19-Jun-2019 08:56 AM
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मप्र के किसान इन दिनों अधर में लटके हुए हैं। केंद्र और राज्य सरकार की आपसी खींचतान का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। वहीं राज्य सरकार पर भी भार बढ़ रहा है। वित्तीय संकट से जूझ रही प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गेहूं खरीदी पर केंद्र से बड़ा झटका लगा है। मोदी सरकार ने कमलनाथ सरकार को साफ कह दिया है कि वह इस बार केवल 66 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही उठाएंगे, जबकि कमलनाथ सरकार ने समर्थन मूल्य पर 74 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा है। ऐसे में आठ लाख मीट्रिक टन का खर्चा राज्य सरकार को ही उठाना पड़ेगा। सरकार को इसके लिए 15 सौ करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है। नाथ सरकार इसलिए चिंता में है, क्योंकि खजाना खाली पड़ा है और कई काम करने बाकी हंै। ऐसे में यह खर्च बिन बुलाई आफत जैसा होगा। खबर है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से जल्द ही इस बारे में चर्चा करने वाले हैं। बता दें कि राज्य सरकार ने किसानों से 2000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी की है। इसमें केंद्र के 1840 रुपए समर्थन मूल्य और राज्य सरकार के 160 रुपए बोनस के शामिल हैं। प्रदेश सरकार ने गेहूं खरीदने से पहले केंद्र से 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने की अनुमति मांगी थी, जिस पर केंद्र सरकार ने सिर्फ पीडीएस में बांटने के लिए 23 लाख टन समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदने की अनुमति दी थी।
इस पर राज्य सरकार ने तर्क दिया कि अब तक मध्यप्रदेश में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए गेहूं को केंद्र सरकार उठाती रही है। उसमें पीडीएस में बंटने वाले गेहूं की शर्त नहीं थी। जिसके बाद केंद्र ने मौखिक रूप से राज्य को सहमति देते हुए कहा था वह किसानों से समर्थन मूल्य पर गेंहू खरीदें, केंद्र सरकार पूरा गेहूं उठा लेगा। लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते लिखित में सहमति नहीं दी गई। अब चूंकि चुनाव हो चुके हैं, ऐसे में केंद्र ने एक पत्र जारी कर राज्य सरकार को साफ कर दिया है कि वह 66 लाख मीट्रिक टन गेहूं ज्यादा नहीं उठाएगी, जबकि राज्य सरकार ने किसानों से 74 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा है।
मोदी सरकार द्वारा अपनी पहली कैबिनेट बैठक में देश के सभी छोटे-बड़े किसानों को प्रधानमंत्री किसान समान योजना का लाभ देने के फैसले से मप्र में भी योजना से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या बढ़ जाएगी, लेकिन प्रदेश के किसानों को अब तक योजना से मायूसी ही हाथ लगी है। उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल पाया है, क्योंकि राज्य सरकार केंद्र को किसानों की संख्या की सूची नहीं भेज पाई है। केंद्र सरकार फरवरी से राज्य से लघु एवं सीमांत किसानों की सूची मांग रही है। खास बात यह है कि दूसरे राज्यों के 3.11 करोड़ छोटे किसानों को दो हजार रुपए की पहली किश्त और 2.75 करोड़ किसानों को दूसरी किश्त मिल चुकी है। केंद्र सरकार के फैसले से अब प्रधानमंत्री किसान समान योजना का लाभ प्रदेश के सभी छोटे-बड़े 88 लाख से ज्यादा किसानों को मिलेगा। पहले इस योजना के दायरे में प्रदेश के करीब 50 लाख लघु एवं सीमांत किसान आ रहे थे, जिनके खाते में हर साल करीब 3 हजार करोड़ रुपए आने थे, लेकिन अब योजना से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या 38 लाख और बढ़ गई है। इस योजना में प्रदेश के करीब 88 लाख किसानों के खाते में हर साल 5 हजार 280 करोड़ रुपए आएंगे। किसानों के खाते में यह राशि तीन किश्तों में आएगी।
लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार द्वारा फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में लघु एवं सीमांत किसानों को हर साल में 6 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की गई थी। घोषणा के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से जल्द से जल्द लघु एवं सीमांत किसानों की सूची मांगी थी, लेकिन लघु एवं सीमांत किसानों की वास्तविक संख्या का डाटा उपलब्ध नहीं होने की बात कहते हुए राज्य ने कहा था कि किसानों का सर्वे कराकर सूची केंद्र को भेजी जाएगी। इसके बाद सरकार चुनाव में उलझ गई और किसानों की सूची अटक गई। सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले सरकार का पूरा फोकस किसानों की कर्ज माफी पर था, ताकि उसे चुनाव में इसका फायदा मिल सके। वह यह भी नहीं चाहती थी कि प्रधानमंत्री किसान समान योजना का लाभ भाजपा को मिले, इसलिए भी किसानों की सूची भेजने में टालमटोल की गई।
- रजनीकांत पारे