84 कोस की फिक्स परिक्रमा
31-Aug-2013 10:40 AM 1234775

25 अगस्त को एक बार फिर इतिहास दोहराया गया लेकिन इस बार राम मंदिर के लिए नहीं 84 कोस यानि 300 किलोमीटर की परिक्रमा को अयोध्या में रोकने के लिए। यात्रा विश्व हिन्दु परिषद द्वारा की जा रही थी और रोकने के लिए तैनात थे वे पुलिस वाले जो अब एक बार फिर समाजवादी पार्टी सरकार के आदेश पर काम कर रहे थे। कभी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने ही कार सेवकों पर गोली चलवा दी थी। उस वक्त यह एक रक्त रंजित वाकया था लेकिन इस बार की 84 कोसी परिक्रमा में आस्था कम राजनीति ज्यादा दिखाई दी। इसीलिए अशोक सिंघल, प्रवीण तोगडिय़ा जैसे नेताओं को पहले गिरफ्तार किया गया फिर उनमें से कुछ को छोड़ दिया गया। विश्व हिन्दु परिषद टकराव के मूड में नहीं थी वह तो केवल अयोध्या मुद्दे को हवा देने के लिए बाहर निकली थी। इसीलिए संतों में इस यात्रा को लेकर मतभेद थे। कुछ ने तो इसे बेतुका और असमायिक कदम बताया। हालांकि मुलायम के लिए यह अवसर था कि वे इस यात्रा की अनुमति देकर कार सेवकों की हत्या के दाग को कुछ हद तक धो सकें लेकिन मुलायम के लिए मुस्लिम वोट भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं और फिर उनके मंत्रिमंडल के सबसे ताकतवर मंत्री आजम खान के नाराज होने तथा वोट बैंक के छिटकने का खतरा भी था। मुलायम यह खतरा उठाना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने यात्रा को किसी भी कीमत पर न होने देने की सलाह अखिलेश सरकार को दी जो मान ली गई। जब विश्व हिन्दु परिषद के नेताओं ने मुलायम से मुलाकात की थी उस वक्त आजम खान ने साफ कह दिया था कि यह मुलाकात गलत है और इससे मुसलमानों में गलत संदेश जायेगा। लेकिन विहिप ने यह मुलाकात इसलिए नहीं की थी कि  मुलायम  का दिल पिघल जाए बल्कि विहिप एक संदेश देना चाह रही थी कि वह राम मंदिर आंदोलन के लिए सभी राजनीतिक दलों को साथ लेने की कोशिश कर रही है। हालांकि यह भी सच है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में कोई भी दल राम मंदिर के विषय में ठोस पहल करने से कतरा रहा है। सभी दल इस मुद्दे से इसलिए दूरी बना रहे हैं क्योंकि यह मुद्दा उन्हें परेशानी में डाल सकता है खासकर धर्मनिरपेक्षता बनाम हिन्दुत्व की लड़ाई में वे अकेले पड़ सकते हैं। मुलायम सिंह के लिए तो यह दुविधा और भी ज्यादा खतरनाक है। यदि वे इसका समर्थन करते हैं तो उनका परम्परागत  वोट बैंक खतम हो जाएगा। लेकिन जिस तरह कांग्रेस ने तेवर दिखाए हैं और  कांग्रेस की निकटता जनता दल यूनाईटेड, बहुजन समाज पार्टीं जैसे दलों से बढ़ रही है उसके चलते मुलायम को इस बात की उम्मीद कम ही है कि वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन पाएंगे। इसलिए उन्होंने भाजपा का विकल्प खुला रखा है और इस विकल्प को खुला रखने की रणनीति यह है कि राज्य में भाजपा का इस तरह विरोध किया जाए कि धु्रवीकरण की स्थिति में फायदा मुलायम को भी हो और भाजपा भी पर्याप्त फायदे में आ जाए यह फिक्सिंग दोनों के लिए लाभदायी है लेकिन कभी भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बने मुलायम को इस फिक्सिंग से नुकसान भी हो सकता है। हिन्दु-मुस्लिम धु्रवीकरण हुआ तो ज्यादात्तर सीटें उनके हाथ से निकल जाएंगी। इसलिए यूपी में भाजपा की रणनीति साफ्ट हिन्दुत्व और विकास को आगे रखने की है जिससे यदि वह केन्द्र में सरकार न बना सके तो कम से कम उस भूमिका में अवश्य रहे जिसके चलते वह किसी कठपुतली सरकार को वहाँ स्थापित कर सके। जो उसके एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहायक हो इसका कारण यह है कि 2014 का मैदान किसी के लिए भी साफ नहीं है और न ही कोई जनता की नब्ज को पकड़ पाया है। आने वाले चुनावी महाभारत में सबकी नजऱ दिल्ली की कुर्सी पर है। इसके लिए हर तरह के प्रयोग हो रहे हैं। मुसलमानों के मसीहा कहे जाने वाले मुलायम सिंह के लिए भी अब अयोध्या एक हथियार है, बीजेपी की ताकत बढ़ाने की उनकी ये कोशिश आने वाले चुनाव में 1989 फॉर्मूले को ध्यान में रख कर की जा रही है। तब मुलायम सिंह ने यूपी में बीजेपी की मदद से मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी पाई थी। उधर केंद्र में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी थी और बीजेपी ने साथ दिया था। आज एक बार फिर तीसरे मोर्चे की कसरत तेज हो चुकी है और दिल्ली की कुर्सी के लिए बीजेपी का साथ ज़रूरी लग रहा है। फिलहाल सब एक सपना सा है लेकिन इसे सच करने के लिए बिसात बिछ गई है। अयोध्या, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगडिय़ा उसी बिसात के मोहरे हैं।
दिल्ली की जंग के लिए सबसे बड़ा रणक्षेत्र उत्तर प्रदेश है और सामान्य तौर पर ये जुमला प्रचलित भी है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। मुलायम सिंह की आखिरी ख्वाहिश दिल्ली की कुर्सी है और इसके लिए मुसलमानों की सियासत भी है और बीजेपी की मज़बूती भी। दूसरी तरफ चाहे रॉबर्ट वाड्रा मामला हो या फूड सिक्योरिटी बिल, मायावती और सोनिया गांधी की नज़दीकियां साफ तौर पर नजऱ आ चुकी हैं। आम जनता बेशक बेतहाशा बढ़ती महंगाई से परेशान हो, गिरते रुपए को लेकर भले ही राजनीति हो रही हो और चिदंबरम इसे बड़ी बात न मानते हों, हर किसी को भरपेट खाना देने के नाम पर बनने वाले खाद्य सुरक्षा कानून पर भले ही खींचतान मची हो लेकिन इन तमाम मुद्दों को दरकिनार कर मोदी और अयोध्या बीजेपी के लिए संजीवनी के तौर पर नजऱ आ रहे हैं और एक बार फिर हिन्दुत्व के एजेंडे को जबरन जि़ंदा करने के लिए राम की नगरी अयोध्या को छावनी में बदल दिया गया है। तो क्या ऐसे में दिग्विजय सिंह के उस ट्वीट को सही मान लिया जाए जिसमें वो कहते हैं कि अयोध्या का मैच फिक्स हैÓ?

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