा। इस योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा, जो 10 करोड़ परिवार में शामिल हैं, लेकिन इस योजना की जमीनी हकीकत जब पता की तो हास्यास्पद प्रावधान सामने आए। एक तरफ मोदी सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हर गरीब को पक्का मकान मुहैया करवाना चाहती है, दूसरी तरफ आयुष्मान योजना के पात्र परिवार के लिए टूटे-फूटे मकान की अनिवार्यता निर्धारित की गई है। यानी पक्की छत लेने पर आयुष्मान योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इसी तरह के विसंगतिपूर्ण अन्य प्रावधान भी हैं, जिसके चलते अधिकांश गरीब परिवार इस योजना के लिए अपात्र ही घोषित हो रहे हैं। इंदौर में ही मात्र 3200 मरीजों का पंजीयन हो सका। इनमें से भी मात्र 842 मरीजों के लिए लगभग 24 करोड़ रुपए की राशि मंजूर हो सकी, जबकि रोजाना ही एमवाय से लेकर तमाम निजी अस्पतालों में गरीब परिवारों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता है।
आयुष्मान योजना केन्द्र सरकार की सबसे महत्वकांक्षी स्वास्थ्य योजना है, जिसे मोदी सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2018 को लागू किया गया था, जो 25 सितम्बर 2018 से अमल में लाई गई। इस योजना का उद्देश्य गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए सालाना तक का नि:शुल्क इलाज उपलब्ध करवाना है। इस योजना के अंतर्गत 10 करोड़ गरीब परिवारों के लगभग 50 करोड़ लोगों को शामिल किया गया है। इसके लिए सरकार ने डी 1 से लेकर डी 7 (डी 6 को छोड़कर) तक की श्रेणी निर्धारित की है, जिसके तहत गरीब परिवार इस सुविधा का लाभ ले सकता है। इसके अलावा अन्य गरीब परिवार भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं, किन्तु अस्पतालों द्वारा इसके प्रावधानों का हवाला देकर पीडि़त से पात्रता के इतने कागजात मांगे जाते हैं कि वह इसका हकदार होते हुए भी इस योजना से वंचित रह जाता है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपलब्ध करवाए, उसके मुताबिक इंदौर जिले में अब तक सिर्फ 10 प्राइवेट अस्पतालों को ही जोड़ा जा सका। इसका कारण केन्द्र और राज्य सरकार से फंड उपलब्ध न होना बताया गया। इस योजना को अमल में आए लगभग 10 से अधिक माह हो चुके हैं, लेकिन अब तक इंदौर में इस योजना के तहत लगभग 3200 मरीजों का ही पंजीयन हो सका है।
स्वास्थ्य विभाग ने 22 जून तक के जो आंकड़े उपलब्ध करवाए उसके मुताबिक महज 842 मरीजों के 23 करोड़ 90 लाख 8475 रुपए मंजूर हो सके और इन मरीजों का उपचार नि:शुल्क किया गया। वहीं 2704 मरीजों को एमवाय सहित 11 अस्पतालों में इस योजना के काबिल समझा था, जिसके लिए 95 करोड़ से अधिक का बजट बनाया गया। वहीं उक्त दिनांक तक इन अस्पतालों द्वारा 1957 मरीजों के दावे प्रस्तुत किए गए थे, जिसके लिए लगभग 60 करोड़ से अधिक की राशि का बजट बनाया गया, जिनमें से महज 842 मरीजों के दावों को मंजूरी मिली, जिसका बजट 23 करोड़ 90 लाख के आसपास आंका गया। इसका मतलब यह हुआ कि यह योजना जब से लागू हुई है तब से अब तक इंदौर जिले के 11 अस्पतालों में महज 842 मरीज ही नि:शुल्क उपचार करवा पाए हैं। इसका कारण यह सामने आ रहा है कि लोगों द्वारा भारी संख्या में नि:शुल्क उपचार हेतु आवेदन तो किया जाता है, किन्तु चिन्हित अस्पतालों द्वारा प्रावधानों की ऐसी झड़ी लगा दी जाती है कि उसकी आंख से आंसू बहने लगते हैं और वह चुपचाप वहां से रफुचक्कर हो जाता है।
- विशाल गर्ग