डकैत राज
04-Jul-2019 07:59 AM 1235111
भगवान श्रीराम की तपो स्थली चित्रकूट में एक के बाद एक डकैत रक्त बीज की तरह पनपते ही रहे। कभी पुलिस तो कभी अपने ही प्रतिद्वंदी गिरोह की गोलियों का शिकार होते डकैतों का आज भी कब्जा बरकरार है। सात दशक से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन आज भी डकैतों के आतंक से मप्र और उप्र के तराई अंचल को निजात नहीं मिल सकी है। आजादी के बाद से लेकर अब तक दस्युओं का आतंक लखना, राजा, ददुआ, ठोकिया, खरदूषण, सुन्दर, बलखडिय़ा, गौरी, शिवा, ललित, साधना, बबुली जैसे नाम बदल- बदल कर छाया ही रहा। एमपी- यूपी के सीमाई जंगलों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच पुलिस और डकैतों के बीच सदियों से शह- मात का खेल चलता आ रहा है। जिसमें डकैत अक्सर हावी रहे। तराई के बियावान जंगलों में हमेशा दस्यु गिरोहों की दहशत रही है, जो आज भी गौरी, साधना और बबुली के रूप में कायम है। छह लाख के इनामी दस्यु बबुली कोल ने गैंग बलखडिय़ा के गिरोह को समेट कर आतंक की नई इबारत लिखनी शुरू कर दी है। इसके पहले से डकैत गौरी यादव सीमाई इलाकों में सक्रिय है। हाल ही में दस्यु सुन्दरी साधना पटेल के गिरोह ने भी तराई में सिर उठाया है। तराई क्षेत्र का पहला इनामी डकैत लखना था। इसके बाद सीवन उपाध्याय ने आतंक बरपाया और फिर राजा रगौली भी सीवन के साथ सामूहिक नरसंहार कर इनामी डकैत बन गया। सत्तर के दशक में खरदूषण, श्यामदीन, भगवानदीन और गयाबाबा जैसे डकैतों का बोलबाला रहा। कुछ समय बीतने के बाद एमपी- यूपी के सीमाई क्षेत्रों में शिवकुमार उर्फ ददुआ का डंका बजने लगा। ददुआ के ऊपर दोनों राज्यों की पुलिस ने 5 लाख 30 हजार रुपए का इनाम घोषित कर उसे सबसे बड़ा इनामी दस्यु बना दिया था। ददुआ के बाद डॉ. अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया पांच लाख का इनामी हुआ, ठोकिया के बाद सुन्दर पटेल उर्फ रागिया पांच लाख रुपए का इनामी रहा और रागिया के मारे जाने के बाद स्वदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा 6 लाख का सबसे बड़ा इनामी डकैत बना। बलखडिय़ा के बाद बबुली कोल छह लाख का इनामी डाकू है, लेकिन इन दिनों वह मप्र के इलाकों में कुछ हद तक शांत है। नवोदित गैंग सरगना साधना पटेल की हरकतों पर भी पुलिस अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। दस्यु उन्मूलन अभियान से जुड़े एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि मप्र और उप्र का तराई अंचल बियावान जंगलों से पटा है। कुछ हिस्सा पहाड़ी है, जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं को लोग तरस रहे हैं। डकैतों के पनपने की एक वजह यह भी है कि कैजुअल मेंबर रहते हुए दस्यु दल का जलवा देख लेने के बाद युवा कदम वापस नहीं खींच पाते। पुलिस के निशाने पर बड़ा डकैत आने के बाद गैंग की हर हरकत देख चुके मेंबर अपना कद बड़ा कर लेते हैं। उन्हें अपना प्रभाव जमाने और पैसा कमाने की आदत होने लगती है। दोनों राज्यों की सीमा पर हजारों वर्ग मीटर का जंगल इन बदमाशों को सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराता है। इसलिए कहा जा सकता है कि डकैतों के लिए यहां की जमीन उपजाऊ है। खरदूषण पटेल, गया पटेल, हनुमान पटेल, सीताराम पटेल, शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ, सूबेदार उर्फ राधे पटेल, छोटवा पटेल, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया, सुन्दर पटेल उर्फ रागिया और सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा के खात्में के बाद इस समाज विशेष का कोई डाकू तराई में नहीं बचा था। ऐसे में बलखडिय़ा के मारे जाने के बाद ही कयास तेज हो चुके थे कि फिर कोई बदमाश अपनी बादशाहत जमाने के लिए हथियार उठाएगा। बलखडिय़ा गिरोह की कमान बबुली कोल ने संभाली लेकिन उसे तराई के समाज नेे उतना सहारा नहीं दिया। इस बीच डकैत साधना पटेल भी सक्रिय हुई लेकिन पुलिस की चौकसी ने उसके हौसले पस्त किए हैं। कुछ दिन बाद ही मानसून आने वाला है। दस्यु उन्मूलन अभियान के जानकारों का कहना है कि बरसात होने के बाद जंगल में जाना खतरे से खाली नहीं होता। पगडंडियों के रास्ते बिगड़ जाते हैं और जंगल घना होने पर 100 मीटर दूर छिपा व्यक्ति भी नजर नहीं आता। जंगल के अंदर उमस बढ़ जाती है। इसी का फायदा डकैतों को मिलता है। बरसात में दस्यु दल खुद को सुरक्षित मानते हैं। लेकिन अगर पुलिस की रणनीति बेहतर हो और सटीक मुखबिरी मिले तो दस्यु दल तक पहुंचना मुश्किल बात नहीं। - नवीन रघुवंशी
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^