17-Aug-2013 06:32 AM
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उत्तरप्रदेश में सभी तरह के माफियाओं को सरकारी संरक्षण मिला हुआ है। यही कारण है कि ईमानदार अफसर फुटबॉल की तरह यहां-वहां फेंक दिए जाते हैं। भू-माफिया, जंगल माफिया, खदान माफिया, शराब माफिया और सरकारी माफिया इन सबने मिलकर आम जनता का जीवन हराम कर दिया है। नोएडा में नोएडा एक्सटेंशन के नाम पर जो लूट मची है उसमें भू-माफिया और जंगल माफिया दोनों ने मिलकर सरकार के भ्रष्ट लोक सेवकों की जेबें भरी हैं और खुद भी अरबों-खरबों के वारे न्यारे कर लिए हैं। प्रदेश के पर्यावरण निदेशालय ने जानबूझकर उन क्षेत्रों में पर्यावरणीय मंजूरियां प्रदान की जहां पर कई तरह के वृक्ष मिलते हैं और जो नील गाय, सांप, मोर, काले मृग से लेकर कई प्रजातियों का बसेरा है। इसमें जंगल माफिया ने भी भू-माफिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और वन महकमें की मिलीभगत से रातों-रात करोड़ों रुपए की वन सामग्री जिसमें बेशकीमती लकड़ी शामिल है काटकर काले बाजार में बेंच दी गई। नाम लिया गया कि स्थानीय निवासियों ने जलावन के लिए लकडिय़ां काटी हैं। स्थानीय निवासियों को डरा-धमकाकर या लालच देकर वहां से बेदखल किया जा रहा है।
यहीं नहीं शिक्षा माफिया और जल माफिया ने भी इस क्षेत्र में अच्छा-खासा आतंक फैला रखा है जो भी इसका विरोध करता है उसे दुर्गा शक्ति की तरह धमकाया जाता है और धमकाने पर भी बाज न आए तो निलंबन से लेकर ट्रांसफर तक की कार्रवाई की जाती है। खास बात यह है कि जो अधिकारी सरकार की चिरौरी करते हैं और सरकार में बैठे भ्रष्ट आला अफसरों तथा मंत्रियों को काली कमाई का धन मुहैया कराते हैं उन्हें सरकार द्वारा अच्छी खासी सुविधाएं और जमीनें मुहैया कराई जाती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा 28 लोगों को मुहैया कराई गई जमीनों पर आपत्ति जताई थी यह जमीनें समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा मुख्यमंत्री के ससुर आरसीएस रावत, रेवेन्यू मिनिस्टर अंबिका चौधरी की पत्नी सरोज चौधरी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सचिव और मुलायम सिंह यादव की करीबी आईएएस अफसर अनीता सिंह तथा कई चाटुकार अफसरों को मुहैया कराई गई। अनीता सिंह और उनके पति सुभाष चंद्रा को पांच सौ वर्ग मीटर का प्लाट विपुल खंड में दिया गया था। अनीता सिंह को मुलायम सिंह यादव का दायां हाथ कहा जाता है। ईमानदार आईएएस अफसरों को ठिकाने लगाने में अनीता सिंह जैसे कई आला अफसर यादव परिवार का मार्ग दर्शन करते हैं। मुलायम सिंह यादव, आजम खान, अखिलेश यादव से लेकर तमाम प्रभावशाली यादवी कुनबे और यादवी कुनबे को सहयोग देने वाले लोगों के अपने-अपने पसंदीदा अधिकारी हैं, जो वक्त पडऩे पर यादवी कुनबे की चरण वंदना करने से लेकर सरकार की राह में बाधा बनने वाले ईमानदार अफसरों को ठिकाने लगाने का काम करते हैं। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अनिल कुमार गुप्ता के पास कभी छह महत्वपूर्ण विभाग हुआ करते थे बाद में अखिलेश सरकार ने उनके विभागों में फेरबदल तो की लेकिन ताकत उनकी कम नहीं हुई। प्रवीर कुमार भी एक ऐसे ही ताकतवर आईएएस अफसर हैं जिनके पास कई विभाग हैं और वे मंत्रियों और नेताओं के चहेते भी हैं। उनकी शहरी विकास मंत्री आजम खान से कुछ समय पहले तनातनी हो गई थी, लेकिन बाद में उन्हें हाउसिंग डिपार्टमेंर्र्ट का अतिरिक्त प्रभार देकर उपकृत किया गया। राजीव अग्रवाल लखनऊ विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन होने के साथ-साथ मंडी परिषद के डायरेक्टर पद को भी सुशोभित करते हैं। दोनों विभाग सीधे मुख्यमंत्री के कब्जे में हैं। अनीता सिंह के विषय में पहले ही बता चुके हैं कि उन्हें जमीन तो मिली ही उनका रुतबा काफी है। जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय अनीता सिंह उनकी भी सचिव थीं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि मुलायम ने ही अनीता सिंह को मुख्यमंत्री के कार्यालय में नियुक्त करवाया है ताकि वे अपना काम अनीता सिंह के माध्यम से करवा सकें। 16 मार्च 2012 को जैसे ही अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी 24 घंटे के भीतर मायावती के कैबिनेट सचिव शंकर शेखर सिंह को हटाकर उनके चेम्बर में अनीता सिंह को बिठा दिया गया था। जीवेश नंदन के पास भी तो महत्वपूर्ण विभाग हैं और वे भी मंत्रियों और मुख्यमंत्री के चहेते कहे जाते हैं। राकेश बहादुर नोएडा के चेयरमैन होने के साथ-साथ यमुना एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट अथॉरिटी के प्रमुख भी रहे हैं। उन्हें भी सपा सरकार में महत्वपूर्ण कहा जाता है। 2009 में मायावती सरकार ने प्लाट घोटाले में उन्हें सस्पेंड कर दिया था। यह घोटाला चार हजार करोड़ रुपए से ऊपर का था। अखिलेश यादव की महत्वपूर्ण योजना लैपटाप वितरण का काम देख रहे वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी प्रभात मित्तल को हाल ही में अखिलेश सरकार की कृपा से आईएएस अवार्ड हुआ है। आलम यह है कि सारे महत्वपूर्ण विभाग ऐसे अधिकारियों को दिए गए हैं जो कहीं न कहीं दागी हैं राजीव कुमार के ऊपर आईएएस नीरा यादव के साथ मिलकर भूमि आवंटन घोटाले में शामिल होने का कथित रूप से आरोप है। इस मामले की सीबीआई जांच चल रही है। मुख्यमंत्री के विशेष सचिव पंधारी यादव के कार्यकाल में करोड़ों का मनरेगा घोटाला हुआ था। हालांकि उन्हें बसपा सरकार ने ही बचाया और सपा सरकार भी बचा रही है। नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन राकेश बहादुर पांच सितारा होटलों के प्लाट आवंटन घोटाले में शामिल रहे हैं। इसी प्रकार आईएएस संजीव सरन पर भी 2006 में हुए एक भूमि घोटाले में आरोप हैं। समाज कल्याण विभाग में आयुक्त रहे सदाकांत पर लेह लद्दाख में 200 करोड़ रुपए का सड़क घोटाला करने का आरोप हैं। आबकारी आयुक्त महेश गुप्ता के खिलाफ सीबीआई ने 1998 में कर्मचारी भर्ती घोटाले में आरोपित होने पर चार्जशीट दाखिल की है। इन दागी अफसरों को अखिलेश सरकार पीठ थपथपा कर महत्वपूर्ण पदों पर पदासीन कर रही है और ईमानदार अधिकारियों को दुर्गा शक्ति नागपाल की तरह या तो निलंबित किया जाता है या फेंक दिया जाता है। 1994 बेच के पुलिस अफसर आनंद स्वरूप को 18 सालों में 38 बार तबादले का सामना करना पड़ा क्योंकि वे अपराधियों के प्रति बिल्कुल नरमी नहीं बरतते थे। लखनऊ के इंडियन ऑयल के अफसर षणमुगम मंजूनाथ की लखीमपुर जिले में 2005 में हत्या कर दी गई। उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के एसपी नवनीत कुमार राणा ने जब एक रिश्वतकांड का पर्दाफाश किया तो उनका तबादला कर दिया गया। उत्तरप्रदेश के ही ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में 14 सौ करोड़ रुपए के घोटाले का पर्दाफाश करने वाले 1978 बैच के पीसीएस अफसर हरिशंकर पांडे को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। गोंडा जिले में ही सीएमओ पद पर तैनात रहे एसपी सिंह ने जब एक मंत्री की मनमानी का विरोध किया तो उनका अपहरण कर लिया गया। ऐसे कई ईमानदार अफसर हैं जो अपनी ईमानदारी की कीमत चुका रहे हैं। चाहे समाजवादी पार्टी हो या कांग्रेस सभी का यही रवैया रहता है। अकेले उत्तरप्रदेश नहीं सारे देश में अधिकारियों के यही हालात हैं। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच एक कथित विवादित जमीन सौदे का पर्दाफाश करने वाले 1991 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर अशोक खेमका का पिछले वर्ष तबादला कर दिया गया था। खेमका ने बाद में हरियाणा बीज विकास निगम में फैले भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया, उनका फिर से तबादला हो गया। 20 साल की नौकरी में 40 बार तबादला झेल चुके हैं खेमका लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी है।
राजस्थान कैडर के आईएएस अफसर समित शर्मा ने अपने दफ्तर के एक बाबू को निलंबित करने से इनकार कर दिया तो उनका तबादला कर दिया गया। इस बाबू का कसूर केवल इतना था कि वह स्थानीय विधायक के ऑफिस पहुंचने पर उठकर खड़ा नहीं हुआ। राजस्थान की ही 1999 बैच की अधिकारी मुग्धा सिंह ने जब स्थानीय माफियाओं के गिरेबान में हाथ डाला तो उनका भी तबादला कर दिया गया। मुग्धा के समर्थन में जनसमूह उमड़ पड़ा पर सरकार की नींद नहीं खुली। राजस्थान में ही आईपीएस अफसर विकास कुमार को पिछले वर्ष अवैध खनन पर शिकंजा कसने के कारण तबादले का सामना करना पड़ा था। अपने आपको जनता की हिमायती कहने वाली ममता बनर्जी भी ईमानदार अफसरों को बर्दाश्त नहीं करती है। हाल ही में उन्होंने एक आईपीएस अफसर दमयंती सेन का तबादला कर दिया क्योंकि सेन ने गत वर्ष कोलकाता पार्क स्ट्रीट बलात्कार कांड में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को गलत साबित कर दिया था। हरियाणा में एक भारतीय वन सेवा के अफसर संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ पांच फर्जी मामले दर्ज कर लिए गए। क्योंकि उन्होंने अपने 7 साल के कार्यकाल में कई घोटालों का पर्दाफाश कर दिया। यूपी में मोहम्मद आजम खान के इशारों पर काम करने से इनकार कर देने वाली सुभ्रा सक्सेना हो या बिहार में अवैध उत्खनन को रोकने पर जान गंवाने वाले डीएफओ संजय सिंह हो। इन सबकी एक ही कहानी है। जो भी अधिकारी मंत्रियों की जी हुजूरी नहीं करता उसे लूप लाइन पर पटक दिया जाता है। मंत्री उसकी सीआर खराब करते हैं कई बार पढ़े लिखे अफसरों से गाली-गलौंच की जाती है। कई बार उनकी हत्या हो जाती है। लेकिन राजनीति सुधरना नहीं चाहती। इसी कारण पूरा तंत्र सडांध मार रहा है। कोई भी बड़ा नेता या मंत्री अपनी पसंद से ही अफसरों की नियुक्तियां करवाता है क्योंकि उसे पता है कि कौन अफसर उसका भरण पोषणÓ करने में सक्षम है। सोनिया गांधी ने दुर्गा शक्ति के समर्थन में भले ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखा हो लेकिन सच तो यह है कि अफसरों की जो दुर्गति कांग्रेस ने की है वैसी तो किसी दूसरी पार्टी ने कही ही नहीं होगी।
लखनऊ से मधु आलोक निगम