अफगानिस्तान में साजिश कर रही है आईएसआई
17-Aug-2013 06:33 AM 1234773

जलालाबाद में आंतकवादियों द्वारा भारतीय दुतावास के सामने बम धमाका किसी बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकता है इस धमाके में जो 8 जानें गईं उनमें से ज्यादात्तर बच्चे हैं। हालांकि दुतावास के सारे कर्मचारी सुरक्षित बच गए लेकिन इस हमले ने कई सवाल खड़े किए हैं। ये हमला भारत के प्रति चेतावनी भी हो सकता है। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब भारत के राजदूत को उड़ाने के लिए आईएसआई ने कथित रूप से तालिबान को सुपारी दी हुई है। आशंका है कि दो तालिबानियों को इस काम के लिए तैनात किया गया है। पाकिस्तान में सीमा पर जो तनाव पैदा किया जा रहा है उसके तार भी कहीं न कहीं इस साजिश से जुड़ रहे हैं। पाकिस्तान अफगानिस्तान में ज्यादा हस्तक्षेप चाहता है और इसीलिए वह अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को समेटने की कोशिश करता रहता है। भारत ने दो बिलियन डॉलर अफगानिस्तान में नवनिर्माण के लिए खर्च किए हैं। इसी कारण अफगान मामलों में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन भारतीय प्रोजेक्ट पाकिस्तान को रास नहीं आ रहे हैं। आईएसआई ने जिस अफगानी हक्कानी गिरोह को भारतीय राजदूत की हत्या का ठेका दिया है वह पूर्वी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के  वजीरिस्तान में सर्किय है। इस गिरोह ने पिछले 3 वर्षों में काबूल स्थित भारतीय और अमेरिकी सरकार के ठिकानों पर कई हमले किए हैं।
पाकिस्तान नहीं चाहता है कि अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण हो इसी कारण वह अफगानिस्तान में लगातार अस्थिरता फैला रहा है। तालिबानों को आज भी पाकिस्तान से मदद मिलती है और लगातार हथियार भी मुहिया करा जाते हैं। यह पाकिस्तान की तैयारी का ही हिस्सा है जिसके तहत वह दो तरीके से भारत को घेरना चाहता है। पहला तरीका है सीमा पर तनाव बनाना और दूसरा तरीका है तालिबान को बढ़ावा देकर भारत के भीतर अस्थिरता फैलाना। तालिबान भारत के साथ-साथ अमेरिका से भी नफरत करते हैं लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गल पाती क्योंकि अमेरिका ने अपनी सुरक्षा की पुख्ता इंतजाम कर रखे हैं। इसी कारण जब-जब आतंकवाद की बात उठती है पाकिस्तान में हमेशा से भारत ही निशाने में आता है।
तालिबान को कमजोर करने तथा अपनी तरह की पहली अफगान लोकल पुलिसÓ (ए.एल.पी.) को प्रशिक्षित करने का श्रेय स्पैशल टास्क फोर्स को दिया जाता रहा है। अमरीकी सेना के अफगानिस्तान से जाने के बाद वहां कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी ए.एल.पी. पर ही होगी परंतु जल्दबाजी में दिए गए इस आदेश से न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान को छोड़ कर अफगानिस्तान के लगभग सभी पड़ोसी देशों को झटका लगा है। पाकिस्तान इसे अफगानिस्तान की राजनीति पर अपना असर डालने तथा वहां भारत का प्रभाव न्यूनतम करने के मौके के रूप में देख रहा है।  तालिबान को खदेडऩे के बाद भारत करीब एक दशक से अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचों तथा संस्थानों के पुनर्निर्माण में सहायता कर रहा है। 700 कि.मी. से अधिक सड़कें, अनगिनत स्कूल, अस्पताल वहां बनाए जा चुके हैं परंतु भारत सरकार द्वारा संस्थापित सबसे वैभवशाली परियोजना अफगान संसद की इमारत है। कांसे के गुम्बद तथा 700 करोड़ रुपए की लागत वाली इस इमारत का निर्माण पूरा होना है। 2008  तथा 2009 में भारतीय दूतावास में हुए बम धमाकों के बाद भी भारत ने अपने कदम पीछे नहीं हटाए। 100 से अधिक अफगानी सैन्य अफसर भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे हैं।
वास्तव में अफगानिस्तान से भारत की ओर मैडीकल टूरिज्म में इतनी वृद्धि हुई है कि दिल्ली के निजी अस्पतालों ने अफगानी रोगियों  के लिए अलग से काऊंटर बना दिए हैं। यह महसूस किया जाता है कि चूंकि हामिद कारजेई भारत में पढ़े हैं तथा उन्हें हिन्दी भी आती है, भारतीयों के लिए वहां कांट्रैक्ट हासिल करना सरल है। भारत द्वारा हासिल किए गए कांट्रैक्ट्स में अफगानिस्तान में लौह अयस्क के खनन का एक कांट्रैक्ट भी शामिल है।  इस सारे सहयोग के पीछे यही धारणा काम कर रही है कि अफगानिस्तान अब एक बार फिर से 90 के दशक वाली स्थिति में लौट जाए क्योंकि ऐसा  न हुआ तो भारत व सारे क्षेत्र के लिए इसके नतीजे भयानक हो सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार कारजेई इसलिए  अमरीका को वहां से निकाल देना चाहते हैं क्योंकि 2014 में वहां चुनाव होंगे और इस बार वह चुनावों में खड़े नहीं हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि अफगानिस्तान ने अमरीका जैसी राष्ट्रपति नेतृत्व वाली प्रणाली अपनाई है जिसमें कोई व्यक्ति तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता। ऐसे में वह यह बात भी रख रहे हैं कि अफगानिस्तान में संसदीय सरकार का ढांचा अपनाया जाए जिसमें उनके फिर से चुनाव में खड़ा होने पर कोई रोक न हो। चूंकि भारत में भी अगले साल ही आम चुनाव होने तय हैं अत: किसी तरह के शांति समझौते या गतिरोध के खत्म होने की सम्भावना नहीं है। तालिबानी गतिविधियों में तेजी आने की अधिक सम्भावना है जैसा कि भारत में हुए हालिया बम धमाकों से जाहिर भी है। तालिबान के सहयोग से बनी अफगान सरकार या पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान के सत्ता में आने से भारत के लिए सुरक्षा समस्याएं कई गुणा बढ़ जाएंगी। भारत के साथ अफगानिस्तान का लम्बा सांझा इतिहास है। यदि मौर्य व कुषाण युग में भारतीय सम्राटों ने अफगानिस्तान पर राज किया तो सैयदी, लोधी व खिलजी जैसे बादशाहों ने भारत को अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया था। काबुल की सत्ता पर काबिज होने वाला हर बादशाह दिल्ली के तख्त पर बैठना चाहता था। अंतिम बार जब भारत तथा अफगानिस्तान एक हुए, वह महाराजा रंजीत सिंह का शासनकाल था जब उनके सेनापति हरि सिंह नलवा ने अफगानिस्तान पर फतह पाई थी।

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