31-Aug-2013 08:25 AM
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भारतीय सुरक्षा एंजेसियों ने 12 दिनों के भीतर आतंकी अब्दुल करीम टुंडा और इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक यासीन भटकल को गिरफ्तार कर लिया है । लेकिन सवाल वही है कि क्या वह दोनों अपने

अंजाम तक पहुंच सकेगा?
जिस तरह कसाब को फांसी देने में लगभग साढ़े 4 वर्ष लगे और अफजल गुरू को फांसी के तख्त तक पहुंचने में पूरा एक दशक लग गया उसे देखते हुए टुंडा, भटकल को लेकर आशंका के बादल मंडरा रहे हैं। दोनों के पास कहीं महत्वपूर्ण जानकारियां है जिनका उपयोग सुरक्षा की दृष्टि से किया जा सकता है। आतंकवादियों को सजा देने में हमे इतनी देरी क्यों लगती है? अब्बू सलेम को हम फांसी दे नहीं सकते । देर सबेर उसका छूटना तय है, सल्लाउद्दीन सल्लार मूठभेड में मारा गया। 60 से ज्यादा विस्फोट करने वाला जलीस अन्सारी अजमेर की सेंट्रल जेल में 1993 के मुंबई धमाकों की सजा भुगत रहा है। बटला हाउस एनकांउटर पर राजनीति अभी भी जारी है। दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस, गे्रटर कैलाश और इंडिया गेट में हुए विस्फोटों में इंडियन मुजाहिद्दीन के शहजाद अहमद का हाथ था जिसे हाल ही में उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। भटकल को नेपाल के सफौली से गिरफ्तार किया गया है। उस पर भारत में 70 आतंकवादी वारदातों को अंजाम देने का आरोप है। इनमें 600 से ज्यादा निर्दोषों की जान गई थी। भटकल आने वाले दिनों में भारत में कुछ और आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाला था। उसे टुंडा की निशानदेही पर गिरफ्तार किया गया। सूरत जयपुर दिल्ली, बनारस, ैबैगलुरू पुणे, मुंबई, हैदराबाद सहित कई शहरों में भटकल ने आतंकी वारदातों को अंजाम दिया। भटकल और टुंडा की गिरफ्तारी भारत के लिए बड़ी सफलता है क्योंकि भटकल की गिरफ्तारी से आईएम और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के हौंसले पस्त होंगे। पाकिस्तानी सेना सीमा पर जिस तरह गोलीबारी करके आतंकवादियों को भारत की सीमा में धकेलने का प्रयास कर रही है वह प्रयास आगे भी जारी रह सकता है ऐसी स्थिति में इन आतंकियों को भारत में कोई जरिया न मिले तो उनके कदम नहीं जम पाएंगे। इन आतंकियों को भारत में टुंडा से ज्यादा मदद मिलती थी। भटकल भी इनकी मदद करता था।
भारत में तबाही मचाने वाला टुंडा दाउद का दायां हाथ माना जाता है। भारत में वांछित आतंकवादियों में उसका सबसे पहला नम्बर है लेकिन लम्बे समय तक वह बचने में कामयाब रहा और विदेशी धरती से भारत पर हमले करता रहा। यूपी के गाजियाबाद का रहना वाला टुंडा बम बनाने में माहिर है। वह 90 के दशक से बम बना रहा है और उसे इस काम में लगातार इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों का साथ मिलता रहा। टुंडा पर विस्फोट एक्ट में पहले ही मामले दर्ज हो चुके हैं। उस पर कुल 13 मुकदमे दर्ज हैं लेकिन वह बचने में कामयाब रहता था। उसने अपने तीनों पत्नियों और तीन बेटों तथा दो बेटियों को पाकिस्तान में बसा दिया उसके दो बच्चों का पता नहीं है। पूरा परिवार सुरक्षित करने वाले के बाद खुद गिरफ्तारी से बचने के लिए ढाका भाग गया था। ढाका भागने का कारण यह था कि वर्ष 1994 में जब पांच विदेशी नागरिक आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाए गए थे उस वक्त टुंडा का नाम सुरखियों में आया था और उसके घर की कुर्की कर ली गई थी। मामला ठंडा पडऩे के बाद वह फिर से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने लगा। टुंडा के खिलाफ जांच के दौरान यह भी पता चला है कि वह ढाका में भी भारत विरोधी गतिविधियों में संलग्न था और उसकी योजना भारत में बड़े हमले करनी की थी, पर वह अपनी योजना में कामयाब नहीं हो सका। टुंडा को पनाह देने के लिए भारत,पाकिस्तान और बंगलादेश में जो गिरोह संलग्न थे उसकी जानकारी टुंडा ने खुफिया और सुरक्षा एंजेसियों को मोहिया कराई है इससे पता चलता है कि लश्कर का यह आतंकी आतंक की दुनिया में बहुत गहराई तक घुसा हुआ है। टुंडा ने बताया है कि किस तरह आईएसआई न केवल आतंकवाद के द्वारा भारत में तबाही फैलाना चाहती है बल्कि वह नकली नोटों की खेप भारत की अर्थव्यवस्था में खपा कर भारत को आर्थिक रूप से भी तोडऩे की साजिश रच रही है। वर्ष 2012 में जब जनवरी माह में दिल्ली में ढाई करोड़ रूपए मूल्य की जाली भारतीय मुद्रा जप्त की गई थी उस वक्त इस मामले टुंडा,काना और हसन का नाम आया था। यह मुद्रा टुंडा द्वारा ही पहुंचाई गई थी। आईएसआई ने टुंंडा की भरपूर मदद की। उसने पाकिस्तानी पासपोर्ट भी अब्दुल कुद्धुस नाम से प्राप्त कर रखा था।
टुंडा लश्कर-ए-तैयबा का एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट माना जाता है। 1993 में मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट के बाद से इसकी तलाश की जा रही थी। ढाका में उसने लंबे समय तक लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया। फिर वह पाकिस्तान चला गया। पाकिस्तान में वह संगठन से जुडऩे वाले बच्चों को यूरिया, नाइट्रिक एसिड, पोटैशियम क्लोराइड, नाइट्रोबेजिन और शुगर की मदद से बम बनाने का प्रशिक्षण देने लगा। करीब दो साल पाकिस्तान में गुजारने के बाद वह 1996 में बांग्लादेश की सीमा से एक बार फिर भारत में दाखिल हुआ। जिसके बाद उसने सिलसिलेवार तरीके से दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया। लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होने के बाद मुंबई में टुंडा की मुलाकात डॉक्टर जलीस अंसारी से हुई। टुंडा ने अंसारी के साथ मिलकर मुंबई में तंजीम इस्लाह-उल-मुस्लिमीन नामक इस्लामी आम्र्ड ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत की। शुरुआत में संगठन का मकसद मुसलमानों की तरक्की बताया गया। लेकिन कुछ ही समय बाद इसकी आड़ में लश्कर-ए-तैयबा के मंसूबों को पूरा किया जाने लगा। इसी दौरान लश्कर का आतंकी आजम गौरी भी इस संगठन में शामिल हो गया। जिसके बाद इसे अलह-ए-हदीस का नाम दिया गया। अलह-ए-हदीस का मकसद अयोध्या ढांचा के ढहाए जाने की घटना का बदला लेना था। श्रीवास्तव के अनुसार 1993 में टुंडा ने अंसारी के साथ मिलकर मुंबई और हैदराबाद में ट्रेनों के भीतर कई बम धमाकों को अंजाम दिया। जनवरी 1994 में अंसारी की गिरफ्तारी के बाद टुंडा ढाका भाग गया। टुंडा ने और खुलासे करते हुए बताया 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स से ठीक पहले दिल्ली और पंजाब में बम धमाके करने की जो योजना बनाई गई थी, उनमें पंजाब के तीन मंत्रियों को भी उड़ाने की साजिश रची गई थी। यह साजिश बब्बर खालसा इंटरनैशनल के कमांडर वाधवा सिंह ने रची थी। इसके लिए दिल्ली और पंजाब में आरडीएक्स भेज दिया गया था। इस बात का खुलासा आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा ने स्पेशल सेल से पूछताछ में किया है। टुंडा से 1996 में दिल्ली पुलिस हेडक्वॉर्टर के सामने हुए बम धमाके में उसके रोल के बारे में भी पूछा गया। माना जा रहा है कि उसमें टुंडा का भी हाथ था। टुंडा ने बताया कि अक्टूबर में कॉमनवेल्थ खेल शुरू होने से ठीक एक दिन पहले दिल्ली और पंजाब में एक साथ धमाके करने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए वाधवा सिंह पाकिस्तान से आकर उससे मिला था। यही नहीं, आरडीएक्स की अच्छी-खासी मात्रा भी इन दोनों जगह भेज दी गई थी। मगर ऐन वक्त पर उनके कुछ आतंकवादी ढाका और भारत में पकड़े गए। इस वजह से टुंडा ने इस ऑपरेशन को टाल दिया था। इसके अलावा और भी आतंकवादी संगठन उसे अपने काम के लिए आउटसोर्स करते रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान के कराची से टुंडा सीधे नेपाल पहुंचा था। वह दुबई या अन्य देशों से होते हुए काठमांडू नहीं पहुंचा था। नेपाल से वह उत्तराखंड के महेंद्र नगर बॉर्डर को पार करता हुआ बनवासा जा रहा था। वहीं से उसे स्पेशल सेल ने पकड़ लिया। मगर इस गिरफ्तारी के पीछे सूत्रों ने बताया कि असल में टुंडा को पाकिस्तान से ही उसी के आदमियों की मार्फत भारत की खुफिया एजेंसियों ने नेपाल तक बुलवाया। इसके बाद उसे बनवासा के एक मदरसे में स्पीच दिलाने के बहाने बुलवाया गया, जहां पहले से ही स्पेशल सेल उसे दबोचने के लिए बैठी हुई थी। जैसे ही टुंडा वहां पहुंचा, उसे पकड़ लिया गया। टुंडा ने इस बात का भी खुलासा किया है कि पाकिस्तानी आर्मी के तीन मेजर- तैयब, अल्ताफ और इकबाल उसके टच में लगातार रहे थे। ये तीनों पाकिस्तान सरकार के इशारे पर उसकी मार्फत भारत में नकली भारतीय करंसी का नेटवर्क फैलाने का काम करा रहे थे। इसके अलावा भी अन्य कई कामों में ये उसकी मदद लेते थे। इसमें आईएसआई की मुख्य भूमिका रहती थी। समय-समय पर मेजर आईएसआई के माध्यम से उसे आदेश देते रहते थे।
मप्र में भी हो रही पड़ताल
आतंकवाद की बात हो और उसकी जांच की आंच मध्यप्रदेश तक न पहुंचे ऐसा कम ही होता है। देशभर में कहीं भी ब्लास्ट हुए हों या आतंकवादी पकड़ाए हों उनके तार मध्यप्रदेश खासकर मालवांचल से जरूर जुड़ जाते हैं। टुंडा की गिरफ्तारी से यह बात भी सामने आई है कि उसका इंदौर आना-जाना रहा है। गौरतलब है सिमी आतंकी सफदर नागौरी, अबु फजल, कमरुद्दीन नागौरी, गुजरात धमाकों से जुड़े कयामुद्दीन कपाडिय़ा जैसे कई आतंकियों की शरण स्थली मप्र ही रही है। टुंडा का भी इंदौर के एक परिवार से बड़ा करीबी संबंध रहा है और उसके यहां आना-जाना रहा है। गौरतलब है कि इस परिवार के संबंध हाल ही में राज्यपाल बनाए गए एक मुस्लिम नेता से भी बड़े गहरे रहे हैं। एजेंसियां टुंडा के इन संपर्कों की पड़ताल
कर रही हैं।