02-Aug-2013 09:25 AM
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बिहार के छपरा में सारण जिले के मशरक गंडामन नव सृजित प्राथमिक विद्यालय के वे छोटे-छोटे मासूम छात्र और छात्राएं नहीं जानते थे कि जिस विद्यालय में शिक्षा गृहण करने वे बड़ी हसरत से जा रहे हैं

वहां उन्हें मौत भी मिल सकती है। किंतु 16 जुलाई के दिन, जब उत्तराखंड की त्रासदी को एक माह पूरा हुआ था और सरकार के अनुसार लापता लोगों को मृत मान लिया गया था, बिहार में भी एक आपदा घट गई। यह मानवीय भूलों से हुई आपदा थी। गंडामन प्राथमिक विद्यालय में उस दिन रसोइए मंजू देवी ने रोज की तरह 102 बच्चों के लिए मिड-डे मील तैयार किया। खाने में खिचड़ी तथा सोयाबीन व आलू की सब्जी थी भोजल के बाद बच्चे खिलखिलाते हुए खेलने लगे। करीब डेढ़ बजे खाने की छुट्टी खत्म हुई और बच्चे दौड़कर क्लासरूम में पहुंचे इसके बाद दूसरी कक्षा के कुछ बच्चों को उल्टी शुरू हो गई। कुछ के पेट में दर्द भी होने लगा और देखते-देखते कई बच्चे बेहोश हो गए। स्कूली शिक्षकों को माजरा समझ में नहीं आया। वे बदहवास थे स्कूल में प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था भी नहीं थी, यहां तक कि सरकार अस्पताल में भी इलाज की व्यवस्था नहीं थी। यह खबर गांव में पहुंची तो हंगामा मच गया। डर के मारे प्रधानाध्यापक मीना कुमारी सहित दोनों शिक्षिकाएं स्कूल छोड़कर भाग गईं। बीमार बच्चों को मशरक के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया। जहां पर व्यवस्थाएं न के बराबर थी एक डॉक्टर और एक कम्पाउंडर के भरोसे लगभग 75 बच्चे थे, जिन्हें जैसे-तैसे प्राथमिक उपचार दिया जा रहा था, लेकिन स्थिति बिगड़ रही थी। महाराजगंज के सांसद प्रभुनाथ सिंह तत्काल अस्पताल पहुंचे और उन्होंने दो बसों का प्रबंध कर बच्चों को छपरा सदर अस्पताल भिजवाया। रास्ते में दो बच्चों की मृत्यु हो गई थी। जब तक बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता चार और मौत हो चुकी थी। बच्चे निश्चित अंतराल पर मर रहे थे। रात 11.30 बजे तक 20 बच्चों की मृत्यु हो चुकी थी और 55 बच्चे उस वक्त भी भर्ती थे जिनमें से कइयों की हालत गंभीर थी। बाद में मौत का आंकड़ा 24 तक पहुंच गया।
यह घटना सरकारी लापरवाही का उत्कृष्ट उदाहरण है। मिड-डे मील योजना की शुरुआत 1995 में हुई थी। उस वक्त सरकार की मंशा थी कि जो बच्चे धन के अभाव में या घरवालों द्वारा काम पर भेजे जाने के कारण स्कूल छोड़ देते हैं उन्हें स्कूल में ही किताबों, ड्रेस के साथ-साथ कम से मध्यान्ह भोजन दिया जाए। ताकि उनकी उपस्थिति बनी रहे। लेकिन मध्यान्ह भोजन की योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। ऊपर से लेकर नीचे तक बिहार ही नहीं सारे देश में भ्रष्टाचार ने इस योजना को खोखला कर दिया है। सही मॉनीटरिंग की व्यवस्था नहीं होने के कारण जिन लोगों के हाथ में खरीददारी का जिम्मा होता है वे घटिया सामग्री खरीदते हैं। खाने में मेंढक से लेकर सांप तक निकलना आम बात है। कंकर, पत्थर, गोबर के टुकड़े और कांच, आल्पिन तो हर दिन निकला करती है। शिक्षक, शिक्षिकाओं के वारे-न्यारे हो रहे हैं। चपरासी से लेकर बड़े अधिकारी तक को भ्रष्टाचार के पैसे का भोग लगता है और बच्चे तड़प-तड़प कर मरते रहते हैं। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं मिड-डे मील हर स्कूल में घटिया ही परोसा जाता है। क्योंकि इसके लिए जो पैसा सरकार की तरफ से मिलता है वह पर्याप्त होने के बावजूद सरकारी दलालों के हाथों में पड़ जाता है जो घटिया सामग्री इस देश के नौनिहालों को खिलाते हैं। सड़ा-गला अनाज, सड़ी-गली सब्जियां, सड़े-गले मसाले, सड़े-गले तेल, गंदे बर्तन से लेकर खाने-पीने में स्वच्छता का अभाव और अधपका भोजन जहर बन जाता है। बिहार में कुछ ज्यादा ही बुरे हालात हैं। इस घटना के बाद लीपापोती शुरू हो गई है। सरकार ने दो-दो लाख मुआवजा देकर इतिश्री कर ली है। विपक्ष ने बंद का आयोजन कर दिया है। राजनीति की जा रही है, लेकिन बच्चों की हत्याएं कैसे रुकेंगी यह उत्तर किसी के पास नहीं है।

घटिया राजनीति
इस घटना के बाद बिहार में घटिया राजनीति शुरू हो गई। बिहार के शिक्षा मंत्री पी.के. शाही ने कहा है कि स्कूल की हेड मिस्ट्रेस मीना कुमारी के पति अर्जुन राय और उनके भाई धु्रव राय एक बड़े दल के नेता के खास हंै उनकी धर्म सती में ही किराने की दुकान है। मिड डे मील के लिए इसी किराने की दुकान से अनाज खरीदा गया था वहा से जो सरसों का तेल खरीदा गया था वह जहरीला था। स्कूल की हेड मिस्ट्रेस मीना कुमारी को जब रसोइये ने बताया कि तेल में से झाग उठ रहा है तो उसने कहा कि नया तेल है इसलिए झाग उठ रहा है। बाद में बच्चों ने सब्जी में अजीब से स्वाद की बात कही तो मीना कुमारी ने बच्चों को डपट दिया। नियम अनुसार मीना कुमारी को भी सभी प्रकार का भोजन चखना था किन्तु वह दाल चावल खाकर स्कूल से निकल ली यह एक संदिग्ध कदम था। इससे लगता है कि इस घटना में कहीं न कहीं साजिश अवश्य है। मिड डे मील सप्लाई करने वाला सप्लायर छट्ठू राम राष्ट्रीय जनता दल के सांसद प्रभुनाथ सिंह का ड्राइवर है। इसी कारण लालू यादव की पार्टी पर बिहार सरकार ने शक जताया है। हालांकि लालू यादव का कहना है कि विपक्ष पर आरोप लगाने से पहले सरकार को अपनी गिरेवान में झाक कर देखना चाहिए बच्चों की जान से खिलवाड़ सरकार ने किया है। उधर मधुबनी जिले में भी मिड डे मील खाने से 50 बच्चो बीमार हो गये महाराष्ट्र धुले जिले 31 बच्चे मिड डे मील खाने से बीमार हो गए। कुछ को अस्पताल भर्ती कराना पड़ा। बिहार में गया में विटामीन ए कि खुराक लेने से एक बच्चे की मत्यु हो गई।
सारे देश में हालात बुरे
मौतें भले ही इतनी बड़ी संख्या में न होती हों लेकिन सारे देश में मिड डे मील में लापरवाही के चलते बच्चों के बीमार पडऩे की घटनाएं सुनाई पड़ी हैं। बिहार में ही मशरक के जिस प्राथमिक स्कूल में घटना घटी वहां मिड डे मील के निगरानी करने वाली समिति पिछले तीन साल से भंग है। इस घटना के बाद छपरा में भीड़ ने थाना फूंक डाला कई जगह तो तोड़ फोड़ हुई केन्द्र सरकार ने अधिकारी भेजकर जांच करवाई है। एक परिवार में तो 9 बच्चों की मौत हुई है। प्रशासन इतना असंवेदनशील था कि उसने मृतक बच्चों के शव ले जाने के लिए वाहन तक उपलब्ध नहीं कराए बच्चों के शव को मोटर साइकिल से ले जाना पड़ा। राजस्थान में पिछले तीन वर्ष में छह बड़े मामले सामने आए जिनमें सांप,छिपकली,चूहे और कीड़े भोजन से निकले, एक बच्चे की मौत हो गई, सौ से ज्यादा बीमार पड़े। कार्रवाई के नाम पर केवल एक व्यक्ति को निलंबित किया गया। हरियाणा में वर्ष 2011-12 में 145 बच्चे मिड डे मील खाकर बीमार हो गए। कोई कार्रवाई नहीं कि गई। मध्यप्रदेश में पिछले 4 सालों में 7 बड़े मामले सामने आए 140 बच्चे बीमार पड़े, खाने में कीड़े छिपकली, इल्ली निकली। कार्रवाई के नाम पर आंगनबाड़ी सेविका और रसोईए को हटाया गया। झारखण्ड में 4 सालों में 5 मामले मिले। खाने में कीड़े पाए गए, 25 बच्चे बीमार हुए लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अन्य राज्यों में भी ऐसे ही हालात हैं। दक्षिण भारत की स्थिति थोड़ी बेहतर है लेकिन हर घटना के बाद जांच की खाना पूर्ति करते हुए मामला दबा दिया

जाता हैं या फिर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो जाते है। नीतिश ने घटना के सप्ताह भर बाद भाजपा जदयू पर आरोप लगाया।
निगरानी में कमी
केंद्र व राज्य सरकार पहले से चेत जातीं तो शायद बिहार के सारण जिले में मध्यान्ह भोजन योजना का खाना खाकर बच्चों की दर्दनाक मौत नहीं होती। मानव संसाधन मंत्रालय ने घटना के बाद कैबिनेट सचिवालय को भेजी रिपोर्ट में माना है कि बिहार में योजना के अमल में खामियां हैं। बिहार में केंद्र सरकार द्वारा मिड डे मील पर अमल की निगरानी के लिए बिहार भेजी गई निगरानी टीमों ने कई बार चेताया था कि योजना में लापरवाही बरती जा रही है। मानव संसाधन मंत्रालय की कमेटी ने तो सारण जिले में ही कमियों को पिछले साल उजागर किया था। बिहार की रिपोर्ट खराब बताई गई थी। बिहार में केंद्र सरकार द्वारा दो मानीटरिंग इंस्टीट्यूट काम कर रहे हैं। इनमें पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ने बिहार के चार जिलों दरभंगा, सहरसा, शिवहर और सीतामढ़ी का दौरा किया। रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चे, अभिभावक और समुदाय से जुड़े लोग मिड डे मील के खाने से खुश नहीं थे। ऐसी ही रिपोर्ट बिहार के जमुई, लखीसराय, मुंगेर और शेखपुरा के बारे में दी थी। दूसरी कमेटी जामिया मिलिया इस्लामिया की थी जिसने भागलपुर के स्कूलों में दौरा करने के बाद 15 फीसदी स्कूलों में खाने की गुणवत्ता खराब बताई।
भ्रष्टाचार का साधन
सारे देश में 10 करोड़ 44 लाख बच्चे मिड डे मील का लाभ उठा रहें हंै। देश के 12 लाख 12 हजार स्कूलों में यह सुविधा है। जिसमें 25 लाख 48 हजार कर्मचारी काम कर रहे हैं। सारे देश में 6 लाख 26 हजार किचन स्टोर हंै और 11 लाख 85 हजार स्कूलों में बर्तन आदि खरीदने की सुविधा है। यह चेन भ्रष्टाचार के लिए आदर्श वातावरण उपलब्ध कराती है। अनाज की खरीदी से लेकर बर्तन की खरीदी तक हर जगह कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार है। ज्यादातर मामलों में सप्लायर बड़े नेताओं के चमचे होते हैं जो घटिया समान खरीद कर इस देश के बच्चों की नसों में जहर भर रहे हैं। किसी भी स्कूल का खाना इस लायक नहीं होता कि उसे खाया जाए। साफ सफाई की व्यवस्था भी नहीं रहती। जरा सोचें जिन स्कूलों में लड़कियों के लिए टायलेट नहीं हैं उन स्कूलों में किचन कहां से होंगे। कई स्कूलों में तो दो बार खाना बनता है पहले बच्चों के लिए जो जानवरों की तरह होता है फिर मास्टरों के लिए जो चकाचक रहता है। यह भेदभाव बदस्तूर जारी है।