04-Jul-2019 08:02 AM
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अमेरिका और ईरान के बीच खतरनाक स्तर तक पहुंच गए तनाव के बीच पूरी दुनिया खाड़ी क्षेत्र में एक और युद्ध की आशंका से भयभीत है। हाल की कुछ घटनाओं ने यह चिंता पैदा कर दी है कि अगर इन दोनों के बीच बढ़ते तनाव को कम नहीं किया गया तो एक नया विश्व संकट दुनिया के तमाम देशों की मुश्किलें बढ़ाने आ सकता है। चिंता खासतौर से भारत के लिए है, क्योंकि हमारा देश तेल आयात के लिए बहुत हद तक ईरान से होने वाली सप्लाई पर निर्भर रहा है, जो फिलहाल अमेरिका के दबाव के चलते ठप पड़ी है। उधर कहा जा रहा है कि अगले साल अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनजर वहां के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने मुल्क से दूर इलाके में कोई छोटे स्तर का युद्ध छिड़ते देखना पसंद करेंगे, ताकि उसके असर से सत्ता में उनकी वापसी मुमकिन हो सके। ऐसे में कुछ हालिया घटनाओं के बीच सवाल उठ खड़ा हुआ है कि अगर अमेरिका-ईरान के बीच जंग की नौबत आई तो क्या दुनिया उसके असर से बच पाएगी।
ताजा मुश्किल 20 जून को तब उठ खड़ी हुई, जब ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर (आइआरजीसी) ने घोषणा की कि उसने अमेरिका के एक जासूसी ड्रोन को मार गिराया है। ड्रोन मार गिराने की घटना की पुष्टि अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड ने भी की और कहा कि ईरान ने अमेरिकी नेवी का ड्रोन मार गिराया है। अमेरिका ने यह दावा भी किया कि उसका ड्रोन अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में था न कि ईरानी हवाई क्षेत्र में। अमेरिकी सेना ने इसे बिना किसी कारण का हमला बताया। इस घटना की प्रतिक्रिया में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले तो कहा कि ईरान ने बहुत बड़ी गलती की है। बाद में उनका यह बयान भी आया कि वे ईरान के तीन ठिकानों पर हमला करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन हमला होने के सिर्फ 10 मिनट पहले उन्होंने अपना फैसला बदल लिया।
ट्रंप ने हमला रोकने के पीछे अपने सैन्य जनरल का यह आकलन बताया कि ड्रोन के बदले किए जाने वाले जवाबी हमले के आधे घंटे में ही 150 मौतें होंगी। ट्रंप के मुताबिक यह मानव-विनाश देखते हुए उन्होंने हमला रोकने का आदेश दिया। इस ड्रोन प्रकरण से पहले एक अन्य घटना ने भी ईरान-अमेरिका के बीच तल्खी बढ़ा दी थी। असल में मई के मध्य में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बंदरगाह फुजैरा में सऊदी अरब के दो समुद्री तेल टैंकरों पर तकरीबन एक साथ हमला किया गया था। इनमें से एक टैंकर सऊदी अरब से तेल लेकर अमेरिका के लिए रवाना होने वाला था। अमेरिका ने इसके लिए ईरान और उसके सहयोगी देशों-संगठनों को जिम्मेदार बताते हुए दावा किया था कि छद्म युद्ध की नीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। हालांकि ईरान ने इस हमले से खुद को अलग बताते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की थी।
फुजैरा बंदरगाह में खड़े तेल टैंकरों पर हमले के महत्व को इससे समझा जा सकता है कि यह बंदरगाह उस होर्मुज जलमार्ग से महज 140 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां से पूरी दुनिया के एक तिहाई तेल और गैस का निर्यात होता है। यहां एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि सऊदी अरब, इराक, यूएई, कुवैत, कतर और ईरान से भी ज्यादातर तेल का निर्यात होर्मुज बंदरगाह से होता है। अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा कम से कम 15 मिलियन बैरल प्रतिदिन है। विश्व का लगभग 30 फीसदी समुद्र में पैदा होने वाला तेल इसी रास्ते से होकर गुजरता है। ओपेक देशों के लिए तेल निर्यात का भी एकमात्र भरोसेमंद रास्ता होर्मुज से होकर ही जाता है। इस जलमार्ग के रास्ते से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की पाइपइ लाइनें भी होकर गुजरती हैं और दुनिया का सबसे बड़ा एलएनजी निर्यातक कतर भी इसी मार्ग का प्रयोग करता है। कतर लंबे समय से भारत का सबसे बड़ा एलएनजी निर्यातक है।
इसलिए इसके बंद होने का सीधा असर भारत पर पड़ता है।
- संजय शुक्ला