31-Aug-2013 09:09 AM
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बिहार के खगडिय़ा जिले में धमारा घाट स्टेशन पर राज्यरानी एक्सप्रेस गाजर मूली की तरह लोगों को काटती जा रही थी और असहाय जनता की चीख पुकार सुनने वाला कोई नहीं था। ड्राइवर भी असहाय

था क्योंकि हजारों लोगों से भरी ट्रेन को 80 की स्पीड में रोकना संभव नहीं था। यदि ड्राइवर एक दम से ट्रेन रोकता तो ट्रेन में सैकड़ों मर जाते इसलिए इंमरजेन्सी ब्रेक लगाने के बावजूद ट्रेन दौडती रही और 37 लोग कट कर मर गए जिनमें सभी कावडि़ए थे। 13 महिलाए, 4 बच्चे तथा 20 पुरूष तत्काल चपेट में आकर मर गए। 30 घायलों में से 3 तीन ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। हादसा उस वक्त हुआ जब स्टेशन पर दो टे्रनें खड़ी थी। राज्यरानी एक्सप्रेस दोनों ट्रेनों के बीच से थ्रू जा रही थी लोग पैदल ही पटरी पार कर रहे थे और दोनों ट्रेनों के बीच फंस गए। ड्राइवर ने जब तक गाड़ी रोकी हादसा हो चुका था। उसे ट्रेन से खींचकर लोगों ने बुरी तरह पीटा और गला रेत कर मार डाला, ट्रेन में आग लगा दी गार्ड भी पिटाई में गंभीर रूप से घायल हो गया। स्टेशन के स्टॉफ को बंदी बना लिया गया। फायर ब्रिगेड डर के मारे मौके पर नहीं पहुंची। स्थानीय डी एम परवेज आलम को गुस्साए लोगों ने घटना स्थल से खदेड़ दिया। दो पैसेन्जर ट्रेनों में भी आग लगा दी।
इस हादसे ने उन्हीं पुरानी घटनाओं की याद ताजा कर दी। यदि कोई ट्रेन आपस में भिड़ जाए या पटरी से उतर जाए या उसमें आग लग जाए या वह पुल से गिर जाए तो बात समझ में आती है। लेकिन लोगों को काटते हुए, खून फैलाते हुए खून के सैलाब में से कोई ट्रेन गुजरे तो इसे महज हादसा नहीं कहा जा सकता। कहीं न कहीं रेल प्रशासन, स्थानीय मैनेजमेंट से लेकर राज्य सरकार सभी की जिम्मेदारी बनती है।
भारत 130 करोड़ जनसंख्या वाला देश है इसलिए कुछ खास मौकों पर भीड़ होना तय शुदा बात है और यह भीड़ अनुशासति होगी तथा नियम कायदों का पालन करेगी ऐसा कहा नहीं जाता इसलिए इंतजाम किए जाने चाहिए। टे्रन की गति रेल स्टेशनों के नजदीक धीमी रखी जानी चाहिए। यह सच है कि टे्रन में यात्रा करने वाले यात्रियों का समय कीमती होता है लेकिन वह इतना भी कीमती नहीं होता कि समय बचाने के लिए 40 लोगों की जान ले ली जाए। कुछ खास मौकों पर एक्सप्रेस टे्रनें यदि भीड़ भाड़ वाले छोटे स्टेशनों से धीमें गुजरें तो कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा। रेलवे का सूचना तंत्र बहुत तीव्र है। किस स्टेशन पर क्या हालात हैं, टे्रक पर कितनी भीड़ है, कौन सा मौका है इन सब की जानकारी रेल प्रशासन पहले से रख सकता है। खास कर जहां ओवरब्रिज नहीं हैं वहां से टे्रन गुजरने की स्पीड क्या रहनी चाहिए यह तय किया जा सकता है। लेकिन इस दुर्घटना के बाद राज्य सरकार ने रेलवे को कोसा, रेलवे ने राज्य सरकार को कोसा, विपक्ष ने दोनों को कोसा और पीडि़तों का मुआवजा भी अधर में लटक गया। जिस इलाके में यह दुर्घटना हुई वह इलाका दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात है। 32 वर्ष पहले वर्ष 1981 में 6 जून को धमारा घाट से पन्दह किलोमीटर दूर देश का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था जिसमें 800 सवारियों से भरी टे्रन बदला घाट के पास बागमती नदी में समा गई थी। इस हादसे में 300 लाशें मिली कितने लोग मारे गए आज तक पता नहीं है। लेकिन यह हादसा एक मानवीय भूल थी और पुल पर गुजरते समय टे्रन के असंतुलित होने के कारण हुआ। पर हर साल टे्रन से कट कर जान गंवाने की घटनाओं के पीछे असावधानी और अव्यवस्था का बड़ा योगदान है। पिछले 5 वर्षों में ही 1305 लोग विभिन्न रेल हादसों में अपनी जान गवा चुके हैं जिनमें से 717 जानें तो केवल मानव रहित क्रासिंग पर गई है। रेलवे करोड़ों का मुनाफा कमाता है फिर भी उसके पास अधोसंरचना का अभाव है स्टॉफ की भी कमी है। बहुत से छोटे स्टेशनों पर ओवर ब्रिज नहीं है। इसी कारण हादसे होते रहते हैं और दुर्घटना के बाद जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाली जाती है। इस घटना के बाद रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मेले के बारे में किसी तरह की खबर प्रशासन को नहीं दी थी।
रेलवे बोर्ड के एडीजी (पीआर) अनिल सक्सेना ने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है लेकिन इसमें रेलवे की चूक नहीं है। रेल मंत्री ने मानवता के आधार पर मृतकों के परिजनों के लिए पांच लाख और गंभीर रूप से घायलों के लिए एक लाख रुपए मदद की घोषणा की है। साथ ही मामले की जांच के लिए कमिश्नर रेलवे सेफ्टी से निवेदन किया गया है। चूंकि कमिश्नर रेलवे सेफ्टी नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत आते हैं इसलिए उड्डयन मंत्री अजीत सिंह से बातचीत कर दुर्घटना की जांच कमिश्नर रेलवे सेफ्टी से जल्द से जल्द कराने का आग्रह किया गया है।
ट्रेन हादसे में मारे गए लोग मुआवजे के हकदार तभी होते हैं जब दुर्घटना की जिम्मेदारी रेलवे ले या जांच में रेलवे की भूल मानी जाए, चाहे वह रेल कर्मचारियों से हुई भूल हो या मशीन की खराबी की वजह से। रेलवे ट्रैक पर चलना, बैठना या खड़ा होना नियमों के मुताबिक गैर-कानूनी है। इसके लिए जुर्माने का प्रावधान है और दुर्घटना होने पर मुआवजे का प्रावधान नहीं। अलबत्ता मानवीय आधार पर मुआवजा दिया जा सकता है लेकिन यह पूर्ण रूप से रेलवे पर निर्भर है। यदि रेलवे घोषणा के बाद भी मुआवजा नहीं दे तो रेलवे दावा प्राधिकरण में मामला टिकना मुश्किल है। इस तरह के दावा के सैकड़ों मामले रेलवे के विभिन्न जोन में लंबित हैं। इस तरह के हादसे में रेलवे के लिए यह बाध्यकारी नहीं है कि इसकी जांच कमिश्नर रेलवे सेफ्टी से कराए। रेलवे पर यह तभी बाध्यकारी है जब ट्रेनों की टक्कर, आग या पटरी से उतरने की स्थिति में जान का नुकसान हो। मालगाड़ी की दुर्घटना के मामले में भी कमिश्नर रेलवे सेफ्टी से जांच कराना तभी जरूरी है जब नुकसान 25 लाख से अधिक का हुआ हो या फिर कोई हताहत हुआ हो। रेल पटरी पर ट्रेन की चपेट में आने से देश भर में हर साल सैकड़ों लोग जान गंवाते हैं। लेकिन ये मुआवजे के हकदार नहीं होते हैं, न ही कमिश्नर रेलवे सेफ्टी इसकी जांच करते हैं। रेलवे के अधिकारी परोक्ष रूप से धमराघाट के हादसे को ट्रेस पासिंग (अनधिकृत प्रवेश) का मामला मानते हैं जिसमें मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है।
रेल हादसे को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच सियासी जंग छिड़ गई है। रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चैधरी ने कहा कि मेले के बारे में किसी तरह की खबर रेलवे प्रशासन को नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा कि अगर खबर रहती तो रेल प्रशासन निश्चय ही एहतियाती कदम उठाता। चौधरी ने कहा कि जब वहां इतना बड़ा मेला लगता है तो उसके बारे में रेलवे को खबर देनी ही चाहिए थी। मौके से हादसे का जायजा लेकर दिल्ली रवाना होने से पहले चौधरी ने कहा कि धमारा घाट पर फुट ओवरब्रिज बनाने का निर्देश दे दिया गया है। वहां के स्टेशन पर तीसरा प्लेटफार्म भी बनेगा। रेल राज्य मंत्री ने कहा कि हादसे की प्रमुख वजह रेलवे ट्रैक के पास सड़क का न होना भी रहा। अगर सड़क होती तो लोग आने-जाने के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल कतई नहीं करते। उन्होंने राज्य सरकार को नसीहत भी दे दी कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सरकार इन बुनियादी जरूरतों को क्यों नहीं पूरा करा रही है? बताया जाता है कि श्रद्धालु कात्यायनी मंदिर में जल चढ़ाकर ट्रेन पकडऩे के लिए रेलवे ट्रैक पार कर रहे थे।
रेल दुर्घटनाओं से दो दशक में 1500 से ज्यादा लोगों की मौत
बिहार में यह पहली घटना नहीं है। पिछले दो दशक में हुए बिहार रेल दुर्घटना में करीब 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है।
2 मई 2002- नई दिल्ली से पटना आ रही श्रमजीवी एक्सप्रेस के पुल से गुजरते समय पटरी से उतरने के कारण 12 लोगों की मौत हो गई थी।
24 अप्रैल 1998 - हावड़ा दानापुर एक्सप्रेस के बिहार के फतुहा बांकाघाट स्टेशन के बीच पटरी से उतर जाने के कारण 11 लोंगों की मौत हो गई थी।
16 जुलाई 1993 - दरभंगा जिला में हुए रेल दुर्घटना में 60 लोगों की मौत हो गई थी।
25 जून 1990 -बिहार के डालटेनगंज के मंगरा में एक मालगाड़ी और सवारी गाड़ी से टकराने के कारण 60 लोगों का मौत हो गई थी।
16 अप्रैल 1990- पटना के नजदीक ट्रेन में आग लगने के कारण 70 लोगों की मौत हो गई थी।
22 मई 2011- बिहार के मधुबनी जिले में एक रेलवे क्रासिंग पर एक पैसेंजर एक्सप्रेस के सवारी गाड़ी से टकरा जाने के कारण 16 लोगों की मौत हो गई थी।
10 सितम्बर 2002- राजधानी एक्सप्रेस की एक पूरी बोगी गया के समीप रफीगंज के पास धावे नदी में गिर गई। 130 लोगों की मौत।