18-Jul-2019 06:07 AM
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2019 के आम बजट में नई बात यह थी कि देश की पहली पूर्णकालिक पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बजट पेश किया तो उनके हाथ में लाल रंग के ब्रीफकेस की जगह लाल रंग का मखमली पैकेट था। निर्मला ने कहा कि अभी तक चली आ रही प्रथा को पूरी तरह बदल दिया गया है। अब बजट को बजट नहीं बल्कि बहीखाता कहा जायेगा। देश की पहली महिला पूर्णकालिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब देश का आम बजट पेश किया तो देश की जनता खासकर महिलाओं को उम्मीद थी कि उनके लिये कुछ खास होगा। महिलाओं के लिये बजट में कुछ नया नहीं है जिसको केवल महिलाओं के लिये फोकस करके किया गया हो।
बजट में नारी तू नारायणीÓ नाम से महिलाओं को एक अलग नारा दिया गया है। यह ठीक उसी तरह से है जिस तरह से देश भर में महिलाओं को लक्ष्मी माना जाता है इसके बाद भी महिलाओं के प्रति समाज में अपराधों में कमी नहीं आ रही है। बजट में महिलाओं को नारी तू नारायणीÓ कह कर झांसा देने की कोशिश की गई है। इस नारे के बाद भी वित्त मंत्री ने राहत की जो बातें कहीं हैं वह उन महिलाओं के लिये हैं, जो स्वयं सहायता समूह से जुड़ी और सरकार ने उन समूह को प्रमाणित कर रखा है।
ऐसे में साफ है कि सामान्य महिलाओं के लिये इस बजट में कोई नया प्रावधान नहीं है। सरकार ने सोना मंहगा कर दिया है जिससे महिलाओं को अब गहने पहनने के लिये ज्यादा कीमत देनी होगी। आज के समय में बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाएं हैं जो वाहन चालक है और अपने काम के लिये टू व्हीलर या कार चलाती हैं। डीजल और पेट्रोल महंगा होने से महिलाओं पर प्रभाव पड़ेगा। वैसे सरकार ने अपने बजट में सभी वर्गों को साधने की भरपूर कोशिश की है। लेकिन सरकार का पूरा फोकस किसान, गांव और युवा वर्ग पर रहा है।
शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में पुजारी अपना मानदेय बढ़वाने के लिए धरने प्रदर्शन करते रहते थे बल्कि उन्होंने शिवराज सिंह को सत्ता से बेदखल होने का श्राप भी दे डाला था। यह श्राप फलीभूत हुआ और पंडे पुजारियों के दम पर सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाली भाजपा अब विपक्ष में बैठी है। कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री कमलनाथ बने तो उन्होंने शुरू में ही संकेत दे दिये थे कि मध्यप्रदेश सरकार साफ्ट हिन्दुत्व के एजेंडे पर चलेगी।
अपने पहले ही बजट में कमलनाथ सरकार ने न केवल पुजारियों का मानदेय तिगुना कर दिया है बल्कि 1000 गौशालाएं बनाने 132 करोड़ देने की भी घोषणा कर डाली है। इतना ही नहीं और दरियादिली दिखाते यह भी 732 करोड़ वाले भारी भरकम बजट में कहा गया है कि मंदिरों की जमीनों को सरकारी पैसे से विकसित किया जाएगा यानि एक तरह से सरकार अब मंदिर निर्माण कर भी पुण्य और ब्राह्मणों का आशीर्वाद बटोरेगी क्योंकि मंदिर की जमीनों पर खेती वही करेगा और दक्षिणा भी बटोरेगा। गौ शालाओं की गायों के भोजन के लिए अब सरकार 10 की जगह 20 रु. प्रतिदिन देगी यानि 600 रु. प्रति महीना प्रति गाय का खर्च आम लोगों को उठाना पड़ेगा। यहां कमलनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पिछड़ गए हैं। जिन्होंने गौ माताओं को 900 रु. प्रतिदिन देने का ऐलान किया है।
पहले ही बजट में पुजारी कल्याण कोष की भी घोषणा की गई है और सरकार राम वन गमन पथ का भी विकास करेगी। 40 नदियों के पुनर्जीवन को भी साफ्ट हिन्दुत्व के एजेंडे का ही हिस्सा माना जा रहा है। बजट पूरी तरह हिन्दुत्व की छाप वाला न दिखे इसलिए हज कमेटी का भी अनुदान बढ़ाने की घोषणा की गई है। वित्त मंत्री तरुण भानोट हालांकि बजट को हिन्दुत्व का नहीं बल्कि यथार्थ का बता रहे हैं तो वे कुछ गलत नहीं कह रहे क्योंकि धर्म और उसकी दुकानदारी से बड़ा यथार्थ कुछ और हो भी नहीं सकता। क्यों सरकार हिन्दुत्व के लिए करोड़ों रु. फूंक रही है इस सवाल का जबाब बेहद साफ है कि कांग्रेस भी भाजपा की तरह हिन्दुत्व में वोट तलाश रही है जो बिना ब्राह्मणों के आशीर्वाद और सहयोग के नहीं मिलते। अगर यह प्रजाति नाराज हो जाये तो हश्र क्या होता है यह सबके सामने है कि शिवराज सिंह को दलित प्रेमी साबित कर उन्हें चलता कर दिया गया। गौरतलब है कि इन्हीं शिवराज सिंह ने दलित पुजारी बनाने की घोषणा की थी तो समूचा ब्राह्मण समुदाय दुर्वासा बनकर श्राप देने लगा था तब सड़कों पर आकर ब्राह्मणों ने कहा था कि कपाल क्रिया और अन्त्येष्टि भी हम ही कराते हैं।
लगता ऐसा है कि कमलनाथ ब्राह्मणों से जरूरत से ज्यादा डर गए हैं तभी एक अच्छे खासे बजट को उन्होंने गेरुआ बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। जनता का पैसा पुजारियों को क्यों इस सवाल का जबाब भी शायद ही कमलनाथ दे पाएं कि राज्य में लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं उनके लिए बजट में कोई इंतजाम क्यों नहीं, क्या कुपोषण भी पूर्व जन्मों के पापों का फल है जिसमें कोई लोकतान्त्रिक सरकार कुछ नहीं कर सकती।
अगर यह और ऐसी कई विसंगतियां ईश्वरीय व्यवस्था हैं तो फिर मेहरबानी ब्राह्मणों पर ही क्यों, क्या सिर्फ इसलिए कि वे श्रेष्ठ जाति के धर्म के लिहाज से होते हैं और पूज्यनीय होते हैं गरीब दलितों और आदिवासियों के लिए बजट में कुछ उल्लेखनीय नहीं है क्योंकि सरकार की नजर में भी वे दोयम दर्जे के हैं। यह साफ्ट हिन्दुत्व कांग्रेस को कितना महंगा पड़ा था यह लोकसभा चुनाव नतीजों से समझ आ गया था कि कांग्रेस जितना दलितों आदिवासियों और मुसलमानों से दूर भागते ऊंची जाति वालों की खुशामद करेगी उतनी ही पिछड़ती जाएगी क्योंकि सवर्ण वोट आखिरकार जाता तो भाजपा की ही झोली में है।
किसानों की कर्जमाफी का बड़ा वादा करके सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार ने 2 लाख 33 हजार करोड़ रुपए का अपना पहला फुल बजट बुधवार को पेश किया। इसमें किसानों के हिस्से में पिछले साल के बजट के मुकाबले 66 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए कर्जमाफी के लिए फिर 8 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले आए लेखानुदान में किए गए पांच हजार करोड़ के वादे को मिलाकर राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में कर्जमाफी के लिए 13 हजार करोड़ रख दिए हैं। कांग्रेस के वादे के मुताबिक किसानों की पूरी कर्जमाफी के लिए सरकार को करीब 50 हजार करोड़ चाहिए। साफ है कि इसमें दो साल का वक्त और लग सकता है।
- सुनील सिंह